Published - 02 Apr 2022 by Tractor Junction
गेहूं के बाद आलू के उत्पादन में जीरो टिलेज विधि से बुवाई की तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके काफी अच्छे परिणाम सामने आएं हैं। इस उन्नत तकनीक को जानने-समझने के लिए आलू अनुसंधान केंद्र पटना में बीते दिनों जीरो टिलेज पोटेटो प्रोजेक्ट की ओर से किसान प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन किया गया था। इसमें कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह शामिल हुए और मंत्री ने संस्थान द्वारा विकसित की गई जीरो टिलेज तकनीक को हार्वेस्ट करते हुए देखा। इस दौरान उन्होंने इसके फायदे जानने की भी कोशिश की कैसे किसान कम लागत में अधिक आलू का उत्पादन कर सकता है। कृषि मंत्री की माने तो आलू उत्पादन में जीरो टिलेज तकनीक अपनाने से धान के बाद आलू लगाने से फसल अवशेष का भी उपयोग हो सकेगा और बर्बादी नहीं होगी।
अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. एसके ककरालिया ने जीरो टिलेज प्रॉजेक्ट के बारे में अवगत कराते हुए बताया कि इस विधि को हाल ही में बिहार के पांच जिलों में लगाया गया है और इस विधि में खेत की जुताई किए बिना आलू की फसल को लगाया जाता है, जिसमें बहुत ही कम मजदूर की आवश्यकता पड़ती है। यदि किसान इस विधि को अपनाते हुए आलू की खेती करते हैं तो किसान की जुताई खर्च और मजदूरी खर्च में भी बचत हो सकती है। इतना ही नहीं इस विधि के इस्तेमाल से उपज में 15-20 प्रतिशत तक वृद्धि की जा सकती है।
भारतीय आलू अनुसंधान परिषद ने पटना में आलू की खेती का नया मॉडल तैयार किया है। इस नए मॉडल को जीरो टिलेज (जुताई रहित खेती) कहा जाता है। इससे किसानों को कई तरह के फायदे मिलेंगे। कम लागत में अधिक पैदावार होगी। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर शंभू कुमार के अनुसार कि इस विधि में आलू के कंदों को 20 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए खेत में बिछा दिया जाता है। इसके ऊपर गोबर का खाद थोड़ा एनपीके मिलाकर छिडक़ाव किया जाता है। इस पर कम से कम 6 से 8 इंच मोटी पुआल बिछा देना चाहिए। पुआल के ऊपर पानी का फुहारा डाल दें ताकि नमी बनी रहे। इससे आलू नीचे मिट्टी में नहीं जाकर धरती की सतह पर ही पैदा होता है। यह मेथड इको फ्रेंडली है। इसमें जहरीले कीटनाशक नहीं के बराबर है। डॉक्टर शंभू के अनुसार इस विधि के इस्तेमाल से 10 स्क्वायर मीटर में करीब 50 किलो आलू का उत्पादन होता है। इससे पराली की समस्या भी नहीं होती है। पटना के कुरकुरी, अथमलगोला के अलावा सीवान, हाजीपुर औऱ बेगूसराय में किसान इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि किसान इससे अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसमें खेत का भी सही इस्तेमाल होगा और फसल भी अच्छी होगी।
जीरो टिलेज (बिना जुताई के सीधी बुआई) विधि का अर्थ फसल को बिना जुताई किये एक बार में ही जीरो टिलेज मशीन द्वारा फसल की बुआई करने से है। इस विधि को जीरो ट्लि, नो ट्रिल या सीधी बुआई के नाम से भी जाना जाता है। सामान्य भाषा में इस विधि के अन्तर्गत पिछली फसल के 30 से 40 प्रतिशत अवशेष खेत में रहने चाहिए। जीरो टिलेज उत्पादन में सुधार करती है तथा साथ ही मजदूरी, पूंजी, रासायनिक खाद एवं पानी की बