प्रकाशित - 16 Jul 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
भारत की आधी से अधिक जनसंख्या खेती-किसानी के काम पर निर्भर है। ऐसे में कृषि की उत्पादकता में बढ़ोतरी होना बहुत आवश्यक है ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग करके देश के खाद्यान्न उत्पादन में बढ़ोतरी की जा सके। इसके लिए जरूरी है कि हम ऐसे तरीके अपनाएं जिससे हमारी खेती लाभकारी हो और इससे अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सके। कृषि की उत्पादकता कई कारणों पर निर्भर करती है।
आज हम उन्हीं कारणों में से टॉप 10 कारणों के बारे में बात करेंगे जो आपकी खेती की उत्पादकता और खाद्यान्न में बढ़ोतरी करके आपके लाभ को कई गुना बढ़ा सकते हैं। आज कई नई विधियां और तकनीक है जिसके जरिये उत्पादन को बढ़ाने के साथ ही खेत की उत्पादकता को भी लंबे समय तक बनाए रखा जा सकता है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको कृषि की उत्पादकता में बढ़ोतरी करने के 10 आसान तरीके बता रहे हैं, तो आइये जानते हैं, इसके बारे में।
आज के समय में कृषि की उत्पादकता को बढ़ाना किसानों की जरूरत और समय की मांग है। खेती की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कई कारण है, ऐसे में यदि हम उनमें सुधार करें तो लंबे समय तक खेत की उत्पादकता को बनाए रख सकते हैं। आज हम कृषि उत्पादकता में सुधार के टॉप 10 तरीकों पर नजर डालते हैं।
कृषि उत्पादकता में सुधार का सबसे पहला कारक भूमि सुधार है। खेती के काम आने वाली मशीनें जैसे- ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, रोटावेटर आदि उपकरण व औजार द्वारा खेत की भूमि में सुधार किया जाता है। इन मशीनों की सहायता से ऊबड़- खाबड़ भूमि को समतल व भुरभुरा बनाकर खेती योग्य बनाया जाता है। इससे खेत में काम करना आसान हो जाता है और उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए भूमि सुधार सबसे अच्छा तरीका है।
अंतर रोपण एक ऐसी तकनीक है जिसके तहत एक ही समय में विभिन्न फसलें एक साथ उगाई जा सकती है। यह आपके स्थान की उत्पादकता को अधिकतम करने का सबसे अच्छा तरीका है। हालांकि इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कुछ फसलें एक साथ उगाई जा सकती है और कुछ नहीं। जैसे- गन्ने की फसल के साथ इंटरक्रॉपिंग के रूप में दलहन व तिलहन फसलें उगाई जा सकती है। इसके अलावा मटर, मसूर, गेहूं, सरसों, बेल वाली सब्जियां जैसे घीया, ककड़ी, तोरई, खीरा, चप्पनकद्दू, खरबूजा, तरबूज आदि की खेती की जा सकती हैं। जबकि यदि आप खेत में ज्वार की खेती कर रहे हैं तो आपको गन्ने की खेती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि ज्वार की फसल से गन्ने में तरफुला जैसे परजीवी खरपतवार उगने लग जाते हैं जो गन्ने की खेती के लिए ठीक नहीं होते हैं। ऐसे ज्वार के साथ गन्ने की खेती नहीं करनी चाहिए और ज्वार के बाद भी गन्ने की खेती नहीं करनी चाहिए।
खेतों की उत्पादकता बढ़ाने का यह सबसे बढ़िया तरीका है। इसमें फसलें एक दूसरे के करीब लगाई जाती है यानी कम स्थान पर अधिक पौधों का रोपण किया जाता है। कई किसान सब्जियों की खेती के दौरान उनके पौधों के बीच की दूरी अधिक रखते हैं, ऐसे में उन्हें बहुत सा खाली क्षेत्र छोड़ना पड़ता है। जबकि पौधों के बीच की दूरी को कम करके अधिक पौधे लगाकर खेत की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
