प्रकाशित - 19 Apr 2024
कपास की खेती का समय आ गया है। देश में कई जगहों पर किसान 20 अप्रैल से कपास की बुवाई शुरू कर देंगे। ऐसे में कपास किसानों को इसकी बेहतर पैदावार और इससे लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। इसके अलावा गुलाबी सुंडी के प्रकोप से भी इसे बचाना आवश्यक है। ऐसे में कपास किसानों को चाहिए कि कपास की बुवाई करते समय कुछ बातों का ध्यान रखें ताकि उन्हें बेहतर पैदावार मिल सके।
बता दें कि गुलाबी सुंडी के प्रकोप से हर साल कपास की फसल को नुकसान होता है। ऐसे में कृषि विशेषज्ञों द्वारा किसानों को इस कीट के प्रकोप से बचाव के उपाय बताए जा रहे हैं। किसानों को जागरूक किया जा रहा है जिससे वे गुलाबी सुंडी कीट से अपनी कपास की फसल को सुरक्षित कर सके।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को कपास की बुवाई के समय ध्यान रखने वाली प्रमुख 5 बातों की जानकारी यहां दे रहे हैं जो उन्हें कपास की बेहतर पैदावार दिलाने में सहायता कर सकती है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को सही समय पर कपास की बिजाई करनी चाहिए। बिजाई के दौरान उपयुक्त दूरी रखने और बीज की मात्रा आदि की जानकारी किसान को होनी चाहिए। कृषि अधिकारियों के अनुसार कपास की बुवाई 20 अप्रैल से 20 मई के बीच करना फायदेमंद रहता है। अगेती और पिछेती बुवाई हर बार कारगर नहीं होती है। ऐसे में किसानों को उपयुक्त समय पर ही कपास की बुवाई कर देनी चाहिए। सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था नहीं होने की स्थिति में कपास की पिछेती बुवाई की जगह किसान मूंग मोठ जैसी कम पानी में उगने वाली फसलों की खेती का सकते हैं।
कपास की खेती (cotton farming) के लिए मिट्टी का चयन करना भी जरूरी होता है। कपास की फसल करीब छह माह तक खेत में रहती है। ऐसे में मिट्टी के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए। कपास की खेती के लिए काली, मध्यम से गहरी (90सेमी) और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी का चयन किया जाना चाहिए। ऐसी भूमि में कपास की फसल अच्छी होती है। वहीं कपास की खेती के लिए उथली, हल्की खारी व दोमट मिट्टी का चयन नहीं करना चाहिए। ऐसी मिट्टी कपास की फसल के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है।
कृषि विभाग के मुताबिक राजस्थान में कपास की बुवाई का उचित समय 20 अप्रैल से 20 मई तक माना गया है। बुवाई के लिए अच्छे बीजों का चयन करना भी जरूरी है। एक बीघा में बीटी कॉटन का एक पैकेट (475 ग्राम) बीज ही उपयोग में लेने की सलाह दी गई है। वहीं प्रति बीघा 2 से 3 पैकेट डालना फायदेमंद नहीं होता है। बुवाई के लिए बीटी कॉटन की ढाई फीट वाली बुवाई मशीन को 108 सेमी. (3 फीट) पर सेट करना चाहिए। किसी भी हालत में 3 फीट से कम दूरी पर बीजों की बुवाई नहीं करनी चाहिए। प्रथम सिंचाई के बाद पौधों से पौधों की दूरी 2 फीट रखने के लिए विरलीकरण जरूरी करना चाहिए।
कपास के बीजों की बुवाई के समय सिफारिश उर्वरक बैसल में अवश्य देना चाहिए, क्योंकि बैसल में दिए जाने उर्वरक खड़ी फसल में देने से अधिक कारगर परिणाम नहीं देते हैं। खाद उर्वरक का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। यदि मिट्टी में कार्बनिक तत्वों की कमी है तो उसकी पूर्ति के लिए अनुशंसित खाद व उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए जिसकी जानकारी आप अपने जिले के कृषि विभाग से प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा खेत की तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की सड़ी खाद मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। इससे फसल को लाभ होगा।
पिछली बार राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में गुलाबी सुंडी के प्रकोप से करीब 80 प्रतिशत फसल का नुकसान हुआ था। किसानों ने 2 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में बीटी कॉटन की बुवाई की थी जिसमें 80 प्रतिशत फसल नुकसान गुलाबी सुंडी के कारण हुआ था। इसलिए किसान को इस बार ऐसे बीज की चयन करना चाहिए जिसमें गुलाबी सुंडी का प्रकोप नहीं हो। कृषि विभाग के अधिकारियों के अनुसार पिछले साल जिले में बीटी कॉटन की मार्च के अंत से लेकर मई के अंत तक बुवाई हुई थी। गुलाबी सुंडी के प्रकोप और बॉल सड़ने के रोग के कारण बॉल के अपरिपक्व रहने के कारण किसानों को उम्मीद के मुताबिक पैदावार नहीं मिल पाई थी। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे कपास बीज की बुवाई करने से पहले अपने खेतों में भंडारित की गई कॉटन बनछटियों के ढेर का निस्तारण करें और इसके बाद ही कपास की बुवाई करें ताकि कुछ हद तक गुलाबी सुंडी के प्रकोप को रोका जा सके।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सोशल मीडिया पर बीटी 4 तक किस्म के बीज होने का दावा किया जा रहा है और इसमें यह भी बताया जा रहा है कि इस बीज में गुलाबी सुंडी का प्रकोप नहीं होता है। इस संबंध में कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक बीटी-2 किस्म का बीज ही उपलब्ध है, इस किस्म में गुलाबी सुंडी की प्रतिरोधी क्षमता नहीं है। अब तक इसको लेकर कोई रिसर्च भी नहीं हुई है। ऐसे में कपास किसानों को सलाह दी जाती है कि ऐसे भ्रामक दावों या विज्ञापनों पर विश्वास नहीं करें और अपने क्षेत्र के लिए कृषि विभाग द्वारा अनुशंसित कपास की किस्म का बीज ही बुवाई के लिए उपयोग में लें।
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