प्रकाशित - 11 Jun 2023
किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए नकदी फसलों की खेती की ओर ध्यान देना चाहिए। नकदी फसल से हमारा तात्पर्य ऐसी फसलों से हैं जिनकी बाजार में काफी डिमांड हो और उनके भाव भी बेहतर मिल सके। इस तरह से यदि हम देखें तो मसाला फसलों की खेती किसानों के लिए बेहतर कमाई जरिया बन सकती हैं। मसाला फसलों में हल्दी का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसका प्रयोग हर घर में खाना बनाने में किया जाता है। बिना इसके कोई सब्जी नहीं बनती है। इसके औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन के प्रोडक्ट्स बनाने में किया जाता है। इसके अलावा हल्दी का उपयोग हिंदू धर्म में हर मांगलिक कार्यों में भी किया जाता है। इस तरह से हल्दी की मांग बाजार में काफी है। ऐसे में यदि किसान हल्दी की खेती करें तो इससे काफी अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात यह हैं कि इस समय किसान इसकी बुवाई कर सकते हैं। हल्दी की बुवाई का उचित समय 15 मई से लेकर 30 जून तक का होता है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको हल्दी की खेती के लिए इसकी जल्दी तैयार होने वाली टॉप 5 किस्मों की जानकारी दे रहे हैं जिनसे आपको अधिक मुनाफा हो सकता है। तो आइए जानते हैं हल्दी की टॉप 5 किस्मों के बारे में।
हल्दी की सिम पीतांबर किस्म की खेती किसानों को अधिक लाभ देने वाली साबित हो सकती है। इस किस्म को केंद्रीय औषधीय एवं सगंध अनुसंधान संस्थान (सीमैप) ने विकसित किया है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर करीब 65 टन हल्दी कंद का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इस किस्म को पककर तैयार होने में सात से नौ महीने का समय लगता है। हल्दी की इस किस्म की कीटों का प्रयोग भी कम देखने को मिला है। इस किस्त के पौधों की पत्तियों को धब्बा रोग फसल को नुकसान नहीं पहुंचाता है।
हल्दी की सुंगधम किस्म भी अच्छी किस्म है। इस किस्म के कंद आकार में लंबे और हल्की लालिमा लिए हुए पीले रंग के होते हैं। यह किस्म 210 दिन में पककर तैयार हो जाती है। यदि पैदावार की बात की जाए तो इस किस्म से किसान प्रति एकड़ 80 से लेकर 90 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
हल्दी की सोरमा किस्म के कंद अंदर से नारंगी रंग के होते हैं। यह किस्म करीब 210 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
हल्दी की इस किस किस्म के कंद आकार में छोटे होते हैं और सुंदर दिखाई देते हैं। इस किस्म को तैयार होने में 190 दिन का समय लगता है। हल्दी की इस किस्म से प्रति एकड़ 110 से लेकर 115 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
हल्दी की इस किस्म के पौधों की ऊंचाई 80 से 100 सेंटीमीटर होती है। यह किस्म लगभग 210 से लेकर 220 दिन में तैयार हो जाती है। इसकी पैदावार की बात करें तो इस किस्म से प्रति एकड़ 200 से लेकर 220 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
हल्दी की बुवाई दो प्रकार से की जाती है। पहली समतल विधि द्वारा और दूसरी मेढ़ विधि है।
इस विधि में सबसे पहले भूमि की जुताई करके भूमि को समतल कर लेते हैं। इसके बाद कूदल में इसकी रोपाई की जाती है। रोपाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और गांठ से गांठ की दूरी 20 सेमी होनी चाहिए।
हल्दी की बुवाई का सबसे सही तरीका यह है कि हल्दी की बुवाई के लिए 30 से 35 ग्राम की गांठ ली जाती है। इसकी बुवाई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखी जाती है। कंद से कंद की दरी 20 सेमी रखते हैं। इसमें कंद की 5-6 सेमी गहराई पर रोपाई की जाती है। एक बात का विशेष ध्यान रखें कंद की रोपाई करने से पहले उसे इंडोफिल एम-45 का 2.5 ग्राम वेभिस्टीन का 1.0 ग्राम के हिसाब से प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर कंद को 30 से 45 मिनट तक उपचारित करना चाहिए और इसके बाद ही इसकी बुवाई करनी चाहिए।
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