एक खेत में कई प्रकार की फसलें उगाकर कृषि की उत्पादकता में बढ़ोतरी की जा सकती है। इससे उत्पादकता में सुधार होता है। जैसे- अनाज, दहलन, तिलहन या फल, फूल, सब्सियों की खेती करके खेत की उत्पादकता में बढ़ोतरी कर सकते हैं। वहीं दलहन फसल लेकर भूमि के पोषक तत्व में सुधार किया जा सकता हैं।
पारंपरिक खेती की तकनीक में ट्रैक्टर की सहायता से तैयार की गई पंक्तियों में फसलें लगाई जाती है। जबकि स्थाई क्यारियों में एक ही चौड़ाई की क्यारियों के भीतर फसलों की कई पक्तियां लगाई जा सकती है। इससे सघन वृक्षारोपण, कम पंक्तियां और अधिक सक्रिय खेती वाले क्षेत्र बनते हैं। ऊंची क्यारियां फसलों की उत्पादकता में सुधार लाती हैं।
खेत में बेहतर जल प्रबंधन करके उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है। एक बेहतर जल प्रबंधन कम पानी में अधिक उत्पादन का लाभ दे सकता है। इसके लिए आप खेत में पानी का बेहतर तरीके से सिंचाई में इस्तेमाल करें ताकि कम पानी में अधिक क्षेत्र को सींचा जा सके। इसके लिए आप स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल करके 50 प्रतिशत और ड्रिप सिंचाई सिस्टम से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत कर सकते हैं। वहीं नहरों व ट्यूबवैलों से खेत में सिंचाई की उत्तम व्यवस्था को बनाए रखा जा सकता है।
अब गर्मियों का मौसम अधिक रहने लगा है। गर्मी लंबे समय तक पड़ने लगी है। ऐसे में समय की मांग को देखते हुए हमें ऐसी फसलों की किस्मों का चयन करना चाहिए जो गर्मी सहन करने की क्षमता रखनी हो यानी उच्च तापमान में भी उपज को बनाए रखने में समक्ष हो। हमें गर्मी सहन करने वाली किस्मों में सुधार करना चाहिए और इससे फसल की उपज को 23 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है।
पौधों की बढ़ोतरी में नाइट्रोजन की अहम भूमिका रहती है। भूमि में नाइट्रोजन ग्रहण करके ही पौधों का बेहतर विकास होता है। ऐसे में हर साल फसलों को मजबूत और बेहतर विकास में सहायता प्रदान करने के लिए उर्वरक के रूप में 100 मिलियन टन नाइट्रोजन का इस्तेमाल किया जाता है। नाइट्रोजन के इस्तेमाल से उत्पादन में 22 प्रतिशत तक बढ़ोतरी की जा सकती है।
खेती में बीजों की सबसे अहम भूमिका होती है। बिना बीज के फसल उत्पादन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी है कि बीज भी बेहतर क्वालिटी का हो। ऐसे में बेहतर उत्पादन के लिए सदैव प्रमाणिक उन्नत बीज का ही उपयोग करना चाहिए। उन्नत बीज खेती की उत्पादकता में बढ़ोतरी में सहायक होते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार करीब 5 प्रतिशत फसलें कीटों और बीमारियों के कारण बर्बाद हो जाती है। आज भी हमारे देश के अधिकांश किसान हाल के सालों में विकसित की गई दवाओं व कीटनाशकों के उपयोग से अनभिज्ञ हैं। फसलों के उत्पादन और पैदावार को बेहतर बनाने के लिए इन दवाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन किसानों को इन दवाओं व कीटनाशकों का प्रयोग किसी खेती के जानकर या कृषि विशेषज्ञ की सलाह या देखरेख में करना चाहिए। इधर सरकार को भी कीटनाशकों और कीटनाशकों के छिड़ाकाव के लिए कदम उठाने चाहिए। किसानों को इसके लिए जागरूक करने हेतु अपने तकनीकी कर्मचारियों को इस काम में लगाना चाहिए।
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