प्रकाशित - 01 Jul 2022
निरंतर पानी की कमी को देखते हुए आज धान की खेती करना काफी कठीन काम होता जा रहा है। धान की खेती में सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता होती है। जिस पानी में दो या उससे अधिक अन्य फसल उगाई जा सकती है उतना पानी अकेले धान खेती में खर्च हो जाता है। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि परंपरागत तरीके से धान की खेती करने पर एक किलोग्राम चावल उत्पादन करने के लिए लगभग 3000 से 5000 लीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है।
धान की खेती में अधिक पानी की आवश्यकता को देखते हुए कई राज्यों ने अपने यहां किसानों से धान खेती नहीं करने की सलाह दी है। इसी बीच कृषि वैज्ञानिकों ने धान की स्वर्ण शक्ति किस्म विकसित की गई है जो किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। आज हम धान की स्वर्ण शक्ति किस्म के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो अन्य किस्मों के मुकाबले कम पानी में पैदा की जा सकती है।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के अनुसार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय पटना के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र जमुई ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पटना के विज्ञानियों के साथ मिलकर स्वर्ण शक्ति किस्म को विकसित किया है। कृषि विज्ञान केंद्र जमुई के वैज्ञानिकों ने अपने कई सालों के शोध व परिक्षण के बाद धान की स्वर्ण शक्ति किस्म विकसित की है। फसल बीज अधिसूचना केंद्र उप समिति व राज्य बीज उप समिति ने भी इसे बाजार में उतारने की अनुमति प्रदान कर दी है। किसान खरीफ सीजन में इसकी खेती करके लाभ उठा सकते हैं। धान की खेती के लिए यह किस्म कम पानी में या फिर असिंचित क्षेत्र में भी आसानी से उपजाई जा सकती है। इसके साथ ही इस प्रजाति से धान का उत्पादन दूसरी धान की किस्मों की अपेक्षा अधिक है।
धान की स्वर्ण शक्ति किस्म की सबसे बड़ी विशेषता ये हैं कि ये कम पानी में अधिक उत्पादन देती है। इसकी मुख्य विशेषता इस प्रकार से हैं
सबसे पहले खेत की एक गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे खरपतवार, कीट और रोगों के प्रबंधन में सहायता मिलती है। धान की सीधी बुआई द्वारा खेती करने के लिए एक बार मोल्ड हल की सहायता से जुताई करके फिर डिस्क हैरो और रोटावेटर चलाएं। ऐसा करने से पूरे खेत में बीजों का एक समान अंकुरण, जड़ों का सही विकास, सिंचाई के जल का एक समान वितरण होने से पौधों का विकास बहुत अच्छा होगा और अच्छी उपज हासिल होगी।
स्वर्ण शक्ति धान की बुआई का सर्वोत्तम समय जून के दूसरे सप्ताह से लेकर चौथे सप्ताह तक होता है। लेकिन किसान भाई जुलाई माह में भी इसकी बुवाई कर सकते हैं।
इस धान की सीधी बुआई हाथ से अथवा बीज-सह-उर्वरक ड्रिल मशीन द्वारा करीब 25-30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की बीज दर के साथ 3-5 से.मी. गहरी हल-रेखाओं में 20 से.मी. की दूरी पर पंक्तियों में की जाती है।
इस प्रजाति के पौधों के उचित विकास के लिए प्रति हैक्टेयर 120 किलोग्राम नाईट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है। इसमें से बुआई के लिए भूमि की अंतिम तैयारी के समय फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी खुराक और नाईट्रोजन उर्वरक की केवल एक तिहाई मात्रा को खेत में मिला देना चाहिए। शेष नाईट्रोजन उर्वरक को दो बराबर भागों में बांटकर, एक भाग को कल्ले (टिलर) आने के समय (बुआई के 40-50 दिनों बाद) तथा दूसरे भाग को बाली आने के समय (बुआई के 55-60 दिनों बाद) देना चाहिए।
स्वर्ण शक्ति धान की खेती बिना कीचड़ एवं बिना जल जमाव किए सीधी बुआई करके की जाती है। यह सूखा सहिष्णु एरोबिक प्रजाति है, इसलिए यदि फसल अवधि के दौरान वर्षा सामान्य हो और सही रूप से वितरित हो तो फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि सूखे की स्थिति में फसल को विकास की महत्वपूर्ण अवस्थाओं जैसे बुआई के बाद, कल्ले निकलते समय, गाभा फूटते समय, फूल लगते समय एवं दाना बनते समय मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखने की जरूरत होती है।
धान की सीधी बुआई करने पर खेतों में खरपतवार का प्रकोप काफी बढ़ जाता है, जिसमें मोथा, दूब, जंगली घास, सावां, सामी आदि खरपतवार फसल को नुकसान पहुंचते हैं। इन सभी खरपतवारों के उचित नियंत्रण के लिए बुवाई के एक या दो दिनों के अंदर ही पेंडीमेथलीन का 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व / हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए। इसके उपरांत ही बिस्पैरिबक सोडियम का 25 ग्राम सक्रिय तत्व/ हैक्टेयर की दर से बुआई के 18-20 दिनों के अंदर छिडक़ाव करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो बुआई के 40 दिनों बाद और 60 दिनों बाद हाथों से अथवा यंत्रों द्वारा निराई की जा सकती है।
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