आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से बचाने के आसान उपाय

Share Product प्रकाशित - 29 Jan 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से बचाने के आसान उपाय

पंजाब में आलू की फसल पर देखा गया इस रोग का प्रकोप, किसान बरतें ये सावधानी

किसान अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कई प्रकार की फसलों की खेती करते हैं। इसमें सब्जियों की खेती (vegetable farming) भी शामिल है। सब्जियों की खेती में आलू व प्याज (potatoes and onions) का नाम पहले आता है। यह दोनों ही सब्जियों की मांग बाजार में 12 महीने बनी रहती है। ऐसे में आलू व प्याज की खेती (Potato and onion cultivation) किसानों के लिए अधिक कमाई वाली फसलें मानी जाती हैं। इस साल कई किसानों ने आलू की खेती (Farming of potato) की है ताकि उन्हें इसकी उपज से बेहतर कमाई मिल सके, लेकिन इस बार आलू की फसल में लेट ब्लाइट रोग (late blight disease) का प्रकोप देखने को मिल रहा है। लेट ब्लाइट रोग को आलू का पछेता झुलासा रोग भी कहते हैं।

अभी पिछले माह ही पंजाब में इस रोग का प्रकोप देखा गया जिससे किसानों की करीब 10 प्रतिशत से ज्यादा फसल को इस रोग से नुकसान हुआ है। इसे देखते हुए किसानों को आलू में लगने वाले लेट ब्लाइट रोग (late blight disease) और इससे बचाव की जानकारी होना बेहद जरूरी है। यदि पहले से ही सुरक्षा कर ली जाए तो आलू के लेट ब्लाइट रोग से होने वाले संभावित नुकसान से बचा जा सकता है।

आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को आलू में लगने वाले लेट ब्लाइट रोग (late blight disease) क्या है और इसके बचाव के लिए किसान क्या उपाय कर सकते हैं, इस बात की जानकारी दे रहे है। 

क्या है आलू का लेट ब्लाइट रोग (What is late blight disease of potato)

आलू का लेट ब्लाइट रोग एक कवक जनित रोग है। यह कवक एक अविकल्पी परजीवी होता है। इसे पनपने के लिए सर्दियों में पौधों के मलबो और कंदों या अन्य धारकों की आवयकता होती है। यह पौधे की त्वचा के घावों ओर फटे हुए भागों के जरिये पोधे में प्रवेश करता है। वसंत ऋतु के दौरान उच्च् तापमान पर फफूंद के बीजाणु पैदा होते हैं। यह बीजाणु हवा व पानी के माध्यम से एक जगह से दूसरी जगह पर फैल जाते हैं। इस तरह यदि एक खेत में इस रोग का प्रकोप है तो आसपास के खेतों में भी इसका प्रकोप हो सकता है। ऐसे में इस रोग से बचाव करना जरूरी हो जाता है।  

क्या होते हैं आलू के लेट ब्लाइट रोग के लक्षण (What are the symptoms of late blight disease of potato)

आलू की फसल को जब लेट ब्लाइट रोग लगता है तो इसके पौधे में कई प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। यदि आपको भी अपनी आलू की फसल में नीचे दिए गए लक्षण दिखाई दे तो समझ ले कि आपकी फसल में लेट ब्लाइट रोग का प्रकोप है। ऐसा होते ही आपको इसका उपचार करना चाहिए। आलू की फसल में ब्लाइट रोग के प्रकोप के कारण जो लक्षण दिखाई देते हैं, वे इस प्रकार से हैं

  • इस रोग के प्रकोप से आलू के पौधों की पत्तियों की नोकों और किनारों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
  • पत्तियों की सतह के निचले हिस्से में सफेद कवक के आवरण दिखाई देने लगते हैं। इससे पत्तियां मुरझा जाती है और मर जाती हैं।
  • आलू के कंदों पर भी इसका प्रभाव दिखाई देता है। ऐसे में आलू के कंदों पर नीले व सलेटी रंग के धब्बे दिखाई देने लगते है। इस कवक का प्रकोप बढ़ने पर आलू कंद सड़ने लगते है।

