सोयाबीन की टॉप 7 किस्म : जुलाई के पहले सप्ताह में करें बुआई, होगी बंपर पैदावार

Share Product प्रकाशित - 03 Jul 2023 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

सोयाबीन की टॉप 7 किस्म : जुलाई के पहले सप्ताह में करें बुआई, होगी बंपर पैदावार

सोयाबीन की खेती : जानें, सोयाबीन की बुआई का सही तरीका और इसके लाभ

भारत के मध्यप्रदेश राज्य में सोयाबीन की खेती (Soybean Farming) बड़े पैमाने पर की जाती है। मध्यप्रदेश के बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड सहित अन्य राज्यों में सोयाबीन की खेती की जाती है। सोयाबीन की बुआई का मौसम शुरू हो चुका है। 15 जून से 15 जुलाई तक सोयाबीन की बुआई (Soybean Planting) चलती है। जुलाई के पहले सप्ताह में सोयाबीन की बुआई कर लेना अच्छा होता है। चूंकि सोयाबीन एक प्रमुख प्रोटीन स्रोत वाले उत्पाद के तौर पर जाना जाता है। सोयाबीन की मांग भारत में काफी है। सोयाबीन की उपयोग की बात करें तो इसे पनीर बनाने, सोया मिल्क बनाने, सोयाबड़ी बनाने, सोयाबीन तेल आदि कई खाद्य पदार्थ के रूप में किया जाता है। मैदानी इलाकों में सोयाबीन की खेती पहले कम हुआ करती थी। लेकिन नई-नई किस्मों के आने के बाद अब सोयाबीन की खेती मैदानी इलाकों में भी की जाने लगी है। सोयाबीन में 40 से 50 प्रतिशत तक प्रोटीन और 20 से 22 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है। यही वजह है कि सोयाबीन का उपयोग खाद्य तेल, प्रोटीन स्रोत और सब्जी, पनीर आदि के रूप में भी किया जाता है। इसलिए सोयाबीन की खेती करना किसानों के लिए मुनाफे का सौदा हो सकता है।

ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में हम सोयाबीन की खेती के बारे में, सोयाबीन की खेती की उन्नत किस्में (Improved Varieties of Soybean Cultivation), खेत की तैयारी, बीजोपचार और उत्पादन बढ़ाने के तरीके के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

भूमि

सोयाबीन की खेती के लिए अच्छी जल निकास वाली भूमि अच्छी होती है। दोमट, मटियार और अधिक उपजाऊ मिट्टी (Fertile Soil) में सोयाबीन की खेती से अच्छी पैदावार ली जा सकती है। सोयाबीन की खेती से पहले मिट्टी की जांच करवा लें। मिट्टी का पीएच 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। मिट्टी का हल्का क्षारीय होना इस फसल के लिए उपयुक्त है। अगर मिट्टी का पीएच मान 6.5 से कम है तो मिट्टी में चूना अथवा क्षारीय मिट्टी में जिप्सम मिलाकर खेती करना चाहिए।

खेत की तैयारी 

खेत की सामान्य जुताई करवा लें। जुताई के बाद मिट्टी को भूरभूरी करने के लिए खेतों में पाटा करवा लें। इससे मिट्टी महीन और भुरभुरी हो जाएगी। खेत की जुताई गहरी होनी चाहिए। इससे भूमि में हवा का संचार हो पाता है।

जलवायु

सोयाबीन की खेती के लिए 20 से 32 डिग्री का तापमान सर्वोत्तम होता है। सोयाबीन मध्यम तापमान पर अच्छी ग्रोथ हासिल करती है। 10 डिग्री से कम तापमान यानी ज्यादा ठंडे मौसम में सोयाबीन की खेती पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वहीं बारिश की बात करें तो 62 से 75 सेमी तक बारिश को इस फसल के लिए पर्याप्त माना गया है। 

सोयाबीन की उन्नत किस्में

सोयाबीन की खेती में अच्छे और उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाना जरूरी है। अच्छी किस्म के सोयाबीन से अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। इसलिए सोयाबीन की कुछ उन्नत किस्मों के बारे में जानकारी इस प्रकार है।

