प्रकाशित - 12 Dec 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
आज देश में भूमिगत जल का स्तर लगातार कम होता जा रहा है। ऊपर से बारिश अनियमितता से किसान परेशान हैं। कहीं सूखे के कारण फसलें खराब हो रही हैं तो कहीं बारिश की अधिकता या बाढ़ के कारण को भारी नुकसान होता हैं। इस बार छत्तीसगढ़ में सूखे के कारण किसानों की फसलों को भारी नुकसान हुआ। ऐसे में आज आवश्यकता इस बात की है कि हम पानी का बहुत ही किफायती तरीके से इस्तेमाल करें। सरकार भी इस बात पर जोर दे रही है कि किसान कम पानी वाली फसलों को उगाएं, इसके लिए सरकार की ओर से किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
इस बीच राजस्थान के एक किसान सुंडाराम वर्मा ने जल संरक्षण को अपना मिशन बनाते हुए महज एक लीटर पानी में हजारों पौधे उगा दिए। उनके इस कार्य के लिए उन्हें भारत सरकार की ओर से उन्हें कृषि के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य के लिए पद्मश्री पुरस्कार (Padma Shri Award) से सम्मानित किया गया है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको राजस्थान के किसान सुंडाराम वर्मा की सफलता की कहानी बताएंगे कि कैसे उन्होंने एक लीटर पानी में हजारों पौधों को उगाकर पुरस्कार के हकदार बन गए।
कृषि के क्षेत्र नई-नई तकनीकों का इस्तेमाल करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं। इनमें से कई किसान ऐसे भी हैं जो अपने द्वारा बनाई गई तकनीक का इस्तेमाल करके फसल की बंपर पैदावार कर रहे हैं। इन्हीं किसानों में से एक किसान राजस्थान के सुंडाराम वर्मा हैं जिन्होंने स्वयं के द्वारा बनाई तकनीक का इस्तेमाल करके एक लीटर पानी से हजारों पौधों को उगाने का कमाल कर दिखाया है। उन्होंने एक लीटर पानी में खेती की एक तकनीक तैयार की है। इस तकनीक को उन्होंने ड्राई फार्मिंग नाम दिया है। ड्राई फार्मिंग का अर्थ है सूखी खेती। इस तकनीक का इस्तेमाल करके किसान सुंडाराम वर्मा ने राजस्थान के अर्द्ध मरूस्थली क्षेत्र में हजारों पौधे लगाए हैं। इसे ड्राई फार्मिंग नाम दिया गया है। सुंडाराम वर्मा की इस तकनीक का इस्तेमाल करके समय, श्रम, पैसा और पानी सब कुछ बचाया जा सकता है।
प्राय: राजस्थान में कम बारिश होती है। यहां बारिश की कमी के कारण भूजल स्तर में गिरावट आई है। ऐसे में सुंडाराम की ये तकनीक किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। बता दें कि राजस्थान में औसत बारिश करीब 50 सेमी होती है। इस बारिश का पानी सीधा जमीन में जाता है। यदि इस पानी को बचा लिया जाए तो सिंचाई के लिए अतिरिक्त पानी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसी बात को अपने मन में विचार करके किसान सुंडाराम वर्मा ने करीब 50 हजार पौधे लगाए हैं, इनमें से 80 प्रतिशत पौधे जीवित हैं।
खेती में पानी की बचत करने पर किसान सुंडाराम वर्मा को सरकार की ओर से इसके लिए सम्मानित किया गया है। भारत सरकार ने उनके इस काम के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया है। इसके अलावा उन्हें कई अन्य पुरस्कार भी मिल चुके हैं। इनमें कनाडा के इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर,1997 में सुंडाराम वर्मा को राष्ट्रीय किसान पुरस्कार, द इंटरनेशनल क्रॉप साइंस, नई दिल्ली और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय उन्हें मिल चुका है। वहीं उन्हें कई बार राज्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सुंडाराम वर्मा राजस्थान के सीकर जिले के दंता गांव के रहने वाले है। वर्ष 1972 में सुंडाराम वर्मा ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी। इसके बाद उन्होंने नौकरी करने के बजाए खेती में हाथ आजमाया। उनका खेती के संबंध में कई बार कृषि वैज्ञानिकों ने मिलना होता रहता था। वे इस दौरान उनसे खेती से जुड़ी समस्याओं को उनसे साझा करते और उनसे समाधान पूछते। ऐसा करते हुए वे खुद भी नए-नए प्रयास करने लगे। इसी कड़ी में उन्होंने ड्राई फार्मिंग तकनीक का इस्तेमाल करके एक लीटर पानी से हजारों पौधे उगाकर एक खास पहचान बनाई। आज उन्हें एक प्रसिद्ध किसान के रूप में पहचाना जाता है।
कृषि में अच्छा प्रदर्शन करने लगे तो नई दिल्ली में एक सम्मानित ट्रेनिंग कार्यक्रम के लिए चुना गया। यहां सुंडाराम वर्मा ने पहली बार ड्राई फार्मिंग के बारे में जाना। उन्हें पता चला कि बारिश के पानी को इकट्ठा करके ही बाद में खेती में इस्तेमाल किया जाना सबसे अच्छा उपाय है, लेकिन राजस्थान स्थित उनके पैतृक गांव में तो मानसून का पानी उसी सीजन की फसल के लिए काफी नहीं पड़ रहा था, इसलिए सुंडाराम वर्मा ने पेड़ों पर ड्राई लैंड फार्मिंग का नुस्खा आजमाया और वे अपने इस प्रयास में सफल रहे। इस तरह इस किसान ने कृषि के क्षेत्र में एक खास पहचान बनाई और किसानों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गए। आज क्षेत्र के किसान ही नहीं दूर-दूर से लोग उनसे ड्राई लैंड फार्मिंग खेती की तकनीक सीखने आते हैं।
शुष्क भूमि कृषि या बारानी खेती (Dryland farming) एक ऐसी खेती होती है जिसमें खेत की सिंचाई किए बिना ही खेती की जाती है। ये तकनीक उन इलाकों लिए अच्छी है जहां कम बारिश होती है और वहां की भूमि शुष्क है। जैसे- राजस्थान और गुजरात यहां दोंनों ही जगह कम बारिश देखी जाती है। इस प्राकर की खेती में उपलब्ध सीमित नमी को संचित करके बिना सिंचाई के ही फसलें उगाईं जाती हैं। वर्षा की कमी के कारण मिट्टी की नमी को बनाए रखने तथा उसे बढ़ाने का निरतंर प्रयास किया जाता है। इसके लिए गहरी जुताई की जाती है और वाष्पीकरण को रोकने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार की खेती में अल्प नमी में और कम समय में पैदा होने वाली फसलों को उगाया जाता है।
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