प्रकाशित - 04 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत में सरसों का तेल लगभग सभी घरों में खाद्य तेल के रूप में काम आता है। भारत में सरसों की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष्ट्र में की जाती है। सरसों की खेती की खास बात यह है की यह सिंचित और असिंचित, दोनों ही तरह के खेतों में उगाई जा सकती है। सोयाबीन और पाम के बाद सरसों विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा महत्तवपूर्ण तिलहन फसल है। मुख्य तौर पर सरसों के तेल के साथ-साथ सरसों के पत्ते का उपयोग सब्जी बनाने में होता हैं और सरसों की खली भी बनती है जो कि दुधारू पशुओं को खिलाने के काम आती है।
घरेलू बाज़ार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में भी सरसों की मांग में तेजी आने के कारण किसानों को इस साल सरसों का काफी अच्छा भाव मिला है। वहीं केंद्र सरकार ने इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी बढ़ोतरी की है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट के माध्यम से सरसों की खेती से जुड़ी सभी खास बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
सरसों की खेती करने से पहले कुछ चीजें ध्यान रखना पड़ता है जिससे हमें फसल का सही उत्पादन मिल सके, वो हैं
सरसों भारत की प्रमुख तिलहन फसल में से एक है, रबी की फसल होने के कारण मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक सरसों की बुवाई कर देनी चाहिए। सरसों की फसल का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 15 से 25 डिगी तापमान की आवश्यकता होती है।
वैसे तो सरसों की खेती (sarso ki kheti) सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन सरसों की अच्छी उपज पाने के लिए समतल एवं अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है, लेकिन यह लवणीय एवं बंजर भूमि नहीं होनी चाहिए।
सरसों की खेती में भुरभुरी मिट्टी की आवश्यकता होती है, खेत को सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करनी चाहिए। इसके बाद दो से तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर के माध्यम से करना चाहिए। इसकी जुताई करने के बाद खेत में नमी रखने के लिए व खेत समतल करने के लिए पाटा लगाना अति आवश्यक हैं। पाटा लगाने से सिंचाई करने में समय व पानी दोनों की बचत होती है।
जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हो वहां सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध ना हो वहां सरसों की बीज की मात्रा भिन्न हो सकती है। बता दें कि बीज की मात्रा फसल की किस्म के आधार पर निर्भर करती है। यदि फसल की अवधि अधिक दिनों की है तो बीज की मात्रा कम लगेगी और यदि फसल कम अवधि की है तो बीज की मात्रा ज्यादा लगेगी।
सरसों की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की जानकारी होना भी आवश्यक है, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकें। सरसों की कई तरह की किस्में सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र के लिए अलग-अलग हैं
1. आर.एच (RH) 30 : सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र दोनो ही स्थितियों में गेहूं, चना एवं जौ के साथ बुवाई करने के लिए उपयुक्त होती हैं।
2. टी 59 (वरूणा) : यह किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई के साधन की उपलब्धता नहीं होती हैं। इसकी उपज असिंचित क्षेत्र में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। इसके दाने में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत होती है।
3. पूसा बोल्ड : आशीर्वाद (आर.के) : यह किस्म देर से बुवाई के लिए (25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक) उपयुक्त होती है।
4. एन.आर.सी. एच.बी. (NRC HB) 101 : ये किस्म उन क्षेत्रों में अच्छी पैदावार प्रदान करती हैं जहां सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होती हैं। ये किस्म 20 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन प्रदान करती हैं।
सरसों की फसल में पहली सिंचाई 25 से 30 दिन पर करनी चाहिए तथा दूसरी सिंचाई फलियाें में दाने भरने की अवस्था में करना चाहिए, यदि जाड़े में वर्षा हो जाती है, तो दूसरी सिंचाई न भी करें तो भी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। ध्यान रहे सरसों में फूल आने के समय खेत की सिंचाई नहीं करनी चाहिए।
सरसों की फसल में सिंचाई सामान्यत : पट्टी विधि द्वारा करनी चाहिए। खेत के आकार के अनुसार 4 से 6 मीटर चौड़ी पट्टी बनाकर सिंचाई करनी चाहिए, इस विधि से सिंचाई करने से पानी का वितरण पूरे खेत में समान रूप से होता है।
जिन खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध हो वहां के लिए 6 से 12 टन सड़े हुए गोबर की खाद, 160 से 170 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट ,50 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश एवम 200 किलोग्राम जिप्सम बुवाई से पूर्व खेत में मिलाना उपयुक्त होता है। यूरिया की आधी मात्रा बुवाई के समय एंव बची हुई आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद खेत में मिला दें। जिन खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध ना हो वहां के लिए वर्षा से पुर्व 4 से 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 85 से 90 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 33 किलोग्राम म्यूरेट व पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करते समय खेत में डाल दें।
सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन बाद खेत से घने पौधों को निकाल देना चाहिए व उनकी आपसी दूरी 15 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए, खरपतवार खत्म करने के लिए सरसों के खेत में निराई व गुड़ाई सिंचाई करने से पहले अवश्य करनी चाहिए। खरपतवार खत्म ना होने की स्थिति में दूसरी सिंचाई के बाद भी निराई व गुड़ाई करना चाहिए। रासायनिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण करने के लिए बुवाई के तुरंत बाद 2 से 3 दिन के अंदर पेंडीमेथालीन 30 ईसी रसायन की 3.3 लीटर मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
सरसों की फसल में जब 75% फलियां सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल को मशीन से या हाथ से काटकर, सुखाकर या मड़ाई करके बीज को अलग कर लेना चाहिए, सरसों के बीज जब अच्छी तरह से सूख जाएं तभी उनका भंडारण करना चाहिये।
जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है वहां इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हैं वहां 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त हो सकती हैं।
केंद्र सरकार ने इस साल सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में 150 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर 5200 रुपये प्रति क्विंटल का भाव तय किया है। पिछले वर्ष सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये था। सरसों की बढ़ती मांग और उपलब्धता में कमी के कारण इस बार खुले बाज़ारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा भाव मिल रहे हैं। खुले बाज़ारों में सरसों 6500 से 9500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। किसान अपनी सरसों की फसल देश की प्रमुख मंडियों में जहां भाव अधिक हो, वहां अपनी फसल बेच सकते हैं। इसके अलावा सीधे तेल प्रोसेसिंग कंपनियों से संम्पर्क करके सीधे कंपनियों को भी बेचा जा सकता है। वहीं किसान खुले बाज़ार में व्यापारियों को भी अपनी फसल बेच सकते हैं। बता दें कि इस साल सरसों की फसल ने किसानों को अच्छे दाम दिलाए हैं। किसानों को आगे भी सरसों के अच्छे भाव मिलने की उम्मीद है।
सरसों की खेती में कृषि उपकरण का प्रयोग करके समय व श्रम दोनों की बचत की जा सकती है। सरसों की खेती के लिए जिन कृषि उपकरणों की जरूरत पड़ती है, वो निम्नलिखित हैं
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