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रबी फसल की बुवाई से पहले जानें, ये जरूरी बातें, होगी बंपर पैदावार

प्रकाशित - 18 Oct 2022

रबी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बुवाई का तरीका, मृदा और उर्वरक प्रबंधन की तकनीक

हमारे देश में रबी सीजन की शुरुआत हो चुकी हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों ने रबी की प्रमुख फसलों की बुवाई शुरू कर दी हैं। वर्तमान समय में खेती तकनीक और मशीनों पर आधारित हो गई है। ऐसे में सही तरीके से खेती करने के लिए किसान भाइयों के पास रबी सीजन की कृषि से संबंधित सही जानकारी होना बहुत ही आवश्यक है। यदि उन्हें मौसम और नई तकनीकों की सही जानकारी नहीं रहेगी तो फसलों के उत्पादन पर भी इसका असर पड़ सकता है। ऐसे में किसान भाई अधिक उत्पादन प्राप्त के लिए क्या करें ताकि पैदावार भी अधिक हो और किसानों को अच्छा मुनाफा भी मिल सके।

आज हमारे किसान भाइयों को ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से रबी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बुवाई का तरीका, मृदा और उर्वरक प्रबंधन तकनीक के बारे में जानकारी देंगे जो आपकी फसल की लागत कम करने और उत्पादन बढ़ाने में मददगार साबित होगी। 

रबी सीजन की प्रमुख फसलें

रबी की फसल भारत में अक्टूबर और नवंबर माह के दौरान बोई जाती है जो कम तापमान में बोई जाती है, फसल की कटाई फरवरी और मार्च महीने में की जाती है। आलू, मसूर, गेहूं, जौ, तोरिया (लाही), मसूर, चना,  मटर व सरसों रबी की प्रमुख फसलें हैं। वहीं बात करें रबी सीजन की प्रमुख सब्जी फसलों में टमाटर, बैगन, भिन्डी, आलू, तोरई, लौकी, करेला, सेम, बण्डा, फूलगोभी, पत्ता-गोभी, गाठ-गोभी, मूली, गाजर, शलजम, मटर, चुकंदर, पालक, मेंथी, प्याज, आलू, शकरकंद आदि सब्जियां उगाई जाती हैं।

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कब तक करें रबी सीजन की फसल की बुवाई

गेहूं: गेहूं रबी सीजन की प्रमुख फसलों में से एक हैं। गेहूं की बुवाई करने का उपयुक्त समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक का हैं।

जौः जौ रबी सीजन में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों में से एक हैं। जिन क्षेत्रों में सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था हैं। वहां जौ की बुवाई 15 नवंबर तक कर देनी चाहिए। बुवाई से पहले यदि आपके बीज प्रमाणित न हो तो बुवाई से पहले थिरम एजोटोबेक्टर से उपचारित अवश्य कर लें।

चनाः चना की बुवाई 20 नवंबर तक कर देनी चाहिए। चने की बुवाई के 25 से 30 दिन के बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए।

मटरः मटर की बुवाई अक्टूबर से लेकर नवंबर मध्य तक अवश्य कर लें। मटर की बुवाई के 20 दिन बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई अवश्य करें। मटर की बुवाई के 35 से 40 दिन बाद पहली सिंचाई करें। पहली सिंचाई करने के 6-7 दिन बाद फलियां आने पर आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई भी करें।

मसूरः मसूर की बुवाई करने के लिए 15 नवंबर तक का समय सबसे उपयुक्त है।

मक्काः जिन क्षेत्रों में सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था हैं, वहां शीतकालीन मक्का की बुवाई नवंबर माह के मध्य तक अवश्य पूरी कर लें। मक्का की बुवाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद पहली सिंचाई अवश्य कर दें।

शरदकालीन गन्नाः गन्ने की बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद आवश्यकता अनुसार निराई-गुड़ाई अवश्य कर लें।

आलू: आलू की बुवाई यदि अक्टूबर में नहीं हो पाई हो तो नवंबर माह तक अवश्य कर दें।

टमाटरः टमाटर की बसंत/ग्रीष्म ऋतु फसल की बुवाई करने के लिए पौधशाला में बीज की बुवाई अवश्य कर दें।

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जुताई और भूमि उपचार करने के लाभ

रबी की फसलों में सही उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही तरीके से जुताई और मिट्टी का उपचार करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं

  • सही तरीके से जुताई और मिट्टी का उपचार करने से खेतों में खरपतवार को रोका जा सकता हैं
  • फसलों की बुआई के समय सही तरीके से मिट्टी तैयार करने से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मिट्टी की जांच कराकर मिट्टी में जो पोषक तत्व मौजूद ना हो वो पूरा करने से भी अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं
  • भूमि उपचार करने से भूमि में होने वाले रोगों और कीटों की समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है
  • दीमक फसलों में लगने वाला प्रमुख समस्या है। जिस खेत में  दीमक का प्रकोप है वहां पर क्वीनालफॉस 1.5 % चूर्ण 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की मात्रा से मिट्टी में बुवाई से पहले मिला देने से दीमक की समस्या नहीं होती हैं।

रबी सीजन की फसलों की बुवाई का तरीका

रबी सीजन की फसलों की बुवाई करने के लिए कतार विधि से करना चाहिए। इसमें किसान को सीड-ड्रिल या जीरो टिलेज मशीन का उपयोग करना चाहिए, जिससे किसान बुवाई के समय बीज की उचित मात्रा डाल सकें। इसमें एक कतार से दूसरे कतार और पौधे की दूरी को निश्चित कर सकते हैं जो विभिन्न कृषि कार्य जैसे निराई, गुडाई आदि करने में लाभदायक होता है। रबी की फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए फसलों में 6 से 8 टन कार्बनिक खाद एवं उर्वरकों का सही मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। जिन क्षेत्रों में सिंचाई के उपयुक्त साधन मौजूद नहीं हैं, वहां खाद एवं उर्वरक की पूरी मात्रा व उपयुक्त उर्वरकों के द्वारा बुवाई से पहले खेत की अंतिम जुताई करते समय देनी चाहिए। जहां सिंचाई के उचित साधन उपलब्ध हैं, वहां फसलों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय डालना चाहिए। बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा दो से तीन बार में थोड़ी-थोड़ी करके डालना चाहिए।

मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरक प्रबंधन कैसे करें

रबी फसलों की खेती की तैयारी के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम है मृदा का स्वास्थ्य परिक्षण एवं उर्वरक का प्रबंधन। मृदा का स्वास्थ्य परिक्षण करने के लिए सबसे आवश्यक है मिट्टी की जांच कराना। वर्तमान समय में रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग के कारण हमारे खेत की मिट्टी पर और वातावरण पर प्रभाव पड़ रहा है। किसान भाइयों द्वारा असंतुलित रसायनिक उर्वरकों के उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कमजोर होती जा रही है। साथ ही हमारे खेत की मिट्टी में जीवांश पदार्थ एवं सूक्ष्म जीवों की संख्या में भी लगातार कमी होती जा रही है। इसके कारण पौधों के विकास एवं फसलों के उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। इसके लिए किसान भाई रबी फसल की बुआई से पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच अवश्य कराएं तथा आवश्यक अनुसार ही उर्वरक का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें। जिससे फसलों का अधिक उत्पादन का लाभ किसानों को प्राप्त हो सकें। 


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