प्रकाशित - 31 Aug 2022
नकदी फसल में गन्ना का एक अलग ही स्थान है। गन्ने का मुख्य उपयोग गुड़ और चीनी तैयार करने में किया जाता है। गन्ने के उत्पादन पर ही चीनी का उत्पादन टिका हुआ है। गन्ना किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या ये हैं कि उनको गन्ना उत्पादन में अधिक लागत आती है जबकि चीनी मिलों की ओर से सरकार द्वारा तय किए गए मूल्य का ही भुगतान किया जाता है। हालांकि कई राज्य सरकारों ने गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी की है, लेकिन उसके बाद भी गन्ना उत्पादन की लागत अधिक बैठती है। इस समस्या को दूर करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने गन्ना की दो नई किस्में विकसित की हैं, जो कम लागत में अधिक पैदावार देने में समक्ष हैं। ये दो किस्में को. शा. 17231 एवं यू.पी.14234 हैं। ये दोनों ही किस्मों के परिणाम काफी उत्साहवर्धक आए हैं।
पिछले दिनों बीज गन्ना एवं गन्ना किस्म स्वीकृत उपसमिति की हुई बैठक मेंं वैरायटल रिलीज़ कमेटी द्वारा गन्ना किसानों के लिए 2 नई गन्ने की किस्मों को.शा. 17231 एवं यू.पी. 14234 को प्रदेश में सामान्य खेती के लिए जारी किया गया है। उत्तर प्रदेश के गन्ना आयुक्त संजय आर. भूसरेड्डी की अध्यक्षता में हुई बीज गन्ना एवं गन्ना किस्म स्वीकृत उपसमिति की बैठक में वैज्ञानिकों के द्वारा प्रस्तावित नवीन किस्मों के आंकड़े प्रस्तुत किए गए। प्रस्तुत आकड़ों की गहनता पूर्वक अवलोकन कर सर्वसम्मति से गन्ना किस्म को.शा. 17231 एवं यू.पी. 14234 को उत्तर प्रदेश में सामान्य खेती हेतु स्वीकृत किया गया है।
वैज्ञानिकों की ओर से विकसित की गई ये नई किस्मों को सामान्य खेती के लिए स्वीकृत किए जाने से गन्ना किसानों के उत्पादन में वृद्धि के साथ ही चीनी उत्पादन में भी वृद्धि होगी। वहीं प्रदेश के गन्ना किसानों को नवीन किस्मों की श्रेणी में विकल्प के तौर पर और किस्में उपलब्ध हो सकेंगी। गन्ना किस्म यू.पी. 14234 उन क्षेत्रों के लिए है, जहां की भूमि ऊसर है तथा उन क्षेत्रों में गन्ने की खेती नहीं हो रही है अथवा गन्ने की उपज बहुत कम है। ऐसे क्षेत्रों में यू.पी. 14234 गन्ना किसानों के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। वहीं को.शा. 17231 गन्ना किस्म के बारे में बताया गया कि इस नई किस्म का जमाव, व्यात एवं मिल योग्य गन्नों की संख्या अच्छी है तथा गन्ना मोटा एवं लंबा होने के साथ-साथ पेड़ी उत्पादन की क्षमता भी बेहतर है। वहीं ये नई किस्में गन्ने में लगने वाले लाल सडऩ रोग के प्रतिरोधी हैं।
वैज्ञानिकों की ओरसे पहले विकसित की गई को.पी.के 05191 किस्म में लाल सडऩ रोग की शिकायत मिलने के बाद इसकी खेती को बंद करने का निर्णय लिया गया है। अब केवल यह किस्म पेराई सत्र 2022-23 में इस किस्म की पेड़ी एवं पौधा फसल सामान्य किस्म के रूप में क्रय की जाएगी तथा पेराई सत्र 2023-24 में केवल पेड़ी फसल को सामान्य किस्म के रूप में लिया जाएगा। बुआई वर्ष 2022-23 से यह किस्म बुआई के लिए प्रतिबंधित होगी। इसके बाद भी यदि इस किस्म की बुवाई की जाती है तो इस दशा में इसे अस्वीकृत किस्म के रूप में माना जाएगा।
उपरोक्त किस्म के अलावा गन्ने की कई किस्में हैं जो बेहतर उत्पादन देती हैं। उन किस्मों में से प्रमुख किस्म इस प्रकार से हैं-
इस किस्म का विकास गन्ना प्रजनन संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र, करनाल में किया गया है। यह किस्म हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान राज्यों सहित उत्तर-पश्चिमी जोन में व्यावसायिक खेती के लिए एक अगेती किस्म के रूप में जारी की गई है। इसकी परिपक्वता अवधि 12-14 महीने की होती है। इसकी उत्पादन क्षमता 81 टन प्रति हेक्टेयर पाई गई है। इस किस्म की विशेषता ये हैं कि इस किस्म के गन्ने से बना गुड़ हल्के पीले रंग के साथ ए-1 गुणवत्ता वाला होता है। यह किस्म लाल सडऩ रोगजनक की प्रचलित नस्ल की संतुलित प्रतिरोधी है। यह किस्म कहीं तेज गति से खेत में फैलती है और इसलिए किसानों और चीनी उद्योग दोनों द्वारा इसे पसंद किया जाता है।
इस किस्म के गन्ने से बना गुड़ उत्तम क्वालिटी का होता है। इसमें मिठास अधिक होती है। ये जड़ी गन्न के लिए उपयुक्त पाई गई है। इस किस्म पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक रोग का प्रकोप कम देखने को मिला है। ये किस्म लाल सडऩ व कंडवा उक्ठा रोग प्रतिरोधी किस्म है। इस किस्म की परिवक्वता अवधि 12 से 14 माह है। इसकी उपज क्षमता 110-120 टन प्रति हैक्टेयर है। इसमें शक्कर की मात्रा 22 से 24 प्रतिशत है।
ये किस्म 12 से 14 माह में तैयार हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 120-130 टन प्रति हैक्टेयर है। इसमें शक्कर की मात्रा 18-20 प्रतिशत तक पाई गई है। इस किस्म में रोगों का प्रकोप बहुत कम देखने को मिला है। ये पपड़ी कीटरोधी किस्म है।
इस किस्म के तैयार गुड़ उत्तम क्वालिटी का होता है। इसमें अधिक मात्रा में शक्कर होती है यानि अधिक मिठास होती है। ये किस्म 12-14 महीनों में तैयार हो जाती है। इसकी उपज क्षमता 110-130 टन प्रति हैक्टेयर है। इसमें शक्कर की मात्रा 22-23 प्रतिशत होती है। इस किस्म पाईरिल्ला व अग्रतना छेदक का प्रकोप कम देखने को मिला है। ये किस्म लाल सडऩ और कंडवा उक्ठा रोग के प्रतिरोधी किस्म है।
यह किस्म में अन्य गन्नों की किस्मों की तुलना में शीघ्र पकने वाली किस्म है। इसकी उपज क्षमता 81 से 92 टन प्रति हैक्टेयर है। इसमें शर्करा की मात्रा 11.55 पाई गई है। इसकी फसल 10 माह में पक कर तैयार हो जाती है। व्यावयायिक दृष्टि से देखा जाए तो ये किस्म किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है।
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