(1) जेएस 93-05 

90 से 95 दिन के अंदर शीघ्र पकने वाली इस सोयाबीन किस्म के फूल बैंगनी रंग के होते हैं। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 2000 से 2500 किलोग्राम सोयाबीन का उत्पादन किया जा सकता है।

(2) जेएस 72-44 

95 से 105 दिनों के अंदर उगने वाली सोयाबीन की यह उन्नत किस्म प्रति हेक्टेयर 2500 से 3000 किलोग्राम तक की सोयाबीन की पैदावार दे सकती है।

(3) जेएस 335 

115 से 120 दिन में पकने वाली सोयाबीन की यह उत्कृष्ट किस्म 2000 से 2200 किलो प्रति हेक्टेयर सोयाबीन की पैदावार कर सकती है। इसका दाना पीला और इसकी फल्लियां चटकने वाली होती है। 

(4) समृद्धि 

93 से 100 दिनों के अंदर तैयार होने वाली यह किस्म किसानों को सोयाबीन के फसल का जल्दी उत्पादन देती है। साथ ही 2000 से 2500 किलोग्राम तक प्रति हेक्टेयर उत्पादन भी दे देती है।

(5) अहिल्या 3 

90 से 99 दिनों के अंदर शीघ्र तैयार होने वाली इस सोयाबीन किस्म के फूल बैंगनी और इसके दाने पीले रंग के होते हैं। यह किस्म कीट प्रतिरोधी है। इससे 2500 से 3500 किलोग्राम सोयाबीन का उत्पादन किया जा सकता है।

(6) अहिल्या 4 

99 से 105 दिन में पककर तैयार करने वाली इस सोयाबीन किस्म (Soybean Variety) से 2000 से 2500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है।

(7) पीके 472 

यह किस्म 100 से 105 दिनों में तैयार होती है। इस किस्म के फूल का रंग सफेद और दाने का रंग पीला होता है। इस किस्म की उपज क्षमता 3000 से 3500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

सिंचाई

खरीफ मौसम की इस फसल को सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। फलियों में दाना भरते समय यदि खेत में पर्याप्त नमी होती है तो सोयाबीन की खेती में इस दौरान सिंचाई की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है। फली भरने के बाद यदि लंबा सूखा पड़ता है तो इस फसल की खेती में एक सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

खाद एवं उर्वरक

अलग अलग मिट्टी के लिए खाद एवं उर्वरक की मात्रा भी अलग - अलग निर्भर करती है। इसलिए खाद एवं उर्वरक के सही उपयोग के लिए मिट्टी की जांच जरूर करवाएं और नजदीकी कृषि सलाहकार की मदद जरूर लें। इस खेती में रसायनिक उर्वरक के साथ नाफेड खाद, गोबर खाद, कार्बनिक खाद आदि का इस्तेमाल अच्छी मात्रा में किया जाए तो फसल की पैदावार भी अच्छी होती है। नाइट्रोजन की आपूर्ति करने के लिए 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर दें। वहीं वर्मी कंपोस्ट का उपयोग 5 टन प्रति हेक्टेयर कर सकते हैं।

सोयाबीन की कटाई एवं पैदावार

सोयाबीन की फसल को पूरी तरह पकने में 3 से 4 महीने का समय लगता है। हालांकि पकने में लगने वाला समय सोयाबीन की फसल के किस्म पर भी निर्भर करता है। सोयाबीन पकने के बाद इसकी पत्तियों के रंग में पीलापन आ जाता है। कटाई के समय आमतौर पर बीजों में नमी की मात्रा 15 प्रतिशत तक होती है।

वहीं अगर पैदावार की बात करें तो सोयाबीन की उन्नत किस्मों की मदद से किसान प्रति हेक्टेयर 18 से 35 क्विंटल की पैदावार ले सकते हैं। सोयाबीन का वर्तमान बाजार भाव लगभग 4800 रुपए प्रति क्विंटल है। इस हिसाब से गणना करें तो सिर्फ तीन से चार महीने में 1 लाख 68 हजार रुपए की कमाई प्रति हेक्टेयर किसान कर सकते हैं।

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