Published - 21 Mar 2022 by Tractor Junction
वैसे तो केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों के लिए सुरक्षा कवच के समान बताई जाती है लेकिन यह योजना स्वैच्छिक होने के कारण कई राज्य इस योजना की जगह अपनी अलग से दूसरी स्कीम लागू कर किसानों को इन योजनाओं का लाभ पहुंचा रहे हैं। देश की 6 राज्य सरकारों की ओर से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तर्ज पर संचालित की जा रही दूसरी योजनाओं का कितना लाभ किसानों को मिल पा रहा है और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ये राज्य क्यों शामिल नहीं होना चाहते? इसकी पूरी जानकारी के साथ प्रस्तुत है ट्रैक्टर जंक्शन पर यह खास खबर।
बता दें कि केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ( pm fasal yojana ) को लेकर कई राज्य सवाल उठा चुके हैं जबकि केंद्र सरकार इस योजना को किसानों के लिए सुरक्षा कवच बताती रही है। वहीं इसके फायदों से भी किसानों को अवगत करवाया जाता है। इस बीच गुजरात और बिहार के बाद आंध्रप्रदेश, तेलंगाना एवं पश्चिमी बंगाल ने भी पीएम फसल बीमा योजना से अपना मुंह मोड़ लिया है। पंजाब पहले से ही इस योजना में शामिल नहीं रहा। वहीं मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी इस योजना पर सवालिया निशान लगा चुके हैं। उधर महाराष्ट्र सरकार भी चेतावनी दे रही है कि यदि समय रहते केंद्र ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में आवश्यक संशोधन नहीं किया तो वे भी इस योजना से बाहर हो जाएंगे।
यदि केंद्र सरकार की मानें तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत वर्ष 2016-17 से 2020-21 तक किसानों ने पीएम फसल बीमा में अपने हिस्से के प्रीमियम के रूप में बीमा कंपनियों को 21550 करोड़ रुपये का भुगतान किया जबकि बदले में किसानों को फरवरी के अंत तक 1,11,066 करोड़ का क्लेम मिला है। वहीं संसद में अक्सर ये सवाल उठते रहे हैं कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों की मनमानी चल रही है और किसानों से भारी-भरकम प्रीमियम लिया जाता है।
बता दें कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ( pm fasal yojana ) में किसान, राज्य और केंद्र ये तीन मिल कर बीमा कंपनियों को प्रीमियम का भुगतान करते हैं। किसानों का हिस्सा बहुत कम होता है। अधिकांश हिस्सा केंद्र और राज्य सरकारें ही देती हैं। यह पैसा भी करदाताओं का होता है। इसलिए बीमा कंपनियों को मिलने वाले प्रीमियम के रूप में सिर्फ किसानों की जेब से गई रकम को ही गिनना तार्किक नहीं दिखता है। कुल मिला कर देखा जाए तो बीमा कंपनियों को 31 जनवरी 2022 तक 1,39057 करोड़ रुपये मिले, यानि फसल बीमा कंपनियों ने 5 साल में 27,991 करोड़ रुपये कमाए हैं। अगर राज्य और केंद्र सरकार मिलकर खुद फसल पर किसानों को मुआवजा दें तो सरकार की इतनी बड़ी रकम नहीं जाती।
यहां बता दें कि फसल बीमा योजना का प्रचार करने का बोझ कृषि मंत्रालय अपने सिर उठाए हुए है। फसल नुकसान के सर्वे के लिए राजस्व विभाग के कर्मचारी लगते हैं जिनका वेतन सरकार से आता है। वहीं कई बीमा कंपनियों दफ्तर तो जिलों में भी नहीं हैं। इस तरह से बीमा कंपनियों का खर्च खास नहीं हुआ जबकि मुनाफा हर साल करीब 5598 करोड़ रुपये का मिल रहा है। बीमा कंपनियों की मनमानी ऐसी है कि कई बार प्रीमियम भरने और फसल का नुकसान होने के बावजूद किसानों को मुआवजा नहीं मिलता है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों की कथित मनमानी के बारे में कृषि विशेषज्ञ विनोद आनंद बताते हैं कि प्राकृतिक आपदा से फसलों को हुए नुकसान की स्थिति में हर खेत से सैंपल लिया जाना चाहिए जबकि ऐसा नहीं होता है। एक हल्के में सिर्फ 2 जगह से फसल नुकसान का सैंपल उठा कर नुकसान तय कर दिया जाता है। एक हल्का आमतौर पर 1500 हेक्टेयर जमीन का होता है। इस तरह से कंपनियां नुकसान का आंकलन पूरे हल्के को यूनिट मान कर करती हैं जबकि प्रीमियम हर किसान अलग-अलग अपना देते हैं। ऐसेमें हर खेत को एक यूनिट मानना चाहिए।
