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फसल विविधीकरण योजना : किसानों को 3 साल तक सरकार से मिलेगी सहायता

Published - 16 May 2022

जानें, क्या है फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना और इससे कैसे मिलेगा लाभ

किसानों के लिए सरकार की ओर से कई लाभकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इन योजनाओं का लाभ उठाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार की ओर फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना शुरू करने का निर्णय लिया है। इस योजना के तहत किसानों को गेहूं और धान के अलावा अन्य फसलों की खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा। 

क्या है राज्य सरकार की योजना

मध्य प्रदेश में गेहूं-धान के बढ़ते रकबे और उत्पादन में अत्यधिक बढ़ोतरी के कारण अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही है। रासायनिक आदान के अंधाधुंध उपयोग से बिगड़ता पर्यावरण समर्थन मूल्य पर खरीदी के कारण सरकार पर अनावश्यक वित्तीय बोझ बढ़ रहा है। ऐसे अनेक कारणों से निबटने के लिए मध्यप्रदेश कृषि विभाग ने फसल विविधीकरण हेतु प्रोत्साहन योजना लागू करने का निर्णय लिया है। इस योजना के तहत गेहूं अथवा धान के अलावा वे फसलें जो न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी के दायरे में नहीं आती है, उन्हें शामिल किया जाएगा। 

इन फसलों पर मिलेगा योजना का लाभ

अजीत केसरी अपर मुख्य सचिव म.प्र. शासन, कृषि विभाग द्वारा 6 मई 2022 को जारी आदेशानुसार इस प्रोत्साहन योजना में गेहूं और धान के अलावा वे फसलें जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के दायरे में नहीं आतीं, शामिल रहेंगी। इन ‘पात्र फसलों’ में उद्यानिकी फसलें- आलू, प्याज, टमाटर एवं अन्य सब्जियां भी सम्मिलित हैं।

योजना के लिए ये संस्थाएं होंगी पात्र

किसानों को परंपरागत फसलों से हटकर विभिन्न और विविध फसलें बोने के लिए प्रेरित करने वाली कंपनियां, संस्थाएं इस योजना में पात्र होंगी। इसके साथ ही इन संस्थाओं पर किसानों की तकनीकी सलाह देने के साथ-साथ फसल को खरीदने के लिए समझौता करने-कराने का दायित्व होगा। प्रेरक कंपनियां, संस्थाएं यदि ‘पात्र फसल’ नहीं खरीदती है तो ऐसी स्थिति में वे अन्य कंपनियों से टाईअप करवाएंगी।

योजना में सरकार से मिलेगी सहायता

इस पूरी विविधीकरण योजना में किसान को प्रेरित करने के लिए कोई आवश्यक कृषि आदान दिया जाता है तो विभाग द्वारा मान्य किया जाएगा।

योजना की प्रक्रिया

फसल विविधीकरण प्रोत्साहन योजना के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में 6 सदस्यीय राज्य स्तरीय परियोजना परीक्षण समिति का गठन किया है, जिसका सदस्य सचिव संचालक कृषि होगा। इस योजना में 3 वर्ष तक सहायता देने का प्रावधान भी है।

क्या है फसल विविधीकरण 

फसल विविधीकरण से तात्पर्य फसल को बदल कर बोना से हैं। लगातार खेत में हर साल एक ही फसल लेने से मिट्टी की उर्वराशक्ति का नाश होता है। इसी के साथ उर्वरक और पीडकनाशी आदि की दक्षता में भी कमी आ जाती है। जिससे उत्पादन के लिए आदान की आवश्यकता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप फसल लागत बढ़ जाती है जिससे किसानों को कम लाभ होता है। इसके विपरित फसल विविधीकरण अपनाने से कम लागत मेें अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। साथ ही मिट्टी की सेहत को भी सुधारा जा सकता है। 

कैसे रखें फसल विविधीकरण के लिए फसल चक्र

पारंपरिक धान-गेहूं प्रणाली की जगह किसान विभिन्न फसल प्रणाली विकल्प अपनाकर कम लागत में उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकते है। 

  • मक्का-सरसों-मूंग
  • मक्का -गेहूं
  • मक्का-गेहूं-मूंग
  • धान-आलू-स्प्रिंग मक्का
  • सोयाबीन-गेहूं-मूंग
  • अरहर-गेहूं
  • अरहर-गेहूं-मूंग

फसल विविधीकरण को अपनाने से होने वाले लाभ

फसल विविधीकरण से किसानों को अनेक लाभ होते हैं। इनमें से जो लाभ प्राप्त होंगे, वे इस प्रकार से हैं- 

  • परंपरागत प्रणाली के स्थान पर फसल विविधीकरण प्रणाली को अपनाने से कुल उत्पादन में बढ़ोतरी होगी।
  • फसल विविधीकरण प्रणाली से किसानों की आय बढ़ सकती है। 
  • फसल विविधीकरण प्रणाली में संसाधनों का उपयुक्त उपयोग होता है।
  • भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है इससे इसके उपयोग की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। यानि अधिक लंबे समय तक उस भूमि पर खेती की जा सकती है। खेत जल्द बंजर नहीं होते हैं। 
  • फसल विविधीकरण से रोजगार के अवसरों मेें बढ़ोतरी होगी। 
  • फसल विविधीकरण प्रणाली के जरिये टिकाऊ कृषि विकास होगा। 
  • फसल विविधीकरण से पर्यावरण में सुधार होता है जिससे प्रदूषण की समस्या कम हो होगी। 

फसल विविधीकरण में अधिक लाभ लेने के लिए किए जा सकते हैं ये काम

फसल विविधीकरण में अधिक लाभ लेने के लिए किसान जो काम कर सकते हैं उनमें प्रमुख कार्य इस तरह हो सकते हैं- 

  • कम मूल्य की अपेक्षा अधिक मूल्य वाली फसलों जैसे- सब्जियां, फल, पुष्प आदि की खेती करना। 
  • अधिक पानी चाहने वाली फसलों की अपेक्षा कम पानी चाहने वाली प्रतिरोधी फसलों एवं प्रजातियों को बोना।
  • एक फसल से बहुफसली खेती करना जिसमें एक फसल से फार्मिंग सिस्टम एप्रोच करना जैसे- फसल उत्पादन के साथ पशुपालन/मत्स्य पालन/मधुमक्खी पालन कार्य करना। 
  • कृषि उत्पादन से प्रसंकरण एवं मूल्य संवर्धन के साथ उत्पादन करना।
  • जहां भूमिगत जल जैसे- पंपसेट-सिंचाई का उपयोग होता है वहां किसान मिश्रित खेती/इंटरक्रापिंग करके अपनी आय बढ़ा सकते है।  


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