प्रकाशित - 11 Jun 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
किसानों को प्राकृतिक आपदा के प्रकोप से फसल को हुए नुकसान की भरपाई के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (pradhan mantri fasal beema yojana) चलाई जा रही है। इसके तहत आंधी, तूफान, बारिश, ओलावृष्टि सहित अन्य प्राकृतिक आपदा से फसल को हुए नुकसान का मुआवजा दिया जाता है। इसके तहत प्रभावित किसान क्लेम करके मुआवजा प्राप्त कर सकते हैं जिन्होंने पीएम फसल बीमा योजना (PM fasal beema yojana) के तहत अपनी फसलों का बीमा करवा रखा होता है। लेकिन कभी-कभी बीमा कंपनियों की मनमानी के चलते किसानों को मुआवजा मिलने में बहुत देरी हो जाती है। किसान को क्लेम का पैसा देने में कंपनी अकारण ही देर करने लगती है और किसान का क्लेम अटकाए रखती है, जिसके कारण किसान क्लेम के लिए बीमा कंपनी के चक्कर लगाता रहता है। ऐसा ही एक मामला राजस्थान के सांचौर जिले चितलवाना गांव में सामने आया है। मीडिया में मामले का खुलासा होने के बाद जिला कलेक्टर ने संबंधित बीमा कंपनी को अगले तीन दिन में पीड़ित 1944 किसानों को 40 करोड़ रुपए का बीमा क्लेम देने के आदेश दिए हैं। इससे किसानों को राहत मिली है।
मीडिया में प्रकाशित रिपाेर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (pradhan mantri fasal beema yojana) के तहत रबी व खरीफ सीजन 2020 से 2022 के बीच किसानों के बीमा क्लेम की राशि उनके खातों में जमा नहीं की गई। बीमा कंपनी ने पीड़ित किसानों का यह क्लेम अटका दिया। इसमें एक या दो नहीं कुल 1944 किसानों का 40 करोड़ का भुगतान कंपनी ने रोक दिया। इधर, किसान बीमा कंपनी के चक्कर काट-काटकर परेशान हो गए। जब मामला मीडिया में आया तब मामले की गंभीरता को समझते हुए जिला कलेक्टर शक्ति सिंह राठौड़ ने कंपनी को तुरंत प्रभाव से तीन दिन की अवधि में किसानों को उनके खाते में क्लेम की राशि ट्रांसफर करने के आदेश दिए हैं।
जिला कलेक्टर द्वारा ऐसे किसानों को चिह्नित किया गया जिनका तीन साल क्रमश: 2020 से 2022 तक का क्लेम बीमा कंपनी ने अटका रखा था। गांव में शिविर लगाकर पीड़ित किसानों के दस्तावेज इक्ट्ठे किए गए जिसमें रानीवाड़ा के 240, बागोड़ा के 478, सांचौर के 339 व चितलवाना के 887 किसानों का क्लेम बीमा कंपनी ने रोक रखा था जिन्हें अब क्लेम मिल सकेगा।
इसके अलावा कुछ बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि भी किसानों के साथ धोखाधड़ी करने में पीछे नहीं हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बीमा कंपनियों के प्रतिनिधि फर्जी दस्तावेजों से किसानों के क्लेम खुद उठा रहे हैं। इस संबंध में पुलिस थाने में दो मामले दर्ज किए गए है जिनमें पटवारी की भूमिका को संदिग्ध माना जा रहा है। यहां उपरोक्त मामले की जानकारी किसानों को देने का उद्देश्य उन्हें सतर्क करना है। किसानों को चाहिए कि वे समय-समय पर बीमा कंपनी से अपनी पॉलिसी के संबंध में जानकारी लेते रहे और यदि कहीं गड़बड़ दिखाई दे तो इसके विरूद्ध आवाज जरूर उठाएं, इसकी शिकायत किसान पीएम फसल बीमा योजना पोर्टल पर भी कर सकते हैं।
फसल बीमा के नियमों के हिसाब से फसल नुकसान के आंकड़े मिलने के 30 दिन के बाद संबंधित बीमा कंपनियों को क्लेम पास करना होता है, लेकिन बीमा कंपनियों और बैंकों की मिलीभगत के कारण किसानों तक क्लेम पहुंचने में इससे भी कहीं अधिक समय लग जाता है। ऐसे में सरकार की ओर से बीमा कंपनियों को निर्देश जारी करके किसानों को बीमा राशि समय पर दिए जाने के निर्देश समय-समय पर दिए जाते हैं।
फसल बीमा के तहत ऐसी व्यवस्था भी की गई है यदि बीमा कंपनी किसान को निर्धारित अवधि 30 दिन के बाद क्लेम की राशि भुगतान नहीं करती है तो इसका ब्याज भी देना होता है। नियमानुसार फसल नुकसान की रिपोर्ट मिलने के एक महीने के अंदर कंपनी को क्लेम का भुगतान करना होता है। इससे अधिक देरी होने पर बीमा कंपनी की ओर से किसान को 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देना होता है।
फसल बीमा एक्ट के अनुसार सरकार के पास यह अधिकार है कि जो बीमा कंपनी समय पर किसानों को बीमा का मुआवजा नहीं देती है या नियमों का उल्लंघन करती है तो उसे वह ब्लैक लिस्ट कर सकती है या उस बीमा कंपनी के ऊपर जुर्माना भी लगा सकती है।
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