Published - 27 Apr 2022
केंद्र सरकार की ओर से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके तहत प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को सरकार की ओर से सहायता प्रदान की जाएगी। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार की ओर से प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को देसी गाय पालने के लिए हर साल 10800 रुपए की मदद देने का फैसला किया है। बता दें कि बीते दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नीति आयोग द्वारा नवोन्वेषी कृषि पर आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में मंत्रालय से वर्चुअली शामिल हुए। इसी दौरान उन्होंने प्राकृतिक खेती को लेकर कई घोषणाएं की।
दरअसल प्राकृतिक खेती के लिए देसी गाय आवश्यक है। देसी गाय से ही प्राकृतिक खेती के लिए आवश्यक जीवामृत तथा घनजीवामृत बनाए जा सकते हैं। प्राकृतिक खेती को लेकर हर राज्य सरकार अपने स्तर पर किसानों के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके तहत किसानों को सहायता और सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जा रहा है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती के उद्देश्य से देसी गाय पालने वाले किसानों को हर साल 10800 रुपए की सहायता राशि देने का निर्णय लिया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों को देसी गाय रखने के लिए 900 रुपए प्रति माह यानि 10 हजार 800 रुपए प्रतिवर्ष उपलब्ध कराए जाएंगे। साथ ही प्राकृतिक कृषि किट लेने के लिए किसानों को 75 प्रतिशत राशि सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाएगी।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि मध्यप्रदेश में 52 जिले हैं। प्रारंभिक रूप से प्रत्येक जिले के 100 गांव में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष गतिविधियां संचालित की जाएंगी। वर्तमान खरीफ की फसल से प्रदेश के 5,200 गांव में प्राकृतिक खेती की गतिविधियां शुरू की जाएगी। वातावरण-निर्माण के लिए प्रदेश में कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा। अब तक प्रदेश के 1 लाख 65 हजार किसानों ने प्राकृतिक खेती में रूचि दिखाई है। नर्मदा नदी के दोनों ओर प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जाएगा।
प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक गांव में किसान मित्र एवं किसान दीदी की नियुक्ति की जाएगी। वहीं प्राकृतिक खेती के मार्गदर्शन के लिए प्रत्येक विकासखंड में 5 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। ये प्राकृतिक खेती के मास्टर टे्रनर के रूप में कार्य करेंगे। इसके लिए सरकार की ओर से इन्हें मानदेय दिया जाएगा।
राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक कृषि विकास बोर्ड का गठन किया जाएगा। इसे कैबिनेट से मंजूरी मिल चुकी है। इस बोर्ड के माध्यम से किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहन एवं सहयोग प्रदान किया जाएगा। यह बोर्ड सरकार की आर्थिक मदद से चलेगा और एक स्वतंत्र संगठन के रूप में कार्य करेगा। बता दें कि मध्यप्रदेश में जैविक खेती का सबसे बड़ा 17 लाख हेक्टेयर रकबा है। इसे धीरे-धीरे प्राकृतिक खेती में बदलने की योजना है और इसके लिए ही इस बोर्ड का गठन किया जाएगा।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि हरित क्रांति में रासायनिक खाद के उपयोग ने खाद्यान्न की कमी को तो पूरा किया, लेकिन अब इसके घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के उपयोग से धरती की सतह कठोर और मुनष्य रोग ग्रस्त होता जा रहा है। इसके उपयोग को नियंत्रित करने की आवश्यकता है, जो प्राकृतिक खेती से ही संभव है। प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार किसानों का सहयोग करेगी। जिस तरह हरित क्रांति के लिए किसानों को रासायनिक खाद पर सब्सिडी और अन्य सहायता उपलब्ध कराई गई, उसी प्रकार प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देना और सहयोग करना जरूरी है।
प्राकृतिक खेती से किसानों को कई प्रकार के लाभ होंगे। जैसा कि प्राकृतिक खेती पूर्णरूप से प्रकृति के सिद्धांत पर आधारित है और पर्यावरण के दृष्टि से भी श्रेष्ठ है। प्राकृतिक खेती से किसानों को जो लाभ होंगे इनमें से मुख्य लाभ इस प्रकार से हैं-
प्राकृतिक खेती के लिए जिला परियोजना संचालक के माध्यम से इससे जुड़े हुए कार्य किए जाएंगे। इसके लिए किसानों को आवेदन देना होगा। जिसका प्रारूप सरकार द्वारा जारी किया जाएगा। इसमें किसान को घोषित करना होगा कि वह कितनी जमीन पर प्राकृतिक खेती करना चाहता है। इसके बाद ही उसे सरकार की ओर से सहायता प्रदान की जाएगी।
भारत में देसी गाय की 56 प्रकार की नस्लें पाई जाती हैं। इसमें मालवी, निमाड़ी, गीर, थारपारकर, नागौरी, कांकरेज, साहीवाल आदि नस्ल की गायें शामिल हैं। वहीं बात करें मध्यप्रदेश की तो यहां मूल रूप से मालवी, निमाड़ी और गुजरात की गीर गाय अधिक पाई जाती हैं। देसी गाय को लेकर खास बात यह है कि एक देसी गाय से 30 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती की जा सकती है। यानी इसके गाय के गोबर और मूत्र से ही जीवामृत और घनजीवामृत बनाए जा सकते हैं।
प्राकृतिक खेती पर मिलने वाला लाभ ग्रामीण क्षेत्र के समान ही शहरी क्षेत्र के किसानों को भी मिलेगा। यदि कोई शहरी किसान जिसके पास जमीन है और वे प्राकृतिक खेती करना चाहता है तो उसे भी इस योजना का लाभ दिया जाएगा। बता दें कि इस योजना के तहत वही किसान आएंगे जो प्राकृतिक खेती करेंगे। अन्य पद्धति से खेती करने वाले किसानों को इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा। अब बता करें गाय पालने के अनुदान के बारे में तो इसका लाभ भी ग्रामीण और शहरी दोनों किसानों को मिलेगा यानि यदि कोई शहरी किसान भी प्राकृतिक खेती अर्थात जैविक खेती के लिए देसी गाय का पालन करता है तो वह भी सरकार से दिए जाने वाले अनुदान को प्राप्त कर सकता है।
प्राकृतिक खेती पर निगरानी रखने के लिए सरकार की ओर से हर ब्लॉक में पांच-पांच पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। यह कार्यकर्ता किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देंगे और साथ ही इस बात का भी ध्यान रखेंगे कि प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों को ही गाय पालन के लिए सरकारी सहायता मिल रही है।
प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। प्राकृतिक खेती कृषि की प्राचीन पद्धति है। यह भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक कीटनाशक का उपयोग नहीं किया जाता है। इस प्रकार की खेती में जो तत्व प्रकृति में पाए जाते है, उन्हीं को खेती में कीटनाशक के रूप में काम में लिया जाता है। प्राकृतिक खेती में कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे- रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फसल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है। संक्षेप में कहे तो प्राकृतिक खेती कृषि की वह पुरातन पद्धति हैं जिसमें खेत में फसल की बुवाई करो और काटो। न उर्वरक का उपयोग करें, न ही रसायन का उपयोग करें। सिर्फ इसमें प्रकृति प्रदत्त चीजों का उपयोग किया जाता है जिसमें प्रमुख रूप से देसी गाय का गोबर और गौमूत्र का उपयोग हाता है।
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