Published - 08 Oct 2020
किसान को अपनी फसल की सुरक्षा के लिए सरकार की ओर से बीमा कंपनियों के माध्यम से फसलों का बीमा कराने की सुविधा प्रदान की गई है। जिससे प्राकृतिक आपदा से फसल को होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके। लेकिन ये बीमा कंपनियां अपने फायदे को देखते हुए किसानों को बीमा का पूरा लाभ देने असफल साबित हो रही है। फसल बीमा योजना शुरुआत से ही सवालों के घेरे में रही है। अब तो कई राज्य सरकार ने भी यह मान लिया है कि फसल बीमा योजना के तहत फसलों का बीमा कराने वाले किसानों को पूरा मुआवजा नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते कई राज्यों ने पहले ही फसल बीमा कंपनियों को अपने से अलग कर लिया है। अब राज्य सरकारें स्वयं किसान को फसल नुकसानी का मुआवजा देना चाहती है।
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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्वयं इस बात को माना कि फसल बीमा योजना का पूरा लाभ किसानों को नहीं मिल पा रहा है। अभी हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 22 लाख से अधिक किसानों को खरीफ-2019 में हुई फसल नुकसानी का बीमा दिया गया। इस भुगतान में कई किसानों 1 रुपए या उनके द्वारा जो प्रीमियम भरा गया था उससे कम भुगतान किया गया है। ऐसे भी बहुत से किसान हैं जिन्हें फसल बीमा राशि का भुगतान अभी तक नहीं हो पाया है। ऐसे मामलों के सामने आने पर बीमा कंपनियों की कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। यही कारण है कि सरकार की ओर से पहले बीमा कराना अनिवार्य कर दिया गया था लेकिन बाद में इसे स्वैच्छिक कर दिया गया। इससे किसान अब चाहे तो अपनी फसल का बीमा कराए अन्यथा नहीं। ये उसकी इच्छा पर निर्भर होगा। बीमा कंपनियों की इस प्रकार की कार्यप्रणाली से अब राज्य सरकार की नींद भी खुल गई है और अब वे स्वयं फसल नुकसानी का मुआवजा किसानों को वितरित करना चाहती है ताकि बीमा कंपनियों की भूमिका कम किया जा सके और किसान को लाभ पहुंचे।
बिहार और झारखंड राज्य ने तो पहले ही बीमा योजना से अपने को अलग कर लिया है। अब मध्यप्रदेश में भी किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फसल बीमा का पूरा मुआवजा किसानों को दिलाने की बात कही है। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश के हर किसान को फसल बीमा कंपनियों से पूरा न्याय दिलाया जाएगा। प्रदेश के ऐसे किसान, जिन्हें फसल बीमा दावा राशि नहीं मिली है अथवा कम मिली है, उन सबका पक्ष बीमा कंपनियों के सामने सरकार मजबूती से रखेगी तथा आवश्यकता पडऩे पर इस संबंध में भारत सरकार से बातचीत भी की जाएगी। प्रत्येक किसान की बीमित फसल की पूरी दावा राशि उन्हें दिलाई जाएगी। इसके साथ ही प्रत्येक बाढ़ पीडि़त को शीघ्र ही राहत राशि भी दिलवाई जाएगी। यह बात मुख्यमंत्री चौहान मंत्रालय में प्रदेश के किसानों को बीमा कंपनियों से प्राप्त दावा राशि के संबंध में उच्च स्तरीय बैठक में कही।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मीडिया को बताया कि कई जिलों से शिकायतें आई हैं कि कुछ किसानों को या तो दावा राशि प्राप्त नहीं हुई है अथवा उनको हुए नुकसान के अनुपात में वह काफी कम है। इस संबंध में प्रत्येक जिले में पुन: परीक्षण कर कलेक्टर के माध्यम से सूची प्राप्त करें तथा प्राप्त सूची अनुसार संबंधित बीमा कंपनी के समक्ष पुन: बीमा दावा प्रस्तुत करें। हर किसान को न्याय मिलना चाहिए।
खरीफ 2018 में प्रदेश में कुल 8 लाख 94 हजार 919 किसानों को दावा राशि 1,987 करोड़ 27 लाख रुपए का भुगतान किया गया। रबी 2018-19 में बीमा कंपनियों द्वारा दावा राशि 710 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया। खरीफ 2019 में कुल 22 लाख 49 हजार 760 किसानों को दावा राशि 4 हजार 688 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाना था, जिसमें से 1 अक्टूबर तक 14 लाख 40 हजार किसानों को 2,628 करोड़ रुपए बीमा दावा राशि का भुगतान किया गया है। बता दें कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 18 सितंबर 2020 को दोपहर 11:30 वन क्लिक में देश के 22 लाख 51 हजार 188 किसानों को खरीफ 2019 की फसल बीमा दावा की कुल राशि 4 हजार 688 करोड़ 83 लाख का ई-अंतरण के माध्यम से भुगतान की बात कही थी। परन्तु अभी तक मात्र 14 लाख 40 हजार किसानों को 2,628 करोड़ रुपए बीमा दावा राशि का भुगतान किया गया है। शेष किसानों को भुगतान की प्रकिया की जा रही है।
चर्चित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट ( सीएसई ) द्वारा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पर जारी रिपोर्ट की मानें तो इस योजना में किसानों का भरोसा टूटता दिखता है। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि योजना में बैंकों की सक्रियता और किसानों की संख्या तो बढ़ी है पर किसानों को फायदा मिल पाना दूर की कौड़ी रहा है। इस साल के आंकड़े भी इस योजना में किसानों के कम होते भरोसे की पुष्टि करते दिखते हैं। साल 2017-18 में इस योजना के तहत आने वाले रकबे में कमी दर्ज की गई। बीते वित्तीय वर्ष के लिए कुल 40 फीसदी खेतों को इसके दायरे में लाने का लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन जमीन पर यह आंकड़ा 24 फीसदी रहा। इससे पहले साल 2016-17 में यह 30 फीसदी रहा था।
सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए इस आंकड़े को 50 फीसदी तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। वहीं पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बैंक से कर्ज लेने वाले किसानों के लिए फसल बीमा योजना लेना अनिवार्य था। इसके खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबंधित संगठन भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने गुजरात हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।
इसमें संघ ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देकर कहा है कि अब तक सरकार बीमा कंपनियों को 10,000 करोड़ रुपए से अधिक दे चुकी है, इसके बावजूद किसानों द्वारा फसल नुकसान को लेकर किए गए दावों का निपटारा नहीं किया जाता है। इस प्रकार बीमा कंपनियों की इस प्रकार की कार्यप्रणाली से सरकार की जेब से तो बीमा कंपनियों के पास पहुंच रहा है पर किसानों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। यही सरकार की और किसानों की बीमा कंपनियों से नाराजगी है।
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