प्रकाशित - 29 May 2023
पशुपालन ज्यादातर किसानों की आय का एक बड़ा स्रोत है। किसान खेती के साथ पशुपालन करना पसंद करते हैं। क्योंकि इससे किसान की पशुपालन में लागत कम हो जाती है और किसान अधिक मुनाफा बना सकता है। सरकार द्वारा किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए व्यापक स्तर पर पशुपालन और कृषि अनुसंधान पर राशि व्यय की जाती है, ताकि किसानों को अच्छे नस्ल के पशु मिल पाएं, जिससे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके। गौरतलब है कि भारत पशुधन के मामले में दुनिया भर में पहले स्थान पर आने वाला देश है। इसके बावजूद भारत दुग्ध उत्पादन के मामले में बहुत पीछे है। देश में लगातार पशुओं की नस्लों पर तेजी से अनुसंधान किए जा रहे हैं। हाल ही में मुर्रा भैंस को लेकर पशुपालकों के लिए अच्छी खबर आ रही है कि मुर्रा भैंस के 2 नए क्लोन विकसित कर लिए गए हैं।
ट्रैक्टर जंक्शन के इस पोस्ट में हम मुर्रा भैंस के दोनों क्लोन की तकनीक, दूध का उत्पादन आदि की जानकारी दे रहे हैं।
पशुओं के नस्ल को सुधारने के लिए और दूध की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए नस्लों की क्लोनिंग की जाती है। ताकि पशु ज्यादा दूध का उत्पादन कर सके। साथ ही उसमें रोगों से लड़ने की क्षमता भी ज्यादा हो सके। क्लोनिंग तकनीक के जरिए पशुओं की नई प्रजाति को जन्म दिया जाता है। ये प्रजातियां मूल पशु की तरह ही दिखती हैं, लेकिन उसमें कई ऐसे गुण होते हैं। जिससे किसानों को काफी फायदा होता है।
एनडीआरआई करनाल ने मुर्रा भैंस की क्लोनिंग कर उसे विकसित किया है। इस डेवलपमेंट के बाद मुर्रा भैंस की एक नई प्रजाति आएगी जिससे भैंस के दूध का उत्पादन डेढ़ से दो गुना तक बढ़ जाएगा और किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे। इसके अलावा इन पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी काफी अधिक होती है।
इस तकनीकी में पशुओं की कोशिकाओं को ओवरी केंद्रक की मदद से मिलाया जाता है। जिसके 8 दिनों बाद पशु की कोशिका का भ्रूण अच्छे से तैयार हो जाती है। जिसके बाद ये भ्रूण कोशिकाओं के गर्भाशय में ट्रांसफर कर दिया जाता है।
सामान्यतः अच्छी नस्ल की भैंस 25 लीटर दूध देती है। लेकिन इस नई क्लोन के विकसित होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि इससे दूध की पैदावार डेढ़ से दो गुना बढ़ जाएगी। मुर्रा भैंस के इस क्लोन से 40 लीटर से 50 लीटर दूध की पैदावार होने की उम्मीद है। ये भैंस हर साल बच्चा देने में सक्षम है, चूंकि भैंस पालन में अच्छा मुनाफा तभी संभव है। जब भैंस हर साल बच्चा दे। बच्चा न देने वाली भैंस किसानों के लिए नुकसान दायक होती है। अगर एक साल भी भैंस बच्चा नहीं देती है, तो ऐसी स्थिति में किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ जाता है। दुधारू भैंस और बांझ भैंस को खिलाने में लगभग एक जैसा ही खर्च पड़ता है, जितने दिन तक भैंस दूध नहीं देती उतने दिन तक किसान को नुकसान उठाना पड़ जाता है। लेकिन इस भैंस में हर साल बच्चा देने की क्षमता है, जो इसे खास बनाती है।
भैंस पालन को बेहतर तरीके से करने के लिए जरूरी है कि भैंस के लिए सर्वप्रथम मूलभूत सुविधाएं बेहतर तरीके से विकसित की जाए। मूलभूत सुविधाओं से मतलब है, भैंस के लिए एक अच्छा बाड़ा, उसके लिए संतुलित आहार और जल की व्यवस्था, साफ-सुथरी जगह पर भैंस का रख-रखाव आदि। इसके अलावा भैंस को मौसम के अनुसार देखभाल किया जाना जरूरी होता है।
किसी भी प्रकार के रोग की स्थिति में भैंस का तुरंत उपचार किया जाना सही रहता है। सामान्यतः भैंस पर गलघोंटू रोग का ज्यादा प्रकोप रहता है। आसपास किसी भी प्रकार के संक्रमित रोगों की खबर आने पर पशुओं का टीकाकरण जरूर करवा लें।
भैंस पालन में किसानों को सरकार द्वारा कई तरह से सब्सिडी भी प्रदान की जाती है। इसके लिए सरकार द्वारा लोन और सब्सिडी दोनों का प्रावधान है। भैंस पालन के लिए किसान पशु किसान क्रेडिट कार्ड ले सकते हैं। इस कार्ड के जरिए किसानों को बिना गारंटी 1 लाख 60 हजार रूपए तक का लोन मिल सकता है। वहीं अगर कुछ कोलैटरल या गारंटी जमा करते हैं तो ऐसे में किसानों को अधिकतम 3 लाख रुपए तक का ऋण मिल सकता है।
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