प्रकाशित - 28 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
देश में इस समय गेहूं सहित अन्य रबी फसलों की बुवाई का काम जोर शोर से चल रहा है। इन फसलों की खेती में मुख्य रूप से किसान डीएपी का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इन दिनों हो रही डीएपी की कमी ने किसानों को परेशान कर रखा है। डीएपी की मांग के मुकाबले कम उपलब्धता होने से कई किसानों को डीएपी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में किसानों को फसलो के उत्पादन में परेशानी हो रही है। लेकिन किसानों को अब डीएपी नहीं मिलने से परेशान न होने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि डीएपी की जगह किसान अन्य उर्वरक इस्तेमाल करके फसल में डीएपी की कमी को पूरा कर सकते हैं। खास बात ये हैं कि ये उर्वरक किसानों को आसानी से बाजार में मिल जाएंगे और ये डीएपी से सस्ते भी है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को फसलों में डीएपी के स्थान पर कौनसे उर्वरक प्रयोग में लिए जा सकते हैं, इस बात की जानकारी दे रहे हैं ताकि किसानों को गेहूं की खेती करने में कोई परेशानी न हो। तो आइए जानतें हैं गेहूं सहित अन्य फसलों में डीएपी की कमी को अन्य उर्वरक से पूरा करने के बारें में पूरी जानकारी।
डीएपी का पूरा नाम डाई अमोनिया फास्फेट है। इस उर्वरक का प्रयोग किसान गेहूं, सरसों आदि की खेती में काफी करते हैं। ये एक क्षारीय प्रकृति का रासायनिक उर्वरक है। डीएपी का उपयोग पौधों में पोषण के लिए नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की कमी पूरी करने के लिए किया जाता है। इसमें 18 परसेंट नाइट्रोजन, 46 परसेंट फास्फोरस पाया जाता है। पौधों को जिन पोषक तत्वों में जरूरत होती है, उनमें नाइट्रोजन फास्फोरस एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व है। डीएपी की खास बात ये हैं कि ये मिट्टी के संपर्क में आकर अच्छे से घुल जाता है। इस तरह ये पौधों की जोड़ों के विकास मदद करता है। इसके अलावा यह पौधों के कोशिकाओं के विभाजन में भी योगदान करता है। इससे पौधें का विकास सही से हो पाता है और परिणामस्वरूप फसलोत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
हरियाणा में किसानों को डीएपी खाद मिलने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में यहां के कृषि मंत्री ने राज्य के किसानों को डीएपी की जगह अन्य उर्वरक के इस्तेमाल की सलाह दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री जेपी दलाल ने कहा कि प्रदेश सरकार की ओर से किसानों को गेहूं की बिजाई के लिए पर्याप्त मात्रा में डीएपी उपलब्ध करवाने की कोशिश की जा रही है। किसान गेहूं की बिजाई में डीएपी खाद के स्थान पर एसएसपी व एनपीके का प्रयोग कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में वर्तमान में 23 हजार मीट्रिक टन डीएपी, 52 हजार मीट्रिक टन एसएसपी एवं 7 हजार मीट्रिक टन एनपीके स्टॉक के रूप में उपलब्ध हैं। डीएपी के स्थान पर गेहूं की बिजाई में दूसरे उर्वरक भी प्रयोग में लिए जा सकते हैं। हिसार स्थित चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय की सिफारिश के अनुसार एक बैग डीएपी या 3 बैग एसएसपी या डेढ़ बैग एनपीके का प्रयोग करके फॉस्फोरस की आपूर्ति पूर्ण कर सकते हैं। गत वर्ष सितंबर से नवंबर तक प्रदेश में 2 लाख 78 हजार मीट्रिक टन डीएपी की बिक्री हुई थी। इस वर्ष सितंबर से नवंबर तक प्रदेश में 3 लाख 6 हजार मीट्रिक टन डीएपी की बिक्री हो चुकी है। केंद्र सरकार की तरफ से राज्य में प्रतिदिन 2 से 3 हजार मीट्रिक टन डीएपी, एनपीके उपलब्ध करवाया जा रहा है। खाद की बिक्री प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) मशीन से की जानी सुनिश्चित की है।
फसलों में डीएपी की जगह एसएसपी व एनपीके का उपयोग किया जा सकता है। खासकर गेहूं की फसल में। क्योंकि डीएपी में मुख्य अवयव नाईट्रोजन और फासफोरस होता है जो एसएसपी और एनपीके में पाया जाता है। इस तरह डीएपी की जगह इन उर्वरकों का उपयोग किया जा सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि एसएसपी एक फॉस्फोरस युक्त उर्वरक है, जिसमें 18 प्रतिशत फॉस्फोरस एवं 11 प्रतिशत सल्फर की मात्रा पाई जाती है। इसमें उपलब्ध सल्फर के कारण यह उर्वरक तिलहनी एवं दलहनी फसलों के लिए अन्य उर्वरकों की अपेक्षा अधिक लाभदायक होता है।
इसी प्रकार एनपीके का अर्थ नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैसियम से है। इस उर्वरक में ये तीनों पोषक तत्व पाएं जाते हैं। ये बाजार में तीन अनुपात में बेचा जाता है जिसे किसान अपनी जरूरत के हिसाब से खरीद सकता है। इसके तीन तरह के पैकेट बाजार में आते हैं जिन पर क्रमश:18:18:18, 19:19:19 तथा 12:32:16 के अनुपात में लिखे हुए होते है। आमतौर पर किसान 12:32:16 एनपीके का इस्तेमाल पोटैशियम की कमी को पूरा करने के लिए करते हैं। इस का पहला अंक नाईट्रोजन के लिए होता है, दूसरा अंक फास्फोरस तथा तीसरा अंक पोटैसियम के लिए होता है। इस अनुपात के उर्वरक में 12% नाईट्रोजन, 32% फास्फोरस तथा 16% पोटैशियम का मिश्रण होता है। एनपीके उर्वरक में फास्फोरस की मात्र डीएपी से 14% कम पाई जाती है।
प्रति बैग डीएपी में 23 किलो फास्फोरस एवं 9 किग्रा नत्रजन पाया जाता है। डीएपी के विकल्प के रूप में 3 बैग एसएसपी एवं 1 बैग यूरिया का प्रयोग किया जाता है तो इन दोनों उर्वरकों से डीएपी की तुलना में कम मूल्य पर नाइट्रोजन एवं फास्फोरस की अधिक पूर्ति होने के साथ-साथ द्वितीय पोषक तत्व के रूप में सल्फर एवं कैल्शियम भी प्राप्त किया जा सकता है।
जहां डीएपी के एक बैग की लागत 1200 रुपए आती है जिसमें 23 किलोग्राम फास्फोरस और 9 किलोग्राम नत्रजन होता है। जबकि डीएपी की जगह 3 बैग एसएसपी और एक बैग यूरिया की कुल लागत करीब 1166 रुपए आती है। जिसमें पोषक तत्व फस्फोरस 24 किलोग्राम, नाईट्रोजन 20 किलोग्राम ओर 16 किलोग्राम सल्फर होता है। इसलिए किसानों को डीएपी की जगह दूसरे विल्कप यानि एसएसपी और यूरिया के उपयोग की सलाह दी जा रही है।
इफको ने वर्ष 2022 के खरीफ सीजन के लिए रासायनिक उर्वरक का मूल्य जारी किया गया है। इसके अनुसार किसान जिस कीमत पर बाजार से उर्वरक की खरीद कर पाएंगे, वे इस प्रकार से हैं-
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