प्रकाशित - 08 May 2024
दलहन फसलों में अरहर जिसे तूअर दाल भी कहा जाता है उसका भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। जो किसान दलहन में अरहर की खेती (Pigeon pea cultivation) करके अच्छा लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इसकी अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए। आज अरहर की बहुत सी ऐसी उन्नत किस्में हैं जिनसे किसान कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। अरहर की बाजार मांग को देखते हुए किसानों के लिए इसकी खेती लाभ सौदा साबित हो रही है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको अरहर की खेती (Pigeon pea cultivation) के लिए टॉप 3 किस्मों की जानकारी देंगे जिससे आप इसकी अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं, तो आइए जानते हैं, अरहर की इन किस्मों की खासियत और लाभ।
यह अरहर की एक ऐसी किस्म है जो 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। अरहर की इस किस्म की खेती बारिश के मौसम में भी की जा सकती है। इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म कम ऊंचाई वाली होने के साथ ही अधिक उपज देने वाली किस्म है। इसका पौधा सीधा खड़ा रहता है और मजबूत होता है। इसलिए आंधी में भी इसकी फसल आड़ी नहीं होती है। पूसा अरहर-16 की औसतन उपज करीब 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है और 100 दानों का वजन करीब 7.4 ग्राम होता है। यह किस्म राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अनुकूल पाई गई है।
भारतीय अनुसंधान संस्था के वैज्ञानिकों द्वारा अरहर की पूसा-992 किस्म को तैयार किया गया है। यह किस्म भी कम समय में पकने वाली और अधिक पैदावार देने वाली किस्म है। यह किस्म 120 से 128 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की बुवाई जुलाई माह में की जा सकती है और अक्टूबर में फसल पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खास बात यह है कि इसकी सभी फलियां एक साथ पकती है। यह भरे, मोटे, गोल व चमकदार दाने वाली किस्म है। इस किस्म से प्रति एकड़ 7 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
अरहर की (Pigeon pea cultivation) यह किस्म 150 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खास बात यह है कि इसमें रोगों का प्रकोप नहीं होता है। इस किस्म से औसत पैदावार करीब 18 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है।
अरहर की खेती (Pigeon pea cultivation) के लिए मटियार दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी रहती है। अरहर की बुवाई से पहले खेत में गोबर की कंपोस्ट खाद को डालकर मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके बाद खेत की गहरी जताई करें और खेत में जल निकासी का प्रबंध करें क्योंकि अरहर के लिए खेत में जल भराव की स्थिति से यह खराब हो जाती है। अरहर की बुवाई असिंचित क्षेत्रों में जून के अंतिम सप्ताह से लेकर जुलाई के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है। यदि सिंचाई की सुविधा हो तो इसे जून के प्रथम सप्ताह में भी बोया जा सकता है। खरीफ में इसके बीजों की बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखनी चाहिए। बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए और इसके बाद ही बीजों की बुवाई करनी चाहिए। इसके बीजों को फफूंदनाशक दवा 2 ग्राम थायरम $ 1 ग्राम कार्बेन्डेजिम या वीटावेक्स 2 ग्राम $ 5 ग्राम ट्रयकोडरमा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। उपचारित बीजों को रायजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद इसकी बुवाई करनी चाहिए।
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