प्रकाशित - 19 Nov 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
रबी सीजन की बुवाई शुरू हो गई है। किसान इस सीजन में गेहूं के साथ ही चने की बुवाई प्रमुखता से करते हैं। चना रबी सीजन की प्रमुख दलहन फसल है। चने की खेती से किसानों को अधिक से अधिक लाभ हो, इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने चने की कई नई किस्मों को विकसित किया है जिसमें काबुली चने की बीजी-3022 किस्म भी शामिल है। इस किस्म को 2015 में केंद्रीय विमोचन समिति द्वारा जारी किया गया था। इस किस्म को देश के उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के लिए बेहतर पाया गया है। इस किस्म की खेती राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के किसान कर सकते हैं।
चने की बीजी-3022 किस्म से औसतन 18 क्विंटल प्रति हैक्टेयर और अधिकतम 30 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
उपरोक्त काबुली चने की किस्म के अलावा भी कई ऐसी किस्में जो अधिक पैदावार दे सकती हैं। काबुली चने की अधिक पैदावार देने वाली प्रमख किस्में इस प्रकार से हैं-
चने की एसआर 10 किस्म की खेती सिंचित व असिंचित दोनों तरह की भूमियों में की जा सकती है। यह किस्म रोपाई के करीब 140 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधों में रोग का प्रकोप कम देखा गया है। इस किस्म की खेती विशेष रूप से राजस्थान में अधिक की जाती है। इस किस्म से 20 से 25 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
चने की इस किस्म को चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित किया गया है। यह किस्म मध्यम समय में अधिक पैदावार दे सकती है। यह किस्म करीब 110 से 130 दिन की अवधि में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खेती बारानी भूमि को छोड़कर लगभग सभी प्रकार की भूमियों में की जा सकती है। इस किस्म के दानों का आकार सामान्य व गुलाबी रंग का होता है। इस किस्म में उकठा रोग का प्रकोप कम होता है। इस किस्म से करीब 25 से 30 क्विंटल के बीच पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
काबुली चने की यह किस्म कम समय में पैदावार देने वाली किस्म है। इस किस्म को व्ही 2 नाम से भी जाना जाता है। इस किस्म के दाने मध्य मोटाई के होते हैं और दिखने में आकर्षक होते हैं। इस किस्म की खेती सिंचित और असिंचित दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है। इसके दाने छोले के रूप में अधिक स्वादिष्ट होते हैं। काबुली चने की इस किस्म को तैयार होने में करीब 85 से 95 दिन का समय लगता है। इस किस्म से 15 से 20 क्विंटल के बीच पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
काबुली चने की शुभ्रा किस्म की खेती सिंचित और असिचिंत दोनों तरह की भूमियों पर की जा सकती है। इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं। इस किस्म के पौधे सूखे के प्रति सहनशील पाए गए हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि इसमें उकठा रोग का प्रकोप नहीं होता है। काबुली चने की यह किस्म 120 से 125 दिन के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस किस्म से करीब 20 क्विंटल के बीच पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
काबुली चने की यह एक विदेश किस्म है। इस किस्म को असिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे सामान्य ऊंचाई के होते हैं। यह किस्म रोपाई के करीब 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है। इसके दाने आकार में मोटे होते हैं। इसके दानों का रंग बोल्ड सफेद और चमकदार होता है। इसके दानों का बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है। इस किस्म के पौधों में कीट रोग का प्रकोप बहुत कम पाया गया है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर औसतन 25 से 35 क्विंटल के बीच पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
काबुली चना की खेती के लिए सबसे पहले खेत की मिट्टी को ट्रैक्टर व कल्टीवेटर या रोटावेटर की सहायता से जुताई कर भुरभुरा बना लेना चाहिए। इसके लिए खेत की 2 से 3 जुताइयां करना पर्याप्त है। इसके बाद खेत को पाटा लगाकर एक समान कर लेना चाहिए। पाटा लगाने से खेत की नमी संरक्षित रहती है। इसके बाद बुवाई के लिए बीजों की मात्रा दानों के आकार (भार), बुवाई के समय विधि और भूमि की उर्वरा शक्ति पर निर्भर करती है, उसी हिसाब से बीजों की मात्रा रखनी चाहिए। बीजों की बुवाई करने से पहले उन्हें राइजोबियम एवं पी.एस.बी प्रत्येक की 5 ग्राम मात्रा प्रतिकिलो बीज की दर से लेकर उपचारित करना चाहिए। अब उपचारित बीज को कुछ समय छाया में सुखाने के बाद ही उसकी बुवाई करनी चाहिए। इसके बाद बीज को मोलेब्डनम एक ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें। चने की बुवाई के लिए सीडड्रिल का उपयोग करें। यदि खेत में नमी कम हो तो बीज को नमी के संपर्क में लाने के लिए बीजों की बुवाई गहराई में करें और पाटा लगाएं। बुवाई या रोपाई के समय पौधों की संख्या 25 से 30 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से रखनी चाहिए। इसमें कतार से कतार की दूरी 30 सेमी तथा पौधे से पौधों की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिए। यदि सिंचित अवस्था में काबुली चने की बुवाई की जा रही है तो कतार से कतार बीच की दूरी 45 सेमी रखनी चाहिए। पछेती बुवाई की स्थिति में बुवाई करते समय बीज की मात्रा को 20 से 25 प्रतिशत तक बढ़ाकर बुवाई करनी चाहिए। देरी से बुवाई करने पर कतार से कतार की दूरी को घटाकर 25 सेमी रखा जाना चाहिए। काबुली चने में उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परिक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए।
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