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10 जनवरी तक कर सकते हैं गेहूं की पछेती खेती

Published - 20 Dec 2019

अब गेहूं की कुछ उन्नत किस्म उपलब्ध है जिनकी बुवाई की जा सकती है। इन किस्मों पर तापमान के घटने-बढऩे या दिन के बड़े और छोटे होने का प्रभाव कम पड़ता है।


ट्रैक्टरजंक्शन से जुड़े सभी किसान भाइयों का अभिनंदन। आज हम बात करते हैं पिछले गेहूं की उन्नत खेती की। ऊपर लिखे शीर्षकों को पढक़र शायद आप चौक गए होंगे कि इस मौसम में कौन गेहूं की खेती करेगा। लेकिन हम आपके साथ साझा करते हैं कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां।
 

पछेती गेहूं की उन्नत खेती

पहले किसान नवंबर-दिसंबर महीने के बीच में धान, गन्ना, अरहर, मिर्च, शलजम की कटाई के बाद खेत खाली छोड़ देते थे। लेकिन अब सिंचाई की सुविधाएं हैं तथा गेहूं की कुछ किस्में भी उपलब्ध हैं जिनकी बुवाई 10 जनवरी तक की जा सकती है। इन किस्मों पर तापमान के घटने-बढऩे तथा दिन के बड़े और छोटे होने का प्रभाव कम पड़ता है। ये किस्में थोड़ी शरद ऋतु होने पर भी अच्छी तरह से बढ़ जाती है। और प्रति हेक्टेयर 40 से 50 क्विंटल उपज दे देती हैं।


ऐसे तैयार करें खेत

खरीफ फसल की कटाई के बाद खेत की सिंचाई करें। इसके बाद खेत को 20-25 सेमी गहरा जोत दें जिससे पिछली फसल की जड़े आदि बाहर निकाली जा सके। इसके बाद हैरो या देसी हल से 3-4 जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। जुताई के बाद पाटा लगाएं जिससे जमीन समतल और मिट्टी भुरभुरी हो जाए।


खाद-बीज और उर्वरक का प्रयोग

गेहूं की पिछेती बुवाई वाली फसल में प्रति हेक्टेयर की दर से 250 किलोग्राम यूरिया, 375 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रयोग करना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा के साथ फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय बीज के 5 सेमी नीचे दी जानी चाहिए। यह कार्य बीज तथा उर्वरक ड्रिल से किया जा सकता है। 25 किलोग्राम जिंग सल्फेट प्रति हैक्टेयर की दर से बुआई से पहले खेत में आधार खाद के रूप में देना चाहिए। उर्वरक और बीज मिलाकर नहीं बोयें।


पौधों को सूर्य का प्रकाश अधिक मिलना चाहिए

कूंडों की बुवाई की पंक्तियां उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाना चाहिए। जिससे पौधों को सूर्य का प्रकाश अधिक मात्रा में प्राप्त हो। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 18 सेमी रखें। बीज की 25 प्रतिशत मात्रा बढ़ाएं अर्थात 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए। बीज की बुवाई 3-4 सेमी गहरी करें। पिछेती गेहूं की बुवाई अत्यंत देरी के साथ 15 जनवरी तक कर सकते हैं।


सिंचाई

भूमि में नमी होने से पौधे भोज्य पदार्थों को घोल के रूप में आसानी से ले सकते हैं। अत: गेहूं में क्रांतिक अवस्था में सिंचाई अवश्य करें। चार सिंचाई, पहली प्रारंभिक जड़ निकलने के बाद, दूसरी कल्ले फूटने के बाद, तीसरी पौधों में बालें निकलने के समय और चौथी दानों में दूध पडऩे के समय करनी चाहिए। जब पौधों में बालें निकल आएं तो सिंचाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि तेज हवा तो नहीं चल रही है अन्यथा पौधों के गिरने का डर रहता है। खेतों में बार्डर पद्धति से पानी लगाएं। एक सिंचाई में 7 सेमी पानी दें।


प्रारंभिक 60 दिन है महत्वपूर्ण

गेहूं का पौधा अपने जीवन के प्रारंभिक 60 दिनों में आवश्यकता की 85 प्रतिशत से अधिक नाइट्रोजन ले लेता है। इन्हीं दिनों कल्ले निकलते हैं और इकाई क्षेत्र में बालियों की संख्या का निर्धारण भी होता है। जिसका सीधा संबंध गेहूं उत्पादन से है। इस समय नाइट्रोजन की कमी से कल्ले, बालियों की संख्या तथा उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अत: नाइट्रोजन की शेष बची आधा मात्रा देने में देरी नहीं करें। इसको निश्चित रूप से पहली सिंचाई के समय (बुवाई के 20 दिन बाद) खड़ी फसल में दें। गेहूं में फास्फोरस धारी उवर्रक की संपूर्ण मात्रा बुवाई के समय देने की सिफारिश की जाती है। किंतु कभी-कभी विभिन्न समस्याओं के कारण बुआई के समय फास्फोरसधारी उवर्रक उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। ऐसी स्थिति में फास्फोरसधारी उवर्रक के फसल में देने में संदेह व्यक्त किया जाता था। क्योंकि यह नाइट्रोजनधारी उर्वरकों के अपेक्षाकृत पानी में कम घुलनशील और मिट्टी मेें कम चलायमान है। हाल के वर्षों में अखिल भारतीय गेहूं अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत प्रयोगों से स्पष्ट हो गया है कि फास्फोरसधारी उर्वरक (सिंगल सुपर फास्फेट) की संपूर्ण मात्रा नाइट्रोजनधारी उर्वरक के साथ पहली सिंचाई (बुवाई के 20 दिन बाद) के समय दी जा सकती है। ऐसा करने से उपज में बुवाई के समय फास्फोरसधारी उर्वरक देने के बराबर बुद्धि होती है।


सिंचित गेहूं की पछेती बुआई के लिए उन्नत किस्में

सिंचित/बुवाई का समय/उन्नत किस्म :

मध्यप्रदेश के लिए सिंचित क्षेत्र में देर से बुवाई के लिए समय 25 नवंबर से 25 दिसंबर तक श्रेष्ठ माना जाता है। इस फसल को तीन से चार बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस फसल के लिए एमपी 4010, एचआई 1418 (नवीन चंदौसी), डीएल-788-2 (विदिशा), एचआई 1454 (आभा), जीडब्ल्यू-173, एचडी-2285, एचआई 8498, एचडी 2864, (उपज क्षमता 40 से 45 क्विंटल/हेक्टेयर)।

सिंचित अत्यंत देरी से :

15 जनवरी तक बुवाई की जा सकती है। इस फसल के लिए 4-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस फसल के लिए उन्नत किस्में एमपी 4010, एचडी 2402, राज 3777, एचआई 1418, एचडी 2864, एचडी 2932, एचडी 2327 (उपज क्षमता : 30 से 35 क्विंटल/हेक्टेयर)

छत्तीसगढ़ के लिए उन्नत किस्में :

जीडब्ल्यू 322, एचआई 8627, (ड्यूरम), एमपी 4010, एचआई 1500, एचआई 8498

राजस्थान के लिए उन्नत किस्में :

राज. 3765, राज. 3077, एचडी 4672, एमपी 4010, एचडी 2285, जीडब्ल्यू 173, एचडी 2235, एचडी 2864

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