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जौ और बासमती चावल की होगी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, किसानों को होगा लाभ

प्रकाशित - 30 Jul 2022

जानें, क्या होती है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और इससे किसानों को कितना लाभ

किसानों की आय बढ़ाने और प्रदेश में चावल व जौ का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास हरियाणा सरकार की ओर से किए जा रहे हैं। इसके लिए जौ और बासमती चावल की कांट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया है। इस संबंध में हरियाणा सरकार ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि राज्य के किसानों को कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए जागरूक किया जाए। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिनों हरियाणा के मुख्य सचिव संजीव कौशल ने कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि प्रदेश में जौ की कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़वाा देने के लिए किसानों को अधिक से अधिक प्रेरित किया जाए। वहीं कौशल ने हैफेड के अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि बासमती चावल का निर्यात बढ़ाने के लिए सीधे कंपनियों से कांट्रैक्ट फार्मिंग करवाने का प्रयास करें। मुख्य सचिव पिछले दिनों राज्य खाद्य सुरक्षा मिशन कार्यकारी कमेटी की बैठक की अध्यक्षता की अध्यक्षता कर रहे थे। बैठक में इस बात की जानकारी भी दी गई कि हैफेड संयुक्त राज्य अमीरात (यूएई) व अन्य अरब देशों के साथ बासमती चावल का निर्यात पहले से ही कर रहा है।

हरियाणा में प्रमुखता से होती है बासमती चावल की खेती

जानकारी के लिए बता दें कि हरियाणा में प्रमुखता से बासमती चावल की खेती की जाती है। वहीं यहां से बासमती चावल का एक्सपोर्ट भी किया जाता है। हरियाणा और पंजाब में सबसे ज्यादा बासमती चावल की बुवाई होती है। इसमें पूरे देश में पंजाब में सबसे ज्यादा चावल का उत्पादन होता है। इसके बाद हरियाणा का नंबर आता है। इसके अलावा भारत के अन्य राज्यों में भी बासमती चावल की खेती की जाती है जिसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, पश्चिम उत्तरप्रदेश और जम्मू-कश्मीर में शामिल है। हाल ही में यूक्रेन-रूस के बीच चल रहे युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा चावल का निर्यात भारत से किया गया। इसमें पंजाब और हरियाणा का काफी योगदान रहा। 

हरियाणा में कितना होता है बासमती चावल का उत्पादन

भारत से हर साल करीब 40 लाख टन चावल का निर्यात किया जाता है। इसमें 40 प्रतिशत हिस्सा हरियाणा का होता है। हरियाणा में हर साल 15 से 18 हजार करोड़ रुपए का चावल कारोबार होता है। वहीं 40 प्रतिशत चावल पंजाब शेष 20 प्रतिशत चावल देश के अन्य राज्यों से विश्व बाजार में सप्लाई होता है। हरियाणा में करनाल, तरावड़ी, पानीपत, कैथल, अंबाला, सिरसा, कुरुक्षेत्र रानिया प्रमुख बासमती चावल उत्पादक क्षेत्र हैं। हरियाणा में बासमती का अधिक उत्पादन करनाल, कैथल, कुरुक्षेत्र में होता है। 

क्या होती है कांट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming)

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को अनुबंध की खेती या ठेके की खेती कह सकते हैं। इसमें किसान को कोई लागत नहीं लगानी पड़ती है। इसमें फसल बुवाई से लेकर कटाई और विपणन का जिम्मा अनुबंध करने वाली कंपनी का होता है। इस प्रकार की खेती में किसान अपनी जमीन पर ही खेती करता है लेकिन वह खेती अपने लिए नहीं किसी और के लिए की जाती है। इस खेती को एक कांट्रैक्ट के आधार पर किया जाता है। यह कांट्रैक्ट किसी कंपनी या व्यक्ति के साथ किया जा सकता है। इस खेती में किसान द्वारा उगाई गई फसल को कांट्रैक्टर खरीदता है। इस फसल के दाम कांट्रैक्टर के द्वारा पहले से तय कर लिए जाते हैं। इसमें बीज, खाद, सिंचाई और मजदूरी आदि का सारा खर्चा कांट्रैक्टर के द्वारा किया जाता है। किसान को इसमें कोई लागत नहीं लगानी पड़ती है। 

बासमती चावल की कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को क्या होगा लाभ

गुजरात और महाराष्ट्र में कई किसान पहले से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रहे हैं जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं और किसानों की आय में बढ़ोतरी हुई है। इसी कड़ी में अब हरियाणा सरकार भी किसानों को कॉट्रैक्ट फॉर्मिंग की दिशा में कदम बढ़ा रही है। इससे किसानों की आय बढ़ेगी और उनकी दिशा और दशा में सुधार होगा। कॉट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को जो लाभ होंगे वे इस प्रकार से हैं।

  • कॉट्रैक्ट फार्मिंग से राज्य में खेती अधिक संगठित बनेगी। इससे किसानों को बेहतर उत्पादन होगा जिसके बाजार में किसानों को अच्छे भाव मिल सकेंगे।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में फसल बुवाई के साथ ही उसके भाव निर्धारित किए जाते हैं। इससे किसानों को ये लाभ होगा कि बाजार में भावों में हो रहे उतार-चढ़ाव का जोखिम नहीं होगा जिससे किसान भय मुक्त होकर खेती कर सकेंगे। 
  • कॉट्रैक्ट फार्मिंग के जरिये किसानों को एक बड़ा बाजार मिल जाएगा जिससे उन्हें अपनी फसल का बेहतर दाम मिल सकेगा। 
  • कॉट्रैक्ट फॉर्मिंग से किसानों को नई तरह की खेती को सीखने का अवसर मिलेगा। इससे खेती के तरीके में भी सुधार होगा।
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को बीज, फर्टिलाइजर को चुनाव करने में मदद मिलेगी जिससे फसल की क्वालिटी में सुधार होगा। 


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