प्रकाशित - 05 Sep 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
देश में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की दिशा में निरंतर प्रयास जारी हैं। कृषि वैज्ञानिक आए दिन खेती में नए प्रयोग करके खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए नई-नई किस्में विकसित करते हैं। इसी क्रम में पिछले दिनों जब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लुधियाना के वैज्ञानिकों ने गेहूं की तीन किस्मों की पहचान की है और उन्हें देश भर के लिए जारी किया है। बताया जा रहा है कि ये किस्में रोग प्रतिरोधी होने के साथ ही अधिक पैदावार देने में समक्ष हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 29 अगस्त को राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर में उप महानिदेशक (फसल विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की अध्यक्षता में आयोजित वैराइटी आइडेंटिफिकेशन कमेटी (वीआईसी) की बैठक में हुई। इसमें गेहूं की तीन नई किस्में देशभर के किसानों के लिए जारी की गई। उम्मीद की जा रही है कि आगामी रबी सीजन में देशभर के किसानों को यह किस्में बुआई के लिए उपलब्ध हो सकेंगी।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को गेहूं की इन तीन नई किस्मों की विशेषता और लाभ की जानकारी दे रहे हैं।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की ओर से चिन्हित और जारी की गई गेहूं की पीबीडब्ल्यू-826 किस्म देश की दो प्रमुख गेहूं पट्टी के लिए उपयोगी बताई जा रही है। इस किस्म को पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ हिस्सों, उत्तराखंड, जम्मू और हिमाचल प्रदेश सहित उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र के लिए यह उपयोगी बताया जा रहा हैं। इन राज्यों में इस किस्म का प्रयोग समय पर और सिंचित बुवाई के तहत किया जा सकता है। यह किस्म इन क्षेत्रों में तीन साल के परीक्षण के दौरान अनाज की उपज के मामले में पहले स्थान पर रही है। इस किस्म में अधिक हेक्टोलीटर भार वाले मोटे दानों का उत्पादन होता है।
वहीं यह किस्मपूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे उत्तर पूर्व मैदानी क्षेत्र के लिए भी उपयोगी पाई गई है। यह किस्म सिंचित समय पर बुवाई की के लिए बेहतर किस्म बताई जा रही है।
ये किस्म भी पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की ओर जारी की गई है। इस किस्म को देश के उत्तर पश्चिम मैदानी क्षेत्र के किसानों के लिए जारी किया गया है। इसका प्रयोग सिंचित भूमि में किया जा सकता है। इस किस्म की पहचान जल्दी बोई जाने वाली और उच्च उपज संभावित किस्म तौर पर की गई है।
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की ओर से गेहूं की तीसरी किस्म पीबीडब्ल्यू 833 जारी की गई है। यह किस्म उच्च अनाज उपज और प्रोटीन सामग्री के तौर पर चिन्हित की गई है। इस किस्म को देश के उत्तर पूर्व मैदानी क्षेत्र की सिंचित भूमि के लिए जारी किया गया है। यह देर से बोई जाने वाली किस्म है।
उपरोक्त किस्म के अलावा भी कई गेहूं की किस्में हैं, जो बेहतर उत्पादन देती हैं। ये किस्में इस प्रकार से हैं।
गेहूं की इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा सबसे ज्यादा (12.69 प्रतिशत) होती है। यह कीट और रोगों प्रतिरोधी किस्म बताई जाती है। इसकी उत्पादन क्षमता 74 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है।
इस किस्म को डीबीडब्ल्यू-187 भी कहा जाता है। गेहूं की ये किस्म गंगा तटीय क्षेत्रों के लिए अच्छी मानी जाती है। इसकी फसल करीब 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की उत्पादन क्षमता प्रति हेक्टेयर करीब 75 क्विंटल है। इस किस्म में पीला रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियां लगने की संभावना बहुत कम होती है।
पूसा यशस्वी
गेहूं की इस किस्म खेती कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के लिए अच्छा माना गया है। इसकी बुवाई 5 नवंबर से 25 नवंबर तक की जा सकती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 57.5 से 79. 60 क्विंटल तक पैदावार होती है। यह किस्म फफूंदी और गलन रोग प्रतिरोधक है।
यह किस्म उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य के लिए सही मानी गई है। यह किस्म 127 दिनों में पकने कर तैयार हो जाती है। इस किस्म को मात्र एक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। इसकी अधिकतम उत्पादन क्षमता 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
इस किस्म की बुवाई 25 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच की जा सकती हैं। इसकी रोटी की गुणवत्ता अच्छी मानी और जाती है। इसमें 4 सिंचाई की ही आवश्कता पड़ती है। ये किस्म 143 दिनों में काटने लायक हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 65.1 से 82.1 क्विंटल तक पैदावार देती है।
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