प्रकाशित - 22 Oct 2024
रबी फसल की बुवाई का सीजन आ गया है। किसान इसके लिए खेत की तैयारी में जुट गए हैं। किसान बीज, खाद व उर्वरकों की खरीद भी कर रहे हैं। सरकार की ओर से भी किसानों को दलहन व तिलहन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार की ओर से दलहन व तिलहन की बुवाई के लिए इसकी उन्नत किस्मों की बुवाई करने को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि देश में दलहन व तिलहन का बंपर उत्पादन हो सके। इस बात को ध्यान में रखते हुए कृषि वैज्ञानिकों और कृषि विश्वविद्यालयों की ओर से भी दलहन फसलों की नई उन्नत किस्में विकसित की गई है।
इसी कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आईएआरआई (पूसा) की ओर से चने की खेती (Gram Cultivation) के लिए नई उन्नत किस्म विकसित की गई है जो कम लागत में अधिक पैदावार देने में समक्ष है। इस किस्म का नाम पूसा चना 20211 देसी (पूसा मानव) किस्म है। चने की इस किस्म से 32.9 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
दरअसल पूसा चना 20211 देसी (पूसा मानव) किस्म को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति की ओर से खेती के लिए साल 2021 में जारी किया गया था। चने की इस किस्म को मध्य भारत के लिए उपयुक्त पाया गया जिसे गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के लिए जारी किया गया है। चने की इस किस्म को समय से बुवाई और सिंचित अवस्था के लिए अनुशंसित किया गया है। चने की पूसा चना 20211 देसी (पूसा मानव) किस्म की विशेषताएं इस प्रकार से हैं-
चने की खेती में अधिक पैदावार पाने के लिए असिंचित व सिंचित क्षेत्र में इसकी बुवाई अक्टूबर के प्रथम और दूसरे पखवाड़े में करना अच्छा बताया गया है। वहीं जिन खतों में उकटा रोग का प्रकोप अधिक है, वहां इसकी बुवाई देरी से करनी चाहिए। चने की बुवाई के लिए अच्छे जल निकास वाली हल्की दोमट मिट़्टी अच्छी रहती है। मिट्टी का पीएच मान 6.6 से 7.2 के बीच होना चाहिए। चने की खेती के लिए अम्लीय और ऊसर भूमि ठीक नहीं होती है। चने की बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। इसमें खेत की पहली जुताई ट्रैक्टर से जुड़कर चलने वाले मिट्टी पलटने वाले हल या डिस्क हैरो से करें। इसके बाद एक क्रॉस जुताई करनी चाहिए और इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। चने के बीजों की बुवाई गहराई में करनी चाहिए। ऐसा करने से कम पानी में भी इसकी जड़ों में नमी बनी रहती है। सिंचित क्षेत्रों में इसके बीजों की बुवाई 5 से 7 सेमी गहराई में करनी चाहिए। वहीं बारानी क्षेत्रों में संरक्षित नमी को देखते हुए इसकी बुवाई 7 से 10 सेमी गहराई में करना उचित रहता है। इसकी बुवाई कतार में करनी चाहिए। बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए। वहीं काबुली चने की खेती में कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी रखी जा सकती है। चने के बीजों की बुवाई से पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए। इसमें चने की फसल को जड़ गलन व उखटा रोग के प्रकोप से बचाने के लिए इसके बीजों को 2.5 ग्राम थाईरम या 2 ग्राम मैन्कोजेब या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद ही इसकी बुवाई करनी चाहिए। वहीं जिन क्षेत्रों में दीमक का प्रकोप अधिक है। वहां इसके 100 किलोग्राम बीज को 600 मिली क्लोरोपायरीफॉस 20 ईसी से बीज को उपचारित करके बीजों की बुवाई करनी चाहिए। बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करके ही चने की बुवाई की जानी चाहिए।
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