चने की टॉप 5 किस्म : जानिए लाभ और खासियत

Share Product प्रकाशित - 14 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

चने की टॉप 5 किस्म : जानिए लाभ और खासियत

चने की इन टॉप 5 किस्मों से होगी बंपर पैदावार

रबी फसलों की बुवाई का सीजन चल रहा है। ऐसे में किसानों को अच्छी किस्म के बीजों की आवश्यकता होती है ताकि बेहतर पैदावार हो सके। रबी फसलों की बहुत सी अधिक उत्पादन देने वाली किस्में हैं जिसकी जानकारी किसानों को होनी चाहिए। रबी फसलों की किस्मों के क्रम में आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसान भाइयों को चने की अधिक उत्पादन देने वाली टॉप 5 किस्मों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। 

चने की नई किस्म जे.जी-12

वैज्ञानिकों ने सीड हब परियोजना के अन्तर्गत जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चना की नई अधिक उत्पादन देने वाली किस्म विकसित की है। ये किस्म उकठा निरोधक प्रजाति से विकसित की गई है। चने की इस नई किस्म से करीब 22-25 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ये किस्म उकठा रोग प्रतिरोधी किस्म है। चने की इस नई किस्म का बीज कृषि विज्ञान केंद्र-कुंडेश्वर रोड टीकमगढ़ (मध्यप्रदेश) से प्राप्त किया जा सकता है।

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चने की विजय किस्म

चने की विजय किस्म जल्दी एवं देरी से दोनों समय में बोई जा सकती है। इस किस्म की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर में के मध्य करना अच्छा माना जाता है। ये अन्य किस्मों की अपेक्षा जल्दी पककर तैयार हो जाती है। सिंचित क्षेत्र में इसकी फसल 105 दिन और असिंचित क्षेत्र में इसकी फसल 90 तैयार हो जाती है। इसमें फूल आने की अवधि 35 दिनों की होती है। चने की यह किस्म सूखा सहन में समर्थ है।

चने की एच.सी-5 किस्म

चने की ये किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के करनाल स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र की ओर से विकसित की गई है। इस किस्म को नवंबर माह में तापमान कम होने पर बोया जाता है। किसान भाई 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक इसकी बुवाई कर सकते हैं। सामान्यत: इस किस्म की बुवाई के लिए करीब 27° या इससे कम तापमान बेहतर माना जाता है। इस किस्म के पौधे में 50 से 55 दिन की अवधि में फूल आने शुरू हो जाते हैं। ये किस्म करीब 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यह किस्म भी अधिक उत्पादन देती है। किसान बीज उपचार, खरपतवार नियंत्रण, उर्वरक प्रबंधन, कीट नियंत्रण, सिंचाई प्रबंधन तथा पाले की सुरक्षा आदि क्रियाएं करके इसका उच्च उत्पादन प्राप्त कर सकता है। 

चने की विशाल किस्म

चने की इस किस्म का आकार बड़ा और गुणवत्तापूर्ण होता है। ये चने की सर्वश्रेष्ठ किस्म मानी जाती है। इस किस्म की बुवाई का समय 20 अक्टूबर से नवंबर का प्रथम पखवाड़ा तक बताया गया है। चना की विशाल किस्म 110 से 115 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसमें फूल आने का समय 40 से 45 दिन का होता है। चने की इस किस्म से करीब 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर  उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

चने की (दिग्विजय) फुले 9425-5 किस्म

चने की ये किस्म फुले कृषि विश्वविद्यालय राहुरी द्वारा विकसित की गई है। ये किस्म अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में शुमार है। इस किस्म की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर के मध्य का होता है। चने की यह किस्म 90 से 105 दिन पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से अधिकतम 40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।  

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चने की खेती में ध्यान रखने वाली खास बातें (Chane ki kheti)

चने की खेती में कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सकती है। चने की खेती में जो बाते ध्यान रखनी चाहिए उनमें से खास बातों को हम नीचे बता रहे हैं।

  • चने की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली हल्की दोमट मिट्‌टी उपयुक्त रहती है। इसमें मिट्‌टी का पीएच मान 6.6-7.2 बीच होना चाहिए। इसकी खेती के लिए अम्लीय एवं ऊसर भूमि अच्छी नहीं मानी जाती है।
  • चने की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए असिंचित व सिंचित क्षेत्र में चने की बुवाई अक्टूबर प्रथम और द्वितीय पखवाड़े में करना अच्छा रहता है। वहीं जिन खेतों में उकटा का प्रकोप अधिक होता है वहां इसकी बुवाई देरी से करना लाभदायक रहता है।
  • चने के बीजों की बुवाई गहराई में करनी चाहिए ताकि कम पानी में भी इसकी जड़ों में नमी बनी रहे। सिंचित क्षेत्र में 5-7 सेमी व बारानी क्षेत्रों में सरंक्षित नमी को देखते हुए 7-10 सेमी गहराई तक बुवाई की जा सकती है।
  • चने की बुवाई हमेशा कतार में करनी चाहिए। इससे खरपतवार नियंत्रण, सिंचाई, खाद व उर्वरक देने में आसानी होती है। 
  • देशी चने की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 30 सेमी तथा काबुली चने की बुवाई में कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी रखना चाहिए। 
  • चने की फसल में जड़ गलन व उखटा रोग की रोकथाम के लिए 2.5 ग्राम थाईरम या 2 ग्राम मैन्कोजेब या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बीजों की बुवाई करनी चाहिए। वहीं जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप अधिक होता है। वहां 100 किलो बीज को 600 मिली क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी से बीज को उपचारित करके बीजों की बुवाई करनी चाहिए। बीजों को सदैव राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए। 
  • चने की फसल में जहां सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो वहां बुवाई के 40-45 दिन बाद इसकी पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसकी दूसरी सिंचाई फलियां बनते समय करीब 60 दिन बाद की जा सकती है। इस बात का ध्यान रखे सिंचाई सदैव हल्की ही करें क्योंकि ज्यादा सिंचाई से फसल पीली पड़ जाती है। 
  • पौधों की बढ़वार अधिक होने पर बुवाई के 30-40 दिन बाद पौधे के शीर्ष भाग को तोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से पौधों में शाखाएं अधिक निकलती है व फूल भी अधिक आते हैं, फलियां भी प्रति पौधा अधिक आती है। जिससे पैदावार अधिक प्राप्त होती है। पर इस बात का ध्यान रखें कि नीपिंग कार्य फूल वाली अवस्था पर कभी भी नहीं करें। इससे उत्पादन पर विपरित असर पड़ सकता है।


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