Published - 14 Jun 2022 by Tractor Junction
किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में किसानों को खेती के साथ ही मछलीपालन को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना के तहत किसानों को सहायता प्रदान की जाती है। झारखंड में किसानों को इस योजना का लाभ मिल रहा है। इसमें विशेषकर ग्रामीण महिलाएं मछली पालन के क्षेत्र में अच्छा लाभ कमा रही हैं जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हो रही है।
जो मछली पालक पहले से ही देसी मछली का पालन कर रहे हैं, वो बगैर ज्यादा खर्च के रंगीन मछलियों को भी पाल सकते हैं। जानकारी के अनुसार, उत्पादन बेहतर करने से रंगीन मछली पालन से सालाना दो से ढाई लाख रुपये तक की आमदनी हो सकती है। इधर रांची जिले के कुरगी गांव की महिला किसान रीता कुजूर रंगीन मछली पालन करके हर माह हजारों रुपए कमा रही हैं। रीता कुजूर के अनुसार वह साल 2015-16 से रंगीन मछली पालन कर रही है। पहले वह एक संस्था से जुडक़र मुर्गी पालन कर रही थी। इसके बाद उनके पिता ने उन्हें रंगीन मछली पालन करने के बारे में पूछा। रीता ने बताया कि उस वक्त उन्हें रंगीन मछली के बारे में किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं थी। हालांकि उन्होंने रंगीन मछली पालन करने का मन बनाया और प्रशिक्षण लिया।
रीता ने धुर्वा स्थित शालिमार प्रशिक्षण केंद्र में पांच दिवसीय रंगीन मछली पालन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। ट्रेनिंग लेने के बाद वह घर में ही रंगीन मछली पालन करने लगीं। रीता के अनुसार शुरुआत में उन्हें ट्रेनिंग के साथ-साथ रंगीन मछली भी दिया गया। हालांकि शुरुआत में जानकारी के अभाव में उनकी मछलिया मर गई, इसके कारण उन्हें नुकसान हुआ और काफी निराश भी हुई। इसके बाद उन्होंने फिर से ट्रेनिंग ली और लगातार दो तीन बार ट्रेनिंग करने के बाद उन्हें रंगीन मछली पालन करने में सफलता प्राप्त हुई। इतना ही नहीं रीता ने अपनी बेटी को भी अपने साथ रंगीन मछली पालन की ट्रेनिंग दिलवाई। इससे उन्हें काफी राहत मिली है।
रीता ने मीडिया को बताया कि उन्हें ट्रेनिंग के दौरान रंगीन मछली के ब्रीडिंग की भी जानकारी दी गई। इसके बाद से वो उन्हें ब्रूडर मछली भी मिला है। जिसके जरिए वो खुद से रंगीन मछली पालन करने कि लिए स्पॉन तैयार करती हैं साथ ही उन्हें बड़ा करके बेचती है। बाजार के अलावा दुकान और अपने संपर्कों के माध्यम से वह इन मछलियों को बेचती है। उन्हें विभाग द्वारा सरकारी योजना के लाभ के तहत एक दुकान मिली है जहां वो एक्वेरियम बेचती हैं। इसके अलावा उन्होंने बताया कि उनका पूरा परिवार उनके कार्य में सहयोग करता है।
उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का भी लाभ मिला है जिसके तहत रंगीन मछली पालन करने के लिए बड़ा टैंक बनाया जाएगा, जहां पर वो अधिक संख्या में रंगीन मछली पालन कर पाएगी। उनके पास डेढ़ से दो लाख रंगीन मछली का स्टॉक रहेगा। इसी के साथ ही वो ब्रूडर मछली भी बेच पाएंगी।
सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजूकेशन मुंबई के अलावा कई अन्य क्षेत्रीय केन्द्रों से भी मत्स्य शिक्षा प्रदान करता है। संस्थान के आगरा तथा हैदराबाद केंद्रों में अंत मरूस्थलीय मत्स्यपालन में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसका एक क्षेत्रीय केंद्र लखनऊ (चिनहट में स्थित है जहां अंतर मरूस्थलीय मत्स्य की सहकारिता विषय में नौ माह का प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इसी तरह इसका एक क्षेत्रीय केंद्र आंध्रप्रदेश में स्थित है, काकीपाड़ा मत्स्य केंद्र, इस केंद्र द्वारा मत्स्य विज्ञान प्रसार विधि एवं तकनीक की जानकारी दी जाती है। मत्स्य शिक्षा का एक अन्य एक वर्षीय पाठ्यक्रम सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन की देखरेख में बैरकपुर (पश्चिम बंगाल) में संचालित किया जाता है। इस संस्थान द्वारा प्रत्येक वर्ष पचास छात्रों को प्रवेश दिया जाता है। इसके लिए जीव विज्ञान विषय के साथ बारहवीं उत्तीर्ण होना आवश्यक शर्त माना गया है।
मत्स्य शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न पाठ्यक्रमों को संचालित करने वाले कुछ प्रमुख संस्थानों, महाविद्यालयों के नाम इस प्रकार हैं।
उपरोक्त संस्थानों में प्रवेश पाने के लिए विज्ञान विषय में स्नातक होना आवश्यक होता है। देश में मत्स्य विकास परियोजनाओं के लिए दक्ष मत्स्य विशेषज्ञ तैयार करना इस संस्थान का प्रमुख उद्देश्य है। खास बात यह है की इस संस्थान में केवल तीस छात्रों को प्रत्येक वर्ष प्रवेश दिया जाता है। अत: प्रतियोगता की दृष्टि से ज्ञान होना आवश्यक माना जाता है।
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