प्रकाशित - 21 Apr 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
आज किसान परंपरागत फसलों की खेती जगह मुनाफे वाली फसलों की खेती करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं। इन्हीं फसलों में रतालू भी आता है। इसकी खेती करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते है। रतालू शंकरकंद की तरह दिखने वाली सब्जी है जो जमीन के नीचे उगती है। इसे पकाकर, उबाल कर, भून कर, तल कर, सेंक कर खाया जा सकता है। रतालू से सब्जी, चिप्स, वेफर आदि बनाए जाते हैं। रतालू की खेती मुख्य रूप से अफ्रीका में होती है। लेकिन अब इसकी खेती भारत में के कई राज्यों में होने लगी है। इसकी अधिकांश खेती मेवाड़ क्षेत्र में की जाती है। यहां राजसमंद की रेलमगरा तहसील क्षेत्र में बनास नदी के किनारे बसे गांवों के किसान प्रमुख रूप से इसकी खेती करते हैं। यहां के रतालू की मांग मध्यप्रदेश और गुजरात में बहुत है। इसका बाजार भाव भी अच्छा मिल जाता है। किसान चाहे तो रिजके के खेत में इसकी खेती करके दोहरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। बता दें कि रिजका जिसे लुसर्न भी कहा जाता है। ये एक प्रकार की चारा फसल होती है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको रतालू की खेती कैसे करें (how to cultivate yam) और इसकी खेती से कितना लाभ हो सकता है। इस बात की जानकारी आपको दे रहे हैं।
रतालू में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा होती है। इसमें विटामिन सी, विटामिन बी-6, पोटेशियम, मैंगनीज, फाइबर आदि पोषक तत्व होते हैं। 110 ग्राम रतालू में करीब 118 कैलोरी होती है। इसलिए इसका सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना जाता है। इसमें वसा की मात्रा 0.2 ग्राम, कोलेस्टॉल 0 मिली ग्राम, सोडियम 9 मिली ग्राम, पोटेशियम 816 मिली ग्राम, कार्बोहाइड्रेट 28 ग्राम, आहारीय रेशा 4.1 ग्राम, शर्करा 0.5 ग्राम, प्रोटीन 1.5 ग्राम, विटामिन ए 138 आईयू, विटामिन सी 17.1 मिली ग्राम, कैल्शियम 17 मिली ग्राम, आयरन 0.5 मिली ग्राम, विटामिन डी 0 आईयू, विटामिन बी6 0.3 मिली ग्राम, विटामिन बी 12 मिली ग्राम और मैग्नीशियम 21 मिली. ग्राम होता है।
एक अनुमान के मुताबिक रतालू की एक बीघा में बुवाई करने पर करीब 15,000 रुपए का खर्चा आता है। लेकिन इससे मुनाफा काफी अच्छा होता है सामान्यत: सफेद रतालू का होलसेल भाव 15 से 20 रुपए किलोग्राम और लाल रतालू का होलसेल भाव 30-40 रुपए किलोग्राम होता है। जबकि इसका बाजार में भाव 60 से 70 रुपए किलो तक मिल जाते हैं। इसकी एक हैक्टेयर में करीब एक टन की फसल होती है। ऐसे में किसान इसकी खेती से लाखों रुपए की कमाई से कर सकते हैं।
रतालू की खेती उष्ण जलवायु में की जा सकती है। इसकी खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी रहती है। यहीं कारण है कि बनास नदी के किनारे इसकी खेती सबसे अधिक होती है। इसकी खेती के लिए उपजाऊ व बिना जल भराव वाली भूमि का चयन करना चाहिए। इसकी खेती के लिए क्षारीय भूमि अच्छी नहीं रहती है।
रतालू की दो किस्में पाई जाती है एक सफेद और दूसरी लाल किस्म है। बता दें कि इंदौर के प्रसिद्ध गराडू नाश्ते में सफेद रतालू इस्तेमाल किया जाता है। जबकि गुजरात में लाल रतालू की मांग सबसे ज्यादा रहती है। यहां इसकी मांग अहमदाबाद, बडोदरा व सूरत में सबसे अधिक है।
रतालू की खेती के लिए खेत तैयार करते समय सबसे पहले खेत की गहरी जुताई की जानी चाहिए। इसके लिए आप ट्रैक्टर, रोटावेटर, कल्टीवेटर की सहायता से खेत की जुताई करके इसे अच्छी तैयार कर सकते हैं। इसके बाद खेत की क्यारियों में 50 सेंटीमीटर की दूरी पर डोलियां बना लें। अब इन डोलियों पर 30 सेंटीमीटर की दूरी पर रतालू की बुवाई करें। इसके लिए रतालू के 50 ग्राम तक के टुकड़े लें और इन्हें 0.2 प्रतिशत मैन्कोजेब दवा के घोल में 5 मिनट तक उचारित कर लें और इसके बाद इसकी बुवाई करें। इसकी बुवाई के लिए प्रति हैक्टेयर 20 से लेकर 30 क्विंटल तक रतालू का बीज की आवश्यकता होती है। बता दें कि रतालू के ऊपरी भाग के टुकड़े सबसे अच्छी पैदावार देते हैं। इसलिए इसकी बुवाई में इसके ऊपरी भाग के टुकड़ों का उपयोग करना चाहिए।
रतालू की खेती का उचित समय अप्रैल से जून तक का माना जाता है। लेकिन कई जगहों पर किसान इसकी बुवाई मार्च माह में ही कर देते हैं और नवंबर में रतालू निकालने का काम शुरू हो जाता है।
खेत की तैयारी के समय प्रति हैक्टेयर 200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद डाल देनी चाहिए। वहीं 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश की मात्रा डोलियां बनाने से पहले भूमि में मिला देनी चाहिए। इसके अलावा 50 किलोग्राम नत्रजन दो समान हिस्सों में करके बुवाई के दो और तीन माह बाद पौधे के चारों ओर डाल देनी चाहिए।
रतालू की बुवाई के तुरंत बाद इसकी प्रथम सिंचाई कर देनी चाहिए। इसकी फसल को बुवाई से लेकर तैयार होने के दरमियान 15 से लेकर 25 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। इसलिए आवश्यतानुसार समय-समय पर इसकी सिंचाई करते रहना चाहिए। इसकी गुड़ाई करके मिट्टी चढ़ानी जाती है। आवश्यकतानुसार निराई का काम भी करते रहना चाहिए।
रतालू की फसल 8 से 9 माह में तैयार हो जाती है। इसके बाद रतालू के पौधे खोदकर निकाला जाता है। एक अनुमान के मुताबिक इसकी एक हैक्टेयर में करीब 250 से लेकर 400 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है।
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