Published - 18 Mar 2021 by Tractor Junction
भारत एक कृषि प्रधान देश है और खेती के साथ किसान पशुपालन भी करते हैं। देश में डेयरी पदार्थों की बढ़ती मांग ने दुधारू पशुओं का पालना एक फायदेमंद सौदा बना दिया है। भारत में 55 प्रतिशत दूध यानि 20 मिलियन टन दूध भैंस पालन से मिलता है। ट्रैक्टर गुरु की इस पोस्ट में हम आपको सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंसों की 5 नस्लों के बारे में बताएंगे। अगर भैंसों की नस्ल अच्छी होगी तो दूध उत्पादन ज्यादा होगा और किसान की ज्यादा कमाई होगी।
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विश्व में सबसे अधिक भैंसों की आबादी भारत में है। देश का एक हिस्सा भैंस पालन से जुड़ा हुआ है। भारत में भैंसों की 26 नस्लें पाई जाती हैं इनमें से 12 नस्ल की भैंसे रजिस्टर्ड नस्लें हैं जो कि सबसे ज्यादा दूध देती है। इनमें मुर्रा, नीलीरावी, जाफराबादी, नागपुरी, पंढरपुरी, बन्नी, भदावरी, चिल्का, मेहसाणा, सुर्ती, तोड़ा किस्म की भैंसे शामिल है। 20वीं पशुगणना में देश में भैंसों की आबादी 109.9 मिलियन बताई गई है। भारत में सबसे अधिक भैंसे उत्तरप्रदेश में पाई जाती है, उसके बाद राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेश आते हैं। आइए जानते हैं टॉप-5 भैंसों की नस्ल की खासियत।
मुर्रा नस्ल की भैंसे सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल मानी जाती है। इसकी औसत उत्पादन क्षमता 1750 से 1850 लीटर प्रति ब्यात होती है। इसके दूध में बसा की मात्रा करीब 9 प्रतिशत होती है। मुर्रा नस्ल की भैंस हरियाणा के रोहतक, हिसार व जिंद व पंजाब के नाभा व पटियाला जिले में पाई जाती है। इस रंग गहरा काला होता है और खुर और पूंछ के निचले हिस्सों पर सफेद दाग पाया जाता है। इस भैंस के सींग छोटी व मुड़ी हुई होती है। अब देश के कई राज्यों में मुर्रा नस्ल की भैंसों का पालन होने लगा है।
पंढरपुरी नस्ल की भैंस महाराष्ट्र के सोलापुर, कोल्हापुर, रत्नागिरी जैसे जिलों में पाई जाती है, इसका नाम सोलापुर के पंढरपुर गांव के नाम पर पड़ा है। इसकी औसत दूध उत्पादन क्षमता 1700-1800 प्रति ब्यांत होती है। इसके दूध में वसा की मात्रा 8 प्रतिशत पाई जाती है। पंढरपुरी नस्लें अपनी प्रजनन क्षमता के लिए प्रसिद्ध है। यह हर 12-13 महीने में बछड़ा जन्म देने की क्षमता रखती है। प्रजनन के बाद 305 दिन तक यह दूध दे सकती है, जो कि इन्हें अन्य नस्लो से पृथक करता है। इस नस्ल की भैंसों के सींग 45-50 सेमी तक लंबे होते हैं। इसे धारवाड़ी नाम से भी जाना जाता है। यह भैंसे सूखे इलाके के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। पंढरपुरी भैंसों का वजन 450 से 470 किलो होता है। यह गहरे और काले रंग की भैंस होती है।
मेहसाना भैंस : दूध उत्पादन क्षमता 1500 लीटर
मेहसाना नस्ल की भैंसे गुजरात के मेहसाणा जिले और गुजरात की सीमा से लगे महाराष्ट्र के कुछ जिलों में पाई जाती है। इसकी औसत दूध उत्पादन क्षमता 1200 से 1500 लीटर पति ब्यांत होती है। भैंस की इस नस्ल का रंग काला होता है, वहीं कुछ का रंग काला व भूरा भी पाया जाता है। यह नस्ल कुछ-कुछ मुर्रा भैंस की तरह दिखती है। इसका शरीर मुर्रा भैंसे से बड़ा होता है लेकिन वजन कम होता है। नर मेहसाणा का औसत वजन 560 व मादा का वजन 480 किलोग्राम के आसपास होता है। सींग दरांती जैसे आकार के होते हैं और वो मुर्रा भैंस से कम घूमी हुई रहती हैं।
सुर्ती भैंस की नस्ल गुजरात के खेड़ा और बड़ौदा जिले में पाई जाती है। इसकी दूध उत्पादन की औसत क्षमता 900 से 1300 लीटर प्रति ब्यांत होती है। इस भैंस की नस्ल के दूध में 8 से 12 प्रतिशत वसा की मात्रा पाई जाती है। इस नस्ल का रंग भूरा, सिल्वर सलेटी या फिर काला होता है। इसका साइज मीडियम होता है। धड़ नुकीला और सिर लंबा होता है। इनके सींग दराती के आकार के होते हैं।
चिल्का नस्ल की भैंस उड़ीसा राज्य के कटक, गंजम, पुरी और खुर्दा जिलों में पायी जाती है। मध्यम आकार इस भैंस का औसत उत्पादन 500-600 किलोग्राम प्रति व्यात होता है। इसका नाम उड़ीसा के चिल्का के झील के नाम पर पड़ा है। इस भैंस को 'देशी' नाम से जाना जाता है। यह मुख्यत: खारे क्षेत्रों में पायी जाती है, जिसका रंगा भूरा-काला या काला होता है।
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