Published - 26 Aug 2021
हरियाणा के बाद पंजाब ने अपने यहां गन्ना रेट बढ़ा दिया है। पंजाब सरकार ने किसानों की मांग को बाजिव मानते हुए गन्ने के रेट में 35 रुपए क्विंटल की बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी के साथ अब पंजाब में गन्ने का रेट 360 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। ये रेट हरियाणा राज्य सरकार की ओर से तय किए गए रेट से 2 रुपए अधिक है। बता दें कि हरियाणा सरकार ने गन्ना का रेट अपने यहां 358 रुपए प्रति क्विंटल की दर से तय कर रखा है। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार मंगलवार को कैंप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट कर कहा कि मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि किसानों से बातचीत के बाद 360 रुपए प्रति क्विंटल एसएपी (राज्य समर्थित परामर्श मूल्य) को मंजूदी दे दी गई है। हमारी सरकार किसानों की भलाई के लिए प्रतिबद्ध है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने साथ ही किसानों का चीनी मिलों पर चल रहा बकाया भी जल्द दिलवाने का आश्वासन दिया।
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पंजाब में गन्ने का रेट बढ़ाने के लिए आंदोलन कर रहे किसानों को बड़ी सफलता मिली है। पंजाब सरकार ने गन्ने का रेट बढ़ाकर 360 रुपए प्रति कुंतल कर दिया है। गन्ने का रेट बढ़ाने को लेकर पिछले पंजाब में किसान आंदोलन कर रहे थे। नए रेट की घोषणा होने के बाद किसानों ने गन्ने को लेकर चलाया जा रहा अपना प्रदर्शन वापस ले लिया है। बता दें कि पंजाब में पिछले पांच वर्षों से गन्ने का रेट नहीं बढ़ाया गया था। जिसके बाद पिछले कई वर्षों से गन्ने का मूल्य बढ़ाए जाने की मांग कर रहे थे। इसके लिए किसान नेताओं ने पंजाब के जलंधर नेशनल हाईवे 1 और रेलवे मार्ग पर प्रदर्शन शुरू कर दिया था।
किसानों का कहना था कि जिस अनुपात में डीजल और दूसरी चीजों के रेट बढ़े हैं गन्ने का रेट कम से कम 400 रुपए प्रति कुंतल किया जाना चाहिए। किसान नेताओं का कहना है कि हम लोग जो चाहते थे वो रेट तो नहीं हुआ लेकिन फिर भी ठीक है। कुछ डीजल, मजदूरी का कुछ खर्च निकलेगा। आगे फिर किसान अपनी बात रखेंगे। पंजाब में किसानों को जल्द तैयार होने वाली किस्मों का 310 रुपए, मध्यम वाली को 300 रुपए और देर से तैयार होने वाली वैरायटी को 295 रुपए प्रति कुंटल का रेट मिलता था। 19 अगस्त को मुख्यमंत्री की अगुवाई में हुई एक अहम बैठक में प्रति कुंटल 15 रुपए की बढ़ोतरी करने की घोषणा हुई थी, यानि अगैती की 325, मध्यम की 315 और लेट वैरायटी की 310 रुपए प्रति कुंटल एसएपी तय की गई थी, जिसे किसानों ने ठुकरा दिया था। आखिरकार पंजाब सरकार ने माना कि किसानों की मांग सही है गन्ना का रेट बढ़ाया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में वर्तमान चीनी सत्र 2020-21 के दौरान रिकॉर्ड 90,872 करोड़ रुपए की गन्ने की खरीद हुई थी, जिसमें से 81,963 करोड़ रुपए के किसानों को भुगतान कर दिया गया है। उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के 16 अगस्त के आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान सत्र के 90872 करोड़ रुपए के गन्ने के मुकाबले महज 8,908 करोड़ बाकी हैं, जबकि पिछले चीनी सत्र 2019-20 में, लगभग 75,845 करोड़ रुपये के देय गन्ना बकाये में से 75,703 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया और सिर्फ 142 करोड़ रुपए का बकाया है। केंद्र सरकार के मुताबिक अरिरिक्त चीनी के निर्यात और अतिरिक्त चीनी और गन्ने से इथेनॉल बनाए जाने से चीनी मिलों के पास लिक्विडिटी बढ़ी है और गन्ना किसानों के भुगतान की प्रक्रिया तेज हुई है।
