धान की फसल में खरपतवार का प्रकोप, ऐसे करें नियंत्रण

Share Product प्रकाशित - 18 Aug 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

धान की फसल में खरपतवार का प्रकोप, ऐसे करें नियंत्रण

जानें, धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के उपाय

इस खरीफ सीजन में देश के कई राज्यों के किसानों ने धान की बुवाई की है। जिन किसानों के खेत में धान की फसल कुछ बड़ी हो गई है। इसी के साथ धान की फसल के साथ कुछ खरपतवार भी पनपने लगते हैं। खपतवारों के प्रकोप से धान के उत्पादन में कमी आ जाती है। वहीं खरपतवार धान की फसल को नुकसान भी पहुंचाती है। ये खरपतवार वे अवांछित पौधे होते हैं जिनकी खेत में जरूरत नहीं होती है, क्योंकि इन्हीं खरतपवारों में कीट भी पनप जाते हैं और धान की खेती को नुकसान पहुंचाते हैं। यदि समय पर इन खरतपवारों को खेत से नहीं हटाया जाता है तो ये धान की फसल के साथ बड़े होकर धान के उत्पादन में बाधा पहुंचाते हैं। परिणामस्वरूप धान के उत्पादन में कमी आ जाती है। आज हम किसानों को धान को कौनसे खरपतवार हानि पहुंचाते हैं और इन पर किस तरह नियंत्रण किया जाए, इस विषय पर जानकारी दे रहे हैं। 

खरीफ फसलों में पाए जाने वाले खरपतवार

वर्षा आधारित उपजाऊ भूमि में प्राय: एकवर्षीय एवं बहुवर्षीय खरपतवार अधिक उग जाते हैं। वहीं निचली भूमि में एकवर्षीय घासें, मोथावर्गीय एवं चौड़ी पत्तियों वाले खरपतवार पाए जाते हैं। खरीफ फसलों में मुख्यत: तीन तरह के खरपतवार पाए जाते हैं, जो इस प्रकार से हैं-

1. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार 
2. संकरी पत्ती वाले खरपतवार
3. मोथावर्गीय खरपतवार

चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार

ये दो बीज पत्रीय पौधे होते हैं, इनकी पत्तियां प्राय: चौड़ी होती है। इन खरपतवारों में प्रमुख रूप से सफेद मुर्ग, कनकौवा, जंगली जूट, जंगली तंबाकू आदि शामिल हैं।

संकरी पत्ती वाले खरपतवार 

इनको घास कुल के खरपतवार भी कहते हैं, इस कुल के खरपतवारों की पत्तियां पतली एवं लंबी होती है। जैसे- सांवां, दूब घास आदि इसी प्रकार के खरपतवारों की श्रेणी में आते हैं।

मोथावर्गीय खरपतवार

इस कुल के खरपतवारों की पत्तियां लंबी एवं तना तीन किनारों वाला ठोस होता है। जड़ों में गांठे पाई जाती है, जैसे- मोथा। 

धान की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले खरपतवार 

धान की फसल में अनेक खरपतवारों का प्रकोप होता है। इनमें होरा घास बुलरस, छतरीदार मोथा, गन्ध वाला मोथा, पानी की बरसीम, सांवा, सांवकी, बूटी, मकरा, कांजी, बिलुआ कंजा, मिर्च बूटी, फूल बूटी, पान पत्ती, बोन झलोकिया, बमभोली, घारिला, दादमारी,  साथिया, कुसल आदि खरपतवार पनप जाती है। ये धान की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं।

खरपतवारों के नियंत्रण के लिए करें निराई-गुड़ाई

खरपतवारों से फसल को होने वाली हानि खरपतवारों की संख्या, किस्म और फसल से प्रतिस्पर्धा के समय पर निर्भर करती है। वार्षिक फसलों में यदि खरपतवार बुआई के 15-30 दिनों के अंदर निकाल दिए जाएं, तो उपज पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। बुआई के 30 दिनों से अधिक समय होने के बाद यदि खरपतवारों को नष्ट करते हैं, तो उपज में कमी आती है। इसलिए क्रांतिक अवस्था पर ही फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना लाभदायक होता है। इससे उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है। बता दें कि फसल की क्रांतिक अवस्था फूल आने के समय को माना जाता है। जबकि धान में कल्ले निकलने की शुरुआती अवस्था क्रांतिक अवस्था कहलाती है। इस अवस्था में फसलों की सिंचाई करके इनमें पनपने वाली खरपतवारों को निकल कर खेत से कहीं दूर फेंक देना चाहिए या इसे नष्ट कर देना चाहिए। 

धान की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक उपाय

  • धान में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार जैसे- सफेद मुर्ग, कनकौवा, जंगली जूट, जंगली तंबाकू आदि के नियंत्रण के लिए आक्सीफ्लूरफेन 150-250 ग्राम/ हैक्टेयर बुआई के 0-3 दिनों बाद संकरी छिडक़ाव करना चाहिए।
  • वहीं धान में संकरी पत्ती वाले खरपतवार जैसे- सांवां, दूब घास आदि के लिए प्रेटीलाक्लोर 750 ग्राम/हैक्टेयर बुआई के 0-3 दिनों बाद या रोपाई के 3-7 दिनों बाद छिडक़ाव करना चाहिए।
  • संकरी पत्ती, चौड़ी पत्ती वाले और मोथावर्गीय खरपतवारों की रोकथाम के लिए बेनसल्फ्यूरॉन + प्रेटिलाक्लोर 660 ग्राम/हेक्टेयर रोपाई के 0-3 दिनों बाद छिडक़ाव करना चाहिए।
  • चौड़ी पत्ती और मोथावर्गीय खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुवाई के 0-5 दिनों बाद रोपाई के 8-10 दिनों बाद पाइराजोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम/हेक्टेयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए।
  • संकरी पत्ती वाले खरपतवारों प्रबंधन के लिए फिनोक्साप्रोप पी इथाइल 60-70 ग्राम/हैक्टेयर की दर से रोपाई या बुआई के 25-30 दिनों बाद छिडक़ाव किया जाना चाहिए।
  • संकरी पत्ती वाले खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए सायहेलोफॉप ब्यूटाइल 75-90 ग्राम/हैक्टेयर बुवाई के 25-30 दिनों बाद या रोपाई के 10-15 दिनों बाद छिडक़ाव किया जाना चाहिए। 
  • संकरी पत्ती, चौड़ी पत्ती और मोथावर्गीय खरपतवारों के नियंत्रण के लिए इथोसल्फ्यूरॉन 18 ग्राम/हैक्टेयर का छिडक़ाव बुआई या रोपाई के 20 दिनों बाद किया जाना चाहिए। 
  • संकरी पत्ती, चौड़ी पत्ती और मोथावर्गीय खरपतवारों के प्रबंधन के लिए बिसपाईरिबेक-सोडियम 25 ग्राम/हैक्टेयर का प्रयोग रोपाई या बुआई के 15-20 दिनों बाद किया जाना चाहिए।

विशेष- किसी भी कीटनाशक या खरपतवार नाशक दवा इस्तेमाल गांव के अनुभवी व्यक्ति या अपने जिले के निकटतम कृषि विभाग के अधिकारियों की देखरेख या सलाह के बाद करना चाहिए। 


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