प्रकाशित - 15 Nov 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
तिलहनी फसलों में सरसों की खेती (Mustard Cultivation) का भी अपना एक अलग ही स्थान है। इसकी खेती से भी किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। जिन किसानों ने रबी सीजन की फसलों की खेती के तहत सरसों की फसल लगाई है। उनके लिए भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान सेवर, भरतपुर ने महत्वपूर्ण सलाह जारी की है। संस्थान के अनुसार अत्याधिक तापमान के कारण इस समय सरसों की फसल में पहली सिंचाई जल्द करने पर कॉलर रॉट नामक बीमारी का खतरा बढ़ गया है। इससे फसल झुलसने की संभावना बन रही है।
ऐसे में समय से पहले सिंचाई करने पर किसानों को नुकसान हो सकता है। इस रोग से बचाव के लिए भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. पीके राय ने किसानों को सलाह दी है कि वे सरसों की पहली सिंचाई करते समय भूमि में नमी की स्थिति को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता के अनुसार ही सिंचाई करें। इससे सरसों की बेहतर पैदावार मिलने में मदद मिलेगी, वहीं रोगों से भी फसल को बचाया जा सकेगा।
भारतीय सरसों अनुसंधान संस्थान सेवर, भरतपुर की ओर से किसान भाइयों से अपनी फसल की सुरक्षा के लिए इन निर्देशों का पालन करने और उचित सावधानी बरतने की अपील की है। किसान किसी भी जानकारी या सहायता के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) या स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।
कॉलर रोट रोग जिसे तना गलन रोग भी कहा जाता है। यह एक कवक जनित रोग है जो स्क्लेरोटियम रॉल्फिस के कारण होता है। इस रोग में सबसे पहले जमीन के पास पौधों का तना सड़ने लगता है। इसके कारण फसल के पौधे फलने की अवस्था में ही मुरझाना शुरू हो जाते हैं। इस रोग की शुरुआत में पत्तियों पर छोटे गहरे हरे धब्बे दिखाई देते हैं जो बड़े होने पर अपना रंग खो देते हैं। इसके कारण फलां पर गहरे गीले धब्बे बन जाते हैं जिन पर सफेद रंग की बढ़ोतरी देखी जा सकती है। इस बीमारी से ग्रसित पौधे सिकुड़ जाते हैं लेकिन पौधे से जुड़े रहते हैं। इस रोग का रोगकारक मिट्टी में मौजूद रहता है। युवा पौधों पर इस बीमारी के संक्रमण फैलने की संभावना अधिक रहती है। विशेष कर जब मौसम गर्म हो और अधिक बारिश के कारण जमीन में बहुत गीली हो चुकी हो तो इस स्थिति में इस रोग के फैलने की संभावना अधिक रहती है। यह रोग फसल के निचले भाग से पनपता है और धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है और फसल को नुकसान पहुंचाता है।
सरसों की फसल में पहली सिंचाई फूल आने से पहले 28 से 35 दिनों के बाद की जाती है। वहीं दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय 70 से 80 दिनों के बाद की जाती है। यदि सर्दी में बारिश हो जाए तो दूसरी सिंचाई नहीं करें तब भी अच्छी पैदावार प्राप्त हो जाती है। पानी की कमी या खारा पानी होने की स्थिति में एक बार सिंचाई करनी चाहिए। यदि सिंचाई का पानी क्षारीय है तो पानी की जांच करवाकर उचित मात्रा में जिप्सम और गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
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