गन्ना किसानों के हित में बीते महीने बिहार सरकार की ओर से भी अहम फैसला लिया गया। इसके तहत बिहार सरकार अब गन्ना किसानों को भी कृषि इनपुट अनुदान का लाभ देगी। इससे गन्ना किसानों के नुकसान की भरपाई हो सकेगी। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार गन्ने की फसल को प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, तूफान ओलावृष्टि से हुए नुकसान का कृषि विभाग की ओर से फसल क्षति का आकलन किया जाएगा। इसके बाद गन्ना किसानों के नुकसान की भरपाई सरकार करेगी। बता दें कि बिहार में गन्ना की खेती गन्ना उद्योग विभाग द्वारा नियंत्रित होती रही है। इसलिए बाढ़ आने पर कृषि विभाग फसलों की होने वाली क्षति का आकलन तो अब तक करता रहा है, लेकिन इससे गन्ने की फसल को होने वाले नुकसान का आकलन नहीं हो पा रहा था। लेकिन सरकार के द्वारा लिए गए फैसले के बाद अब अन्य फसलों के साथ-साथ गन्ने की फसल की क्षति का भी आकलन भी किया जा सकेगा। सरकार के इस फैसले से गन्ना उत्पादक किसानों को नियमानुसार कृषि इनपुट अनुदान पर लाभ मिल सकेगा। इससे राज्य के करीब तीन लाख हेक्टेयर में गन्ना की खेती करने वाले लाखों किसानों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
यूपी में चार साल के दौरान गन्ने के रेट में मात्र 10 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। मुजफ्फरनगर के धनायन गांव निवासी गन्ना किसान प्रशांत त्यागी का कहना है कि तीन साल में गन्ने की खेती करना करीब 35 फीसदी महंगा हो गया है। इसके दाम नहीं बढ़े हैं। यूपी में नई सरकार के सत्ता में आने के बाद 2017-18 में सिर्फ 10 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि करके इसका दाम 325 रुपए किया गया था। लेकिन उसके बाद दाम नहीं बढ़ाया गया। ऐसे में यहां के किसानों के लिए गन्ना की खेती करना मुश्किल होता जा रहा है। किसानों का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दाम मेें बढ़ोतरी, खाद व कीटनाशक के दामों में बढ़ोतरी होती जा रही है। इसके बावजूद गन्ना रेट वहीं चल रहा है। सरकार को महंगाई को देखते हुए गन्ना का रेट बढ़ाना चाहिए ताकि किसानों प्रदेश के किसानों को राहत मिल सके।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार पंजाब सरकार की ओर से गन्ना के रेट बढ़ाए जाने के बाद अब यूपी सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है। हाल ही में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर यूपी सरकार पर निशाना साधा है। प्रियंका गांधी ने ट्वीट किया कि पंजाब की कांग्रेस सरकार ने किसानों की बात सुनी और गन्ने के दाम 360 रुपए/क्विंटल किए। गन्ने का 400 रुपए /क्विंटल का वादा करके उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई भाजपा सरकार ने 3 साल से गन्ने के दाम पर एक फूटी कौड़ी नहीं बढ़ाई है। पंजाब सरकार की गन्ना रेट बढ़ाए जाने की इस घोषणा ने उत्तर प्रदेश सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। इधर प्रदेश के किसान नेता, आए दिन गन्ना का रेट बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। हालांकि यूपी सरकार की ओर से फिलहाल अभी गन्ना के रेट को बढ़ाने को लेकर कोई बात नहीं की गई है। लेकिन उम्मीद है कि बढ़ती सियासी गरमाहट के बीच योगी सरकार गन्ना रेट बढ़ाने को लेकर कोई फैसला ले सकती है।