ड्रोन से खेती : अब मिनटों में होगी बीजों की बुवाई ड्रोन की खासियत

Share Product Published - 03 Jul 2021 by Tractor Junction

ड्रोन से खेती : अब मिनटों में होगी बीजों की बुवाई ड्रोन की खासियत

जानें, ड्रोन से खेती: इस ड्रोन की खासियत और लाभ व ऑपरेट करने का तरीका

खेती के काम को आसान बनाने की दिशा में लगतार प्रयास जारी है। पहले परंपरागत तरीके से खेती होती थी जिसमें श्रम व समय अधिक लगता था लेकिन धीरे-धीरे आधुनिक कृषि यंत्रों का प्रयोग होने लगा जिससे खेती का काम काफी हद तक आसान हो गया। अब खेती में ड्रोन के उपयोग की दिशा में कार्य किया जा रहा है। खेती में ड्रोन की उपयोग करना कोई नहीं बात नहीं है। विदेशों में इसका प्रयोग पहले से खेती के काम में किया जा रहा है। लेकिन भारत में इसका प्रयोग अभी फिलहाल प्रचलन में कम ही है। हाल ही में जबलपुर के एक युवा इंजीनियर ने खेती के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया है। इस युवा इंजीनियर ने बुवाई के लिए ड्रोन का उपयोग करके हर किसी को हैरान कर दिया। उन्होंने ऐसा ड्रोन बनाया है जिसमें बीच लोड कर दो तो वो पूरे खेत में उसे बो देगा। इससे खेत में बिना ट्रैक्टर और सीडड्रिल की मदद से खेतों में ड्रोन की सहायता से बुवाई का कार्य काफी आसानी से किया जा सकता है। यदि खेती में ड्रोन का प्रचलन बढ़ा तो आने वाले समय में ड्रोन की मदद से खेतों में बीज बोया जाएगा। जबलपुर के माढ़ाताला क्षेत्र में रहने वाले अभिनव ठाकुर ने ऐसा ड्रोन तैयार करने में सफलता हासिल की है जो बुवाई के काम को काफी हद तक आसान बनाने में किसान की मदद कर सकता है। अभिनव ने बीएचयू के वैज्ञानिकों के आग्रह पर इसका प्रयोग मिर्जापुर के खेतों में करके दिखाया। इस डेमो के दौरान सैकड़ों किसान और कृषि वैज्ञानिक भी खेत मे मौजूद थे जिन्होंने इसे खेती का भविष्य बताया।

 

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ड्रोन से खेती: जानें ड्रोन की खासियत/ विशेषता

इस ड्रोन की खासियत ये है कि इसमें 30 किलो तक वजन उठाने की क्षमता है। इसमें एक टैंक फिट है जिसमें धान या गेहूं के बीज को भर दिया जाता है. उसके बाद ये ड्रोन खेत के ऊपर उडक़र बीज को क्यारियों में छिडक़ देता है। 


इस तरह काम करता है खेती का ड्रोन

अभिनव ने बताया कि यूपी के अधिकतर जिलों में धान की कटाई होने के बाद ठंड का मौसम आ जाता है जिससे वहां के खेत सूख नहीं पाते। ट्रैक्टर या सीडड्रिल से गेहूं की बोवनी करना मुश्किल हो जाता है। गेहूं के बीज का छिडक़ाव किया जाता है जिसमें कई तरह की परेशानियां भी आती हैं। इस समस्या की जानकारी मिलने के बाद उन्होंने अपने ड्रोन को मॉडिफाई किया। इसमें टैंक के नीचे सीडड्रिल जैसे छेद वाली फनल यानी चाड़ी लगाई और इसी के माध्यम से बीज नीचे गिरता है। 


इस तरह किया जाता है ड्रोन ऑपरेट

अभिनव का कहना है इसके लिए किसान को ड्रोन ऑपरेट करने का ज्ञान होना जरूरी है. मोबाइल या टेबलेट में गूगल मैप की मदद से खेत का नक्शा फीड किया जाता है. उसके बाद एक बार स्टार्ट करने पर यह बीज या बैटरी खत्म होने तक खुद ही खेत के एरिया के अनुसार बोवनी करता रहता है और बीज या बैटरी खत्म होने के बाद वापस अपनी जगह पर आटोमेटिक लैंड होकर रुक जाता है.


खेती के इस ड्रोन से लाभ

  • ड्रोन से बोवनी करने में ट्रैक्टर ट्राली की जरूरत नहीं है। और न ही किसान को खेत में जाने की जरूरत होगी। बस किसान खेत के एक कोने में खड़े होकर बोवनी कर सकता है।
  • ड्रोन की फनल से एक निश्चित मात्रा में ही बीज निकलता है जिससे बीज की बर्बादी नहीं होती है।
  • ड्रोन मैप की मदद से एक ही दिशा में चलता है जिससे हर बीज निश्चित दूरी पर तय मात्रा में गिरता है और फसल के पौधे एक लाइन में उगते हैं।


ड्रोन को बनाने में आया खर्च

अभिनव ने करीब 8 लाख रुपए की लागत से इस ड्रोन को बनाया है। ये बोवनी के साथ साथ दवा के छिडक़ाव में भी सक्षम है। इसके लिए सिर्फ ड्रोन के नीचे लगी चाडियों को हटाकर स्प्रेयर लगाना पड़ता है। दो साल पहले अभिनव ने इसी ड्रोन की मदद से खेतों में दवा का छिडक़ाव करके दिखाया था। बता दें कि अभी फिलहाल यूपी के वैज्ञानिक अभिनव के साथ मिलकर इस ड्रोन को कम लागत में और भी ज्यादा प्रभावी बनाने में जुटे हुए हैं।  


अब तक कीटनाशी छिडक़ाव के लिए हुआ ड्रोन का इस्तेमाल

पिछले साल 2020 में राजस्थान में टिड्डी दल प्रकोप के नियंत्रण के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कीटनाशी छिडक़ाव के लिए किया गया था। ड्रोन से छिडक़ाव के अच्छे रिजल्ट भी देखने को मिले थे। ड्रोन का प्रयोग खास तौर पर ऊंचाई वाले और ऐसे क्षेत्र जहां आसानी से माउंटेड स्प्रेयर और दमकलें नहीं जा सकती वहां ड्रोन का उपयोग फायदेमंद साबित होता है। ड्रोन से 1 घंटे में 10 एकड़ क्षेत्र में कीटनाशक का छिडक़ाव किया जा सकता है। 


ड्रोन के इस्तेमाल में कुछ तकनीकी बाधाएं भी

कृषि विभाग के दूसरे कुछ अधिकारियों के अनुसार ड्रोन का उपयोग फायदेमंद तो है लेकिन इसमें कुछ तकनीकी बाधाएं भी हैं। दरअसल ड्रोन जहां से उसे उड़ाया जाता है वहीं से छिडक़ाव शुरू कर देता है और प्रभावित जगह तक पहुंचते-पहुंचते उसका काफी रसायन खत्म हो चुका होता है। वहीं उसे लगातार ज्यादा देर तक नहीं उड़ाया जा सकता है। 

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