प्रकाशित - 05 Aug 2022
कद्दूवर्गीय फसलों में तोरई की खेती को लाभकारी खेती में गिना जाता है। बारिश का समय इसकी खेती के लिए काफी अच्छा माना जाता है। इस खेती की सबसे बड़ी खासियत हैं कि इसके बाजार भाव अच्छे मिल जाते हैं। इसे साल में दो बार ग्रीष्म ऋतु जिसे जायद कहा जाता है और दूसरी खरीफ सीजन में भी इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। कच्ची तोरई की सब्जी बनाई जाती है, जो स्वादिष्ट होने के साथ ही सेहत के लिए भी काफी लाभकारी होती है। वहीं इसके सूखे बीजों से तेल निकाला जाता है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को कम खर्च में तोरई की खेती करने के 7 टिप्स बता रहे हैं जिन्हें अपनाकर आप इसकी खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
तोरई की खेती के लिए नर्सरी पॉली हाउस में इसकी नर्सरी तैयार की जा सकती है। तोरई की बुवाई के लिए नाली विधि सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इसमें पहले तोरई की पौध तैयार की जाती है और इसके बाद इसे मुख्य खेत में रोपत किया जाता है।
तोरई की अच्छी फसल के लिए कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मध्यम और भारी मिट्टी अच्छी मानी जाती है जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था हो। मिट्टी का पीएच मान करीब 6.5 से 7.5 होना चाहिए। इसकी खेती में दोमट मिट्टी में नहीं करनी चाहिए।
तोरई की पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका आदि को उन्नत किस्में है। अधिकतर किसानों द्वारा घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बूर 2 आदि किस्में का प्रयोग ली जाती है। इन उन्नत किस्मों की बीज रोपाई के बाद 70 से 80 दिन में फल मिलने शुरू हो जाते है। यह किस्में 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से पैदावार देती है।
तोरई की पौध रोपाई मेड के अंदर डेढ़ से दो फीट दूरी रखते करनी चाहिए ताकि पौधे भूमि की सतह पर अच्छे से फैल सके। इसकी रोपाई के लिए तैयार की गई क्यारियों के मध्य 3 से 4 मीटर तथा पौधे से पौधे के मध्य 80 सेमी. की दूरी रखनी चाहिए। नालियां 50 सेमी. चौड़ी व 35 से 45 सेमी. गहरी होनी चाहिए।
तोरई फसल को रोगों से बचाने और अच्छा उत्पादन पाने के लिए लिए इसके बीजों को बुवाई से पहले थाइरम नामक फंफुदनशक (2 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज) दर से उपचारित करना चाहिए।
बीजों के शीघ्र अंकुरण के लिए बीजों को बुवाई से पूर्व एक दिन के लिए पानी में भिगोना चाहिए तथा इसके बाद बोरी या टाट में लपेट कर किसी गर्म जगह पर रखना चाहिए। इससे बीजों को जल्द अंकुरण में मदद मिलती है।
तोरई की खेती (Torai Ki Kheti) में साधारण भूमि में 15-20 टन तक गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। तोरई को 40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा के समय ही समान रूप से मिट्टी में मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की बची हुई शेष मात्रा 45 दिन बाद पौधों की जड़ों के पास डालकर मिट्टी चढ़ा देना चाहिए।
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