बीमा कंपनियों की मनमानी से किसानों की परेशानी की शिकायतें अक्सर खबरों के माध्यम से आती रहती हैं। ये कंपनियां किसानों को मुआवजे के लिए चक्कर कटवाती हैं। कभी नुकसान का आंकलन कम करके तो कभी दूसरी शर्तों के कारण, यहां तक कि पराली जलाने की घटनाओं की भी सेटेलाइट से मॉनिटरिंग हो रही है। जहां पराली जल रही है उस खेत की डिटेल सरकार को मिल रही है लेकिन फसल नुकसान के लिए सेटेलाइट का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसकी जानकारी पहले किसान 72 घंटे में बीमा कंपनी को देता है। उसके बाद राजस्व विभाग के कर्मचारी आकर सर्वे करते हैं। यदि 72 घंटे में सूचना नहीं दी गई तो क्लेम से संबंधित किसान को वंचित कर दिया जाता है। ऐसे में कई राज्य इस योजना में शामिल नहीं होकर खुद की बीमा योजना चला रहे हैं।
बता दें कि हरियाणा राज्य सरकार ने फसल बीमा योजना के प्रीमियम को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इसके अंतर्गत दो एकड़ से कम जमीन में खेती करने वाले काश्तकारों के हिस्से का प्रीमियम प्रदेश सरकार देगी जबकि दो से पांच एकड़ तक के खेत वाले किसानों का बीमा प्रीमियम की आधी रकम प्रदेश सरकार वहन करेगी। हरियाणा सरकार का यह निर्णय उन राज्यों पर दबाव बढ़ाएगा जिनके हिस्से की प्रीमियम सब्सिडी बकाया रहने की वजह से बीमा कंपनियों के नुकसान के बावजूद किसानों को क्लेम नहीं दे रही है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर महाराष्ट्र सरकार का अलग रुख है। महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजीत पंवार ने महाराष्ट्र का बजट पेश करते हुए कहा कि गुजरात और कुछ अन्य राज्य पहले ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बाहर हो चुके हैं, महाराष्ट्र सरकार प्रधानमंत्री से योजना में संशोधन की मांग कर रही है। अगर इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया तो सरकार किसानों को मुआवजा देने के अन्य विकल्पों पर विचार कर सकती है।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर का कहना है कि पीएम फसल बीमा योजना सभी राज्यों के लिए स्वैच्छिक है। राज्य अपने जोखिम को देखते हुए योजना के तहत सदस्यता लेने के लिए स्वतंत्र हैं। खरीफ सीजन 2016 की बात करें तो योजना की शुरुआत के बाद से अब तक 27 राज्यों ने एक या अधिक मौसमों में फसल बीमा योजना को कार्यान्वित किया है। आंध्रप्रदेश, बिहार, तेलंगाना, झारखंड, पश्चिम बंगाल और गुजरात ने कुछ मौसम के लिए इसे कार्यान्वित करने के बाद योजना से बाहर होने का विकल्प चुना है।
बता दें कि केरल और गोवा की राज्य सरकारों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के साथ-साथ रोपण फसलों के लिए अलग से अपनी बीमा योजनाएं संचालित कर रखी हैं। केरल में राज्य फसल बीमा योजना एवं गोवा में शेतकारी आधार निधि नामक स्कीम चल रही है। इस योजना में एक बात अच्छी यह हुई है कि अब किसानों की इच्छा के बिना उनके अकाउंट से प्रीमियम नहीं कटता वरन पहले किसान क्रेडिट कार्ड लेने वाले सभी किसानों के एकाउंट से फसल बीमा का प्रीमियम कट जाता था।
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