प्रकाशित - 20 Oct 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
धान की फसल की कटाई के बाद धान के बचे फसल अवशेष यानी पराली के निपटान की समस्या किसानों के सामने आती है। ऐसे में कई किसान अगली फसल की बुवाई की जल्दबाजी में पराली को जला देते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है और प्रदूषण की समस्या हो जाती है। ऐसे में किसानों के लिए इसका ठीक प्रबंधन करना ही एक मात्र बेहतर समाधान है। पराली प्रबंधन के लिए सरकार की ओर से किसानों को पराली प्रबंधन में काम आने वाले कृषि यंत्रों जैसे- सुपर सीडर, स्ट्रॉ बेलर, कटर मशीन की खरीद पर सब्सिडी दी जाती है।
इसके बावजूद भी पराली को जलाने की समस्या बनी हुई है। पराली जलाने के सबसे अधिक मामले हरियाणा व पंजाब में देखे गए हैं जो दिल्ली एनसीआर की हवा को जहरीला बना रहे हैं। अब इस समस्या का बेहतर हल खोज लिया गया है। अब किसान पराली को जलाने की जगह इसका उपयोग पशुओं के चारे में कर सकते हैं। बताया जा रहा है कि पराली से बनाया गया चारा पशुओं की दूध की मात्रा को भी बढ़ाने में सहायक है। ऐसे में जो किसान खेती के साथ पशुपालन का काम भी करते हैं उनके लिए तो दोहरे लाभ की बात है। एक तो पराली को जलाना नहीं पड़ेगा और दूसरा पशुओं के लिए पोष्टिक चारा तैयार हो जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुधियाना के पशु पोषण विशेषज्ञ डॉ. जे एस लांबा ने पराली से पशुओं के लिए चारा बनाने की विधि बताई है जिसमें पराली को यूरिया और गुड़ के साथ उपचारित करके पशुओं का चारा तैयार किया जा सकता है। पराली से पशु चारा बनाने की विधि कुछ इस प्रकार से है।
किसान 30 लीटर पानी में एक किलो यूरिया और 3 किलो गुड़ डालकर घोल को तैयार करें। इसके बाद यूरिया और गुड़ के घोल को एक क्विंटल धान के भूसे यानी पराली पर छिड़कें या स्प्रे करें और इसे टोटल मिक्स्ड राशन को मशीन में इस तरह से मिलाएं कि धान का पूरा भूसा यूरिया और गुड़ के घोल से गीला हो जाए। मिश्रण के 15 मिनट बाद यह पशुओं को खिलाने के लिए तैयार हो जाएगा। धान के भूसे में 25 ग्राम नमक और 50 ग्राम खनिज मिश्रण मिलाकर इसे दुधारू पशु जैसे- गाय, भैंस को हरे चारे और सांद्र मिश्रण के साथ 2 किलोग्राम प्रतिदिन के हिसाब से प्रयोग किया जा सकता है। पशुओं को यह चारा हरे चारे के साथ 4-5 किलोग्राम प्रतिदिन की दर से खिलाया जा सकता है।
उपरोक्त विधि से चारा तैयार करने से धान की पराली की पोष्टिकता बढ़ती है, क्योंकि इसमें प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है। उपचारित पराली मुलायम और अधिक स्वादिष्ट हो जाती है जिससे पशु उसे चाव से खाते हैं। धान की पराली गेहूं की पराली से सस्ती होती है जिससे चारे की लागत में कमी आती है। यूरिया उपचारित धान की पराली खिलाने से छोटे पशुओं में बढ़ोतरी होती है। वहीं दुधारू पशुओं जैसे- गाय, भैंस के दूध देने की क्षमता भी बढ़ती है।
जेएस लांबा ने किसानों को धान की पराली से बनाए गए चारे के इस्तेमाल को लेकर कुछ सावधानियां बरतने की सलाह भी दी है, जो इस प्रकार से है-
पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। जिस खेत में पराली जलाई जाती है उसके आसपास की हवा में इसका धुआं फैलकर उसे जहरीला बना देता है जिससे सांस संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। वहीं पराली जलाने से खेत की मिट्टी की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। पराली जलाने से खेत जल्दी बंजर होने लग जाते हैं जिस पर फसल उगाना संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में किसानों को पर्यावरण और मिट्टी की सेहत ठीक रखने के लिए फसल अवशेष यानी पराली को नहीं जलाना चाहिए। किसानों को पराली का सही से प्रबंधन करना चाहिए ताकि इसका उपयोग दूसरे कामों के लिए किया जा सके जिसमें पशु चारा बनाने का विकल्प काफी अच्छा है।
पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए सरकार की ओर से सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। पराली जलाने पर 15,000 रुपए तक का जुर्माना वसूला जा सकता है। इसमें एक एकड़ से कम क्षेत्र में पराली जलाने पर 2,500 रुपए, दो से पांच एकड़ क्षेत्र में पराली जलाने पर 5000 रुपए और पांच एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में पराली जलाने पर 15,000 रुपए प्रति घटना जुर्माना वसूला जा सकता है। पराली की समस्या से निपटने के लिए सरकार की ओर से किसानों को सब्सिडी पर अवशेष प्रबंधन के काम आने वाले कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं। ऐसे में किसानों को चाहिए कि सरकारी योजना का लाभ उठाकर पराली का सही प्रबंधन करते हुए अपने लाभ को बढ़ाएं।
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