लेट ब्लाइट रोग से कितना हो सकता है नुकसान (How much damage can be caused by late blight disease)

आलू के लेट ब्लाइट रोग से काफी नुकसान हो सकता है। अभी कुछ समय पहले पंजाब में लेट ब्लाइट रोग का प्रकोप देखा गया। इससे यहां के किसानों को आलू की फसल के इस रोग से करीब 10 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ। वहीं आलू किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है, एक तो रोग से 10 प्रतिशत फसल बर्बाद हो कई और दूसरी ओर मंडियों में भी आलू का थोक भाव 5 से 6 रुपए प्रति किलोग्राम रह गया। वहीं पाकिस्तान में आलू का भाव 40 रुपए प्रति किलोग्राम है। ऐसे में किसानों ने सरकार से पाकिस्तान को आलू निर्यात की अनुमति देने को कहा है, क्योंकि भारत ने पाकिस्तान को निर्यात करने पर रोक लगा रखी है। ऐसे में यदि समय पर आलू के लेट ब्लाइट रोग के नियंत्रण के उपाय नहीं किए जाए तो आलू की फसल को 80 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

लेट ब्लाइट रोग से आलू की फसल को बचाने के लिए क्या करें उपाय (Measures to protect potato crop from late blight disease)

आलू की फसल की लेट ब्लाइट रोग से रोकथाम के लिए किसानों को कुछ उपाय अपनाने जरूरी है ताकि फसल को नुकसान नहीं हो और बेहतर पैदावार प्राप्त की जा सके। इसके लिए किसानों को जो उपाय अपनाने चाहिए, वे इस प्रकार से है

आलू की फसल को लेट ब्लाइट रोग से बचाने के लिए बुवाई के समय रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। आमतौर पर देखा गया है कि देर से पकने वाली किस्में, पहले पकने वाली किस्मों की अपेक्षा अधिक प्रतिरोधी होती हैं।

  • आलू की फसल में ऊपरी सिंचाई करने से बचना चाहिए।
  • आलू की फसल में नुकसान को रोकने के लिए कंदों को तब तक नहीं खोदना चाहिए तब तक कि वे पूरी तरह से परिपक्व न हो जाएं।
  • आलू की बुवाई के लिए उस खेत का उपयोग नहीं करना चाहिए जिसका उपयोग पिछले साल आलू या टमाटर की फसल के लिए किया गया हो।
  • इस वर्ष के आलू बुवाई के क्षेत्र को पिछले वर्ष के क्षेत्र से कम से कम 225 से 450 गज की दूरी पर रखना चाहिए, ऐसा करने से इस रोग के लगने की संभावना कम हो जाती है।
  • हवा से उड़ने वाले बीजाणुओं के प्रवेश को रोकने के लिए खेत को चारों ओर गेहूं से घेर देना चाहिए।
  • लेट ब्लाइट रोग के प्रकोप को कम करने के लिए पर्याप्त नाइट्रोजन स्तर और कम फास्फोरस स्तर का उपयोग करना चाहिए। 

आलू में ब्लाइट रोग के प्रकोप से बचाव के लिए रासायनिक उपाय भी किए जाते हैं। इसमें मेंडीप्रोपेमिड, कलोरोथलोनिल, फ्लुजिनम या मेंकोजेब युक्त निवारक उपचारों का उपयोग किया जाता है। मेंकोजेब जैसे कवकनाशकों का उपयोग आलू की बुवाई से पहले और बीजों के उपचार के लिए भी किया जा सकता है।

नोट : किसानों को सलाह दी जाती है कि फसल पर किसी भी रासायनिक उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग करने पहले अपने जिले के निकटतम कृषि विभाग से सलाह अवश्य लेनी चाहिए और कृषि अधिकारी या विशेषज्ञ की देखरेख में ही फसलों पर रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए।

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