Published - 23 Sep 2021
हरी सब्जियों में पालक का अपना विशेष महत्व है। ये आयरन से परिपूर्ण एक ऐसी सब्जी है जिसे कई तरीके से खाया जा सकता है। इसे आलू के साथ मिलाकर सब्जी बनाई जा सकती है। कच्चा सलाद के रूप में भी इसे उपयोग किया जा सकता है। पालक की कढ़ी भी बनाई जाती है। इसके पकौड़े भी बनाकर खाए जा जाते हैंं। पालक का उपयोग करके रायता भी बनाया जाता है।
इतना ही नहीं गाजर के ज्यूज में भी पालक मिक्स करके उसे और गुणवत्तापूर्ण बनाया जा सकता है। इस तरह पालक का उपयोग कई प्रकार से हमारे खाने में किया जा सकता है। इसमें आयरन होने के कारण ही शरीर मेें खून की कमी होने पर डॉक्टरों की ओर से मरीज को पालक या गाजर खाने की सलाह दी जाती है। इसकी खेती की बात करें तो इसे घर के गार्डन से लेकर खेत तक में उगाया जा सकता है। अधिकतर किसान कई सब्जी वाली फसलों के साथ इसकी खेती करते हैं।
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पालक में कई पोषक तत्व पाएं जाते हैं। इसमें विटामिन ए, सी, के , फोलिक एसिड्स, कैल्शियम और आयरन पाया जाता है। पालक में 91 प्रतिशत पानी होता है। इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होता है। इसके नियमित सेवन से मोटे लोगों को वजन कम करने में मदद मिलती है। ये शुगर के स्तर को स्थिर करता है। इसके सेवन से रक्त परिसंचरण में सुधार होता है। पालक के प्रतिदिन सेवन से त्वचा में ग्लो आता है। ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसके अलावा इसके सेवन से आंखों की रोशनी बेहतर होती है।
पालक का संतुलित मात्रा में सेवन शरीर के लिए लाभदायक है तो वहीं इसका अधिक मात्रा में सेवन शरीर को रोगग्रस्त भी कर सकता है। पालक के ज्यादा सेवन करने से शरीर में खुजली और एलर्जी हो जाती है, जिससे त्वचा रोग उत्पन्न हो जाते हैं। भोजन में पालक का ज्यादा सेवन करने से किडनी की पथरी की समस्या पैदा हो जाती है, क्योंकि किडनी में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है और छोटे-छोटे टुकड़े किडनी में इकट्ठा होने शुरू हो जाते हैं, जो बाद में पथरी बना देते हैं। इसलिए इसका सीमित मात्रा में सेवन किया जाना चाहिए।
भारत में पालक की मुख्य रूप से दो प्रकार की किस्मों की खेती की जाती है। देसी और विलायती। किसान अपने क्षेत्रानुसार देसी और विलयती किस्मों का चयन कर सकते हैं। भारत में पालक की अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में आल ग्रीन, पूसा हरित, पूसा ज्योति, बनर्जी जाइंट, जोबनेर ग्रीन हैं।
किसानों सरकारी खाद, बीज की दुकान से ही इसके प्रमाणिक बीजों की खरीद करनी चाहिए। वैसे आजकल कई कंपनियां पालक के बीज ऑनलाइन भी बेचती हैं। बीज खरीदते समय किसान को इसकी पक्की रसीद जरूर लेनी चाहिए। बीज हमेशा विश्सनीय दुकानदार से ही क्रम करें।
पालक की खेती के लिए ठंडी जलवायु अच्छी रहती है। सर्दी में पालक की पत्तियों का बढ़वार अधिक होती है। जबकि तापमान अधिक होने पर इसकी बढ़वार रूक जाती है। इसलिए पालक की खेती शीतकाल में करना अधिक अच्छा रहता है। लेकिन मध्यम जलवायु में भी इसे वर्षभर उगाया जा सकता है।
वैसे इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा महीने दिसंबर होता है। उचित वातावरण में पालक की बुवाई वर्ष भर की जा सकती है। पालक की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई जनवरी-फरवरी, जून-जुलाई और सितंबर-अक्टूबर में की जा सकती है, जिससे पालक की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
भूमि का चयन पालक की सफलतापूर्वक खेती के लिए उचित जल निकास वाली चिकनी दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है। भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए।
भूमि की तैयारी के लिए भूमि का पलेवा करके जब वह जुताई योग्य हो जाए तब मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करना चाहिए, इसके बाद 2 या 3 बार हैरो या कल्टीवेटर चलाकर मिट्टी को भूरभूरा बना लेना चाहिए। साथ ही पाटा चलाकर भूमि को समतल करें।
पालक की खेती के लिए खेत में पर्याप्त मात्रा में बीज की आवश्यकता होती है। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए सही व उन्नतशील बीज का चयन करना चाहिए, जिसे विश्वसनीय दुकान से पालक बीज प्राप्त करना चाहिए। वैसे एक हैक्टेयर में 25 से 30 कि.ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।