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने मीडिया को बताया कि बुधवार को कैबिनेट बैठक में गन्ने पर दिए जाने वाले फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) को बढ़ाकर 290 रुपए प्रति क्विंटल करने का फैसला किया गया है, ये 10 फीसदी रिकवरी पर आधारित होगा। उन्होंने कहा कि अगर किसी किसान की रिकवरी 9.5 फीसदी से कम होती है तो उन्हें 275.50 रुपए प्रति क्विंटल मिलेंगे। गौरतलब है इससे पहले गन्ने का एफआरपी 285 रुपए प्रति क्विंटल था यानी कि इसबार पांच रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई है। सरकार हर साल गन्ना पेराई सत्र शुरू होने से पहले केंद्र सरकार एफआरपी की घोषणा करती है। मिलों को यह न्यूनतम मूल्य गन्ना उत्पादकों को देना होता है। बता दें कि केंद्र सरकार के इस फैसले से देश के करीब 5 करोड़ गन्ना किसानों के परिवारों को लाभ पहुंचेगा।
एफआरपी वह न्यूनतम मूल्य है, जिस पर चीनी मिलों को किसानों से गन्ना खरीदना होता है। कमीशन ऑफ एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइसेज (सीएसीपी) हर साल एफआरपी की सिफारिश सरकार से करता है। सीएसीपी गन्ना सहित प्रमुख कृषि उत्पादों की कीमतों के बारे में सरकार को अपनी सिफारिश भेजती है। उस पर विचार करने के बाद सरकार उसे लागू करती है। हालांकि एफआरपी सभी किसानों पर लागू नहीं होता है। गन्ना का अधिक उत्पादन करने वाले कई बड़े राज्य गन्ना की अपनी-अपनी कीमतें तय करते हैं। इसे स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) कहा जाता है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा अपने राज्य के किसानों के लिए अपना एसएपी तय करते हैं। आम तौर पर एसएपी केंद्र सरकार के एफआरपी से ज्यादा होता है।
2015-16 के अनुमान के मुताबिक, उत्तर प्रदेश गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है, क्योंकि यह अनुमानित 145.39 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन करता है, जो अखिल भारतीय उत्पादन का 41.28 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल 2.17 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में बोई जाती है, जो कि अखिल भारतीय गन्ने की खेती का 43.79 प्रतिशत हिस्सा है। राज्य में करीब 48 लाख किसान गन्ने की खेती में लगे हुए हैं। इसके बाद गन्ना उत्पादन में दूसरा नंबर महाराष्ट्र का आता है। यहां अनुमानित 72.26 मिलियन टन गन्ना का उत्पादन होता है जो कि अखिल भारतीय गन्ना उत्पादन का 20.52 प्रतिशत है। महाराष्ट्र की कृषि भूमि का क्षेत्रफल जहां गन्ने की कुल बुवाई 0.99 मिलियन हेक्टेयर पर की जाती है वह मोटे तौर पर काली मिट्टी से युक्त क्षेत्र है। तीसरे स्थान पर कर्नाटक राज्य है। यहां 34.48 मिलियन टन गन्ना का उत्पादन किया जाता है जो कि देश के कुल गन्ना उत्पादन का लगभग 11 प्रतिशत है। राज्य की कृषि भूमि के 0.45 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र के कुल क्षेत्र पर गन्ने की बुवाई की जाती है। वहीं तमिलनाडु गन्ने का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कि 26.50 मिलियन टन गन्ना का अनुमानित उत्पादन करता है, जो कि देश के गन्ना उत्पादन का लगभग 7.5 प्रतिशत है। इधर बिहार में 14.68 मिलियन टन गन्ना का उत्पादन होता है। यह देश के गन्ना उत्पादन का 4.17 प्रतिशत है।
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