प्रकाशित - 19 Nov 2023
आलू (Potato) एक सदाबहार सब्जी है जिसे हर मौसम में खाया जाता है। आलू के साथ बहुत सी सब्जियों को बनाया जाता है। इसके अलावा आलू के चिप्स, आलू की नमकीन और बेफर्स सहित कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। व्रत, त्यौहार हो या कोई भी कार्यक्रम आलू की कहीं न कहीं कोई न कोई चीज जरूर बनाई जाती है। एक तरह से देखा जाए तो आलू सब्जियों का राजा है। आलू में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं जिसमें कार्बोहाइड्रेट की सबसे अधिक मात्रा होती है। इसके अलावा आलू में प्रोटीन, वसा, फाइबर, स्टार्च, शुगर, अमीनों एसिड, कलौरी सहित जरूरी विटामिन और ट्रेस मिनरल पाये जाते हैं। आलू की बाजार मांग हर मौसम में रहती है। इसे देखते हुए आलू की खेती (Farming of potato) से किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आलू की कई बेहतरीन किस्म है जिसकी बुवाई किसान नवंबर माह में करके इससे बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। खास बात यह है कि आलू भंडारण के लिए स्टोरेज बनाने के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी (subsidy) भी दी जाती है जिससे आलू को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। सरकार की ओर से आलू-प्याज स्टोरेज के लिए 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को आलू की टॉप 5 किस्म (Top 5 varieties of potatoes) की जानकारी दे रहे हैं जिनसे किसान बेहतर उत्पादन के साथ काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, तो आइये जानते हैं आलू की टॉप 5 किस्मों के बारें में।
यह आलू की एक अगेती मध्यम किस्म है। इसके कंद पीले, गोल एवं अंडाकार होते हैं। इसकी आंखे हल्की धंसी हुई होती है। इसका गूदा हल्का पीला रंग लिए हुए होता है। आलू की इस किस्म की खुदाई रोपाई के 75 दिन के बाद की जा सकती है। 75 दिन बाद आलू की यह किस्म औसतन 90 क्विंटल तक पैदावार देती है। वहीं 90 से 100 दिन बाद खुदाई करें तो इसकी 140 से लेकर 160 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। खास बात यह है कि आलू की यह किस्त अगेती अंगमारी रोग के प्रति प्रतिरोधक व पछेती अंगमारी रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक किस्म है।
आलू की कुफरी अशोका किस्म के कंद आकार में बड़े, अंडाकार व सफेद होते हैं। इसकी आंखें उथली हुई होती हैं और इसका गूदा सफेद होता है। यह किस्म 70 से लेकर 80 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है। यह किस्म पछेती झुलसा रोग से प्रभावित होती है। यह किस्म उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों के लिए अगेती फसल के लिए काफी उपयुक्त है।
आलू की इस किस्म के कंद आकार में मध्यम, गोलाकार, लाल, चिकने व छिलकायुक्त होते हैं। इसकी गहरी आंखे व सफेद गुदा होता है। आलू की यह किस्म 90 से लेकर 100 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 250 से लेकर 300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक है। यह किस्म अगेती झुलसा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है। यह किस्म विषाणु पीवीबाई के प्रतिरोधक है।
आलू की इस किस्म के कंद सफेद, अंडाकार और दिखने में आकर्षक लगते हैं। यह सतही आंखों वाले होते हैं और इनका गूदा सफेद रंग का होता है। यह आलू की मध्यम अवधि में तैयार होने वाली किस्म है। इसकी फसल बुवाई के बाद करीब 80 से 90 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 300 से लेकर 350 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। यह किस्म पिछेती झुलसा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। खास बात यह है कि इसमें कंद बनने की प्रक्रिया जल्दी शुरू हो जाती है। इस किस्म में शुष्क पदार्थ की मात्रा 18-19 प्रतिशत होती है। इस किस्म भंडारण क्षमता काफी अच्छी है।
आलू की यह किस्म केंद्रीय आलू अनुसंधान शिमला द्वारा कई विकसित की गई है। यह किस्म से 70 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म से प्रति हैक्टेयर 200 से लेकर 250 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त हो सकती है। आलू की यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी है।
यदि किसान एक हेक्टेयर में आलू की खेती करते हैं तो उन्हें करीब 300 क्विंटल से लेकर 350 क्विंटल तक आलू का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। बाजार में इसका भाव सामान्यत: 20-30 रुपए प्रति किलो रहता है। इस हिसाब से यदि 5 हेक्टेयर में इसकी बुवाई की जाए और न्यूनतम भाव 20 रुपए किलो मान कर चले तो भी आप इसकी एक फसल से करीब 6 से 7 लाख रुपए प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों को सलाह दी जाती है कि अपने क्षेत्र के अनुसार आलू की किस्म की बुवाई करें। इसके लिए किसान अपने जिले के कृषि विभाग से संपर्क करके आलू की बुवाई के लिए अनुसंशित किस्म के बारे में पता कर सकते हैं।
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