प्रकाशित - 25 Jan 2024
किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से प्रयास जारी हैं। सरकार नई-नई योजनाएं चलाकर किसानों को लाभान्वित कर रही है। इन योजनाओं में पीएम किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि कई ऐसी योजनाएं है जिनका लाभ किसानों को मिल रहा है। वहीं राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर योजनाओं का संचालन करके किसानों को लाभ पहुंचा रही है। इसी कड़ी में राज्य सरकार अब एक ही खेत में तीन तरह की खेती को बढ़ावा दे रही है। इस तकनीक का विकास राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा द्वारा किया गया है। इस तकनीक का इस्तेमाल करके किसान एक ही खेत में तीन तरह की खेती करके पूरे सालभर पैसा कमा सकेंगे, इससे उनकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।
राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा की ओर से एक ऐसी फसल चक्र तकनीक का विकास किया गया है जो किसानों को सालभर कमाई दे सकती है। बिहार कृषि विभाग के सचिव संजय अग्रवाल ने हाल ही में राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र का भ्रमण किया और संस्थान द्वारा किए गए कार्यों का अवलोकन किया। सचिव ने मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा को एक खेत में मखाना-मछली-सिंघाड़ा को फसल चक्र के रूप में अपनाने के लिए किसानों को प्रशिक्षित करने के निर्देश दिए हैं ताकि किसानों को जल जमाव वाले कृषि क्षेत्र में मखाना, मछली और सिंघाड़ा से साल भर आय प्राप्त हो सकें।
एक ही खेत में मखाना-मछली-सिंघाड़े की खेती की तकनीक के अंतर्गत मखाना अनुसंधान केंद्र की ओर से सिंघाड़े की दो किस्मों स्वर्णा लोहित तथा स्वर्णा हरित को विकसित किया गया है। इसकी खेती खेत में गड्ढा खोदकर की जा रही है। इसके अलावा यहां के किसान खेत में एक फीट गड्ढा खोदकर मखाने की खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें अन्य फसलों से अधिक लाभ मिल रहा है। इस तरह खेती से यहां बेहतर फसल उत्पादन के साथ ही जल संरक्षण को बढ़ावा मिल रहा है। इसके अलावा किसान खेत में तालाब बनवा कर मछली पालन कर रहे हैं। इस तरह किसान एक ही खेत में तीन तरह की खेती करके अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं।
कृषि विभाग के सचिव ने कहा कि मखाना को उनके संस्थान द्वारा विकसित स्वर्ण वैदेही और बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, भागलपुर द्वारा विकसित सबौर मखाना-1 तथा मखाना के पारंपरिक बीज से उत्पादन तथा तालाब में उत्पादित मखाना तथा खेत में उत्पादित मखाना के लाभ का तुलनात्मक अध्ययन करने के निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि बिहार के किसानों को मखाना के उन्नत बीज की किस्म उपलब्ध कराई जा सके, इसके लिए अनुसंधान केंद्र बेहतर क्वालिटी के बीज उत्पादन और नई किस्म को विकसित करने पर जोर दे।
कृषि विभाग के सचिव ने अनुसंधान केंद्र को वार्षिक प्रशिक्षण कैलेंडर तैयार करने के निर्देश दिए। उन्होंने मखाना अनुसंधान केंद्र पर प्रशिक्षण की सुविधा होते हुए किसानों को प्रशिक्षण नहीं दिए जाने पर दु:ख जताया और निर्देश दिए कि अब प्रत्येक माह किसानों को प्रशिक्षण दिया जाए। इसके लिए आत्मा योजना के तहत संस्थान को सहयोग दिया जाएगा। इसके अलावा सचिव ने किसानों को मखाना-पानी सिंघाड़ा-मखाना के उत्पाद तैयार करने तथा मखाना का विक्रय आदि विषयों पर प्रशिक्षण देने के लिए एक वार्षिक कैलेंडर तैयार करने निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि इस वार्षिक कैलेंडर के अनुसार ही मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा तथा भोला शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिमा में किसानों को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
बिहार में मखाना, सिंघाड़ा और मछली की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी के साथ बिहार सरकार की ओर से किसानों को मखाना व मछली पालन के लिए सब्सिडी भी दी जाती है। यहां के मिथिला मखाना को जीआई टैग मिला हुआ है। सरकार इसका विस्तार करना चाहती है। इसके लिए सरकार की ओर से मखाना की खेती के लिए 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। मखाना की खेती की प्रति हैक्टेयर लागत 97 हजार रुपए आती है, इस पर सरकार की ओर से 72,750 रुपए की सब्सिडी जाती है। वहीं राज्य सरकार की ओर से किसानों को पेन आधारित (मन, चौर और झील जैसे-जल स्त्रोत) में मछली पालन के लिए 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जाती है। राज्य के किसानों को 7 लाख 87 हजार 500 रुपए तक की सब्सिडी दी जाती है।
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