अंकुरण की प्रतिशतता बढ़ाने के लिए बिजाई से पहले बीजों को 12-24 घंटे तक पानी में भिगो देना चाहिए। इसके बाद छाया में सूखा दें और इसके बाद बुवाई करें।
अधिकतर किसान पालक की बुवाई छिटकवां विधि करते हैं। लेकिन पालक की खेती से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसकी बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए। पालक की पंक्ति में बुवाई करने के लिए पंक्तियों व पौधों की आपस में दूरी क्रमश: 20 से 25 सेंटीमीटर और 20 सेंटीमीटर रखना चाहिए। पालक के बीज को 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए, इससे अधिक गहरी बुवाई नहीं करनी चाहिए।
खाद एवं उर्वरक का उपयोग करने से पहले मिट्टी का परिक्षण जरूर करा लेना चाहिए जिससे खाद व उर्वरक की संतुलित मात्रा दी जा सके। यदि परिक्षण न हो सके तो इस दशा में पालक की खेती के लिए प्रति हैक्टयेर कम्पोस्ट-150 क्विंटल, यूरिया -1.50-2.00 क्विंटल, सिंगल सुपर फास्फेट -2.00-2.50 क्विंटल एवं म्यूरेट ऑफ पोटाश -1.00 क्विंटल का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें कम्पोस्ट (सड़ा गोबर) सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश कई पूरी मात्रा एवं यूरिया कई एक चौथाई मात्रा बुवाई के बीस दिन के बाद, दूसरा मात्रा पहली कटाई के बाद तथा तीसरा मात्रा दूसरी कटाई के बाद देनी चाहिए। क्योंंकि पालक को नाइट्रोजन कई आवश्यकता होती है, इसलिए कटाई के बाद नाइट्रोजन का व्यवहार जरूर करें।
पालक की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि पालक पत्ती वाली सब्जी है, जिसकी बढ़वार के लिए पानी की बहुत आवश्यकता होती है। पालक के बीज में अच्छी अंकुरण के लिए बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करना अच्छा रहता है। पालक के फसल में उचित बढ़वार के लिए भूमि में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। इसके लिए बोआई के 15 दिनों के बाद से एक सप्ताह के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए।
पालक में खरपतवार की रोकथाम के लिए को दो से तीन गुड़ाई की जरूरत होती है। गुड़ाई से मिट्टी को हवा मिलती है। रासायनिक तरीके से खरपतवार की रोकथाम के लिए पायराजोन 1-1.12 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें। बाद में खरपतवारनाशक के उपयोग से बचें।
जब पालक की पत्तियों की 15 से 30 सेमी. लंबी हो जाएं तब इसकी कटाई करनी चाहिए। पालक की पत्तियों की कटाई उसकी कोमल और रसीली अवस्था में ही करनी चाहिए। इस प्रकार से पालक की एक फसल से करीब 5-6 बार कटाई की जा सकता है।
पालक उत्पादन प्रति हेक्टेयर 80 से 90 क्विंटल हरी पत्ती के रूप में प्राप्त होती है। पालक के फसल की कटाई के तुरंत बाद इसे बाजार में भेजना सुनिश्चित करनी चाहिए। आप इसे मंडी में बेच सकते हैं। वहीं इसको होटलों व ढावों में भी सप्लाई किया जा सकता है।
प्रश्न. पालक की खेती किस महीने शुरू करना सबसे अच्छा रहता है?
उत्तर- पालक की खेती के लिए सबसे उचित महीना नवंबर-दिसंबर होता है। लेकिन सिंचाई की पर्याप्त सुविधा और उचित वातावरण हो तो इसकी खेती साल भर की जा सकती है।
प्रश्न. पालक की सिंचाई कितने दिनों के अंतर पर करनी चाहिए?
उत्तर- पालक के बीजों की बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद बोआई के 15 दिनों के बाद से एक सप्ताह के अंतर पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
प्रश्न. पालक के पत्तों में सलेटी और लाल रंग के गोल धब्वे बन गए है क्या करूं?
उत्तर- पालक के पत्तों में सलेटी और लाल रंग के गोलल धब्वे किनारों पर दिखाई दें तो कार्बेनडाजिम 400 ग्राम या इंडोफिल एम-45, 400 ग्राम को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। यदि आवश्यकता हो तो दूसरी स्प्रे 15 दिनों के अंतराल कर सकते हैं।
प्रश्न. पालक की अधिक उत्पादन देने वाली किस्में कौन-कौनसी हैं?
उत्तर- भारत में पालक की बेहतर उत्पादन देने वाली किस्में आल ग्रीन, पूसा हरित, पूसा ज्योति, बनर्जी जाइंट, जोबनेर ग्रीन हैं। किसान को किस्मों का चयन अपने क्षेत्र जलवायु और मिट्टी के हिसाब से करना चाहिए।
प्रश्न. पालक की फसल कब कटाई के लिए तैयार हो जाती है?
उत्तर- जब पालक की पत्तियों की 15 से 30 सेमी. लंबी हो जाएं तब इसकी कटाई करनी चाहिए। पालक की पत्तियों की कटाई उसकी कोमल और रसीली अवस्था में ही करनी चाहिए।
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