प्रकाशित - 02 Feb 2021 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
केंद्र सरकार की 1000 करोड़ रुपए की स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना की सही क्रियान्विति के लिए निगरानी समिति का गठन किया जाएगा ताकि सरकार द्वारा स्टार्टअप की सहायतार्थ दिए जा रहे रुपयों का सही प्रकार से उपयोग हो सके। इससे एक ओर नए स्टार्टअप को फायदा होगा वहीं दूसरी ओर निगरानी समिति द्वारा नजर रखने पर सरकारी रुपयों के दुरुपयोग पर लगाम लगेगी। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय 1,000 करोड़ रुपए की स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना के क्रियान्वयन और निगरानी के लिए एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति का गठन करेगा। एक अधिसूचना में यह जानकारी दी गई। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने की शुरुआत में स्टार्टअप की मदद और नए उद्यमियों को आगे बढऩे में सहयोग के लिए इस योजना की घोषणा की थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाले उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने कहा कि समिति सीड फंड के आवंटन, प्रगति की निगरानी के लिए स्टार्टअप का चयन करेगी और इस बात के लिए सभी जरूरी उपाय करेगी कि इस धन का सही इस्तेमाल हो और योजना का मकसद पूरा हो।
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स्टार्टअप एक युवा कंपनी होती है जिसकी स्थापना एक या एक से अधिक उद्यमियों द्वारा की जाती है, ताकि एक अद्वितीय उत्पाद या सेवा विकसित की जा सके और इसे बाजार में लाया जा सके। स्टार्टअप आमतौर पर एक संस्थापक या सह-संस्थापकों द्वारा शुरू होते हैं। स्टार्टअप को गति देने के लिए सरकार की ओर से सहायता दी जाती है। इसके लिए सरकार की ओर से स्टार्टअप इंडिया इनिशिएटिव योजना चलाई गई है इसके तहत एक फ्लैगशिप प्रोग्राम है। इस योजना के तहत स्टार्टअप को डीपीआईआईटी पंजीकरण से गुजरना पड़ता है और लाभ प्राप्त करने के लिए अन्य औपचारिकताओं को पूरा करना होता है।
सरकार ने पिछले पांच साल में स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसकी बदौलत भारत शीर्ष तीन देशों में आ गया है। हालांकि, सरकार और उद्योग से मिली मदद की कई स्टार्टअप ने सही उपयोग नहीं किया और वह समय से पहले बंद हो गए। दिग्गज उद्योगपति और स्टार्टअप को हर तरह की मदद देने वाले रतन टाटा भी इसे लेकर नराजगी जता चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसे देखते हुए ही सरकार ने स्टार्टअप को पूंजी के साथ उनके काम की भी निगरानी करने का फैसला किया है।
निगरानी समिति सदस्यों में डीपीआईआईटी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और नीति आयोग के प्रतिनिधि तथा डीपीआईआईटी सचिव द्वारा नामित कम से कम तीन विशेषज्ञ शामिल होंगे। इस योजना के अनुसार 2021 से 2025 के दौरान पूरे भारत में चयनित इनक्यूबेटरों के माध्यम से 945 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता स्टार्टअप को दी जाएगी।
डीपीआईआईटी के मुताबिक इस योजना का फायदा उठाने के लिए स्टार्टअप के पास डीपीआईआईटी की मान्यता होनी चाहिए। इसके अलावा आवेदन करते समय उसके गठन को दो साल से अधिक का समय नहीं होना चाहिए। साथ ही उसके मूल उत्पाद या सेवाओं में प्रौद्योगिकी का उपयोग होना चाहिए।
नॉसकॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू स्टार्टअप परिवेश 2025 तक 10 गुना वृद्धि के लिए तैयार है। नॉसकॉम को स्टार्टअप का मूल्य 2025 तक बढक़र 350 से 390 अरब डॉलर पहुंच जाने का अनुमान है। भारत में किसी स्टार्टअप को यूनिकॉर्न बनने में औसतन सात साल लगते हैं, चीन में यह अवधि 5.5 साल और अमेरिका में 6.5 साल है।
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देश में घरेलू यूनिकॉर्न स्टार्टअप की संख्या 21 है जिनका बाजार मूल्यांकन एक अरब डॉलर (7.5 हजार करोड़) से ज्यादा है। हुरून की एक रिपोर्ट के मुताबिक 40 और ऐसी कंपनियां हैं लेकिन उनके संस्थापक भारतीय मूल के विदेशी नागरिक हैं। हालांकि, चीन के मुकाबले भारत में यूनिकॉर्न की संख्या 10 प्रतिशत से कम है। चीन में 227 यूनिकॉर्न स्टार्टअप हैं। चीन ने जहां देश से बाहर सिर्फ 16 कारोबार शुरू किए हैं, भारत में यह संख्या 40 है। भारतीयों द्वारा दुनियाभर में स्थापित यूनिकॉर्न का कुल बाजार मूल्यांकन 99.6 अरब डॉलर है, जिसमें फिनटेक स्टार्टअप रॉबिनहुड का पूंजीकरण 8.5 अरब डॉलर है। भारतीयों के 61 यूनिकॉर्न में 66 प्रतिशत देश के बाहर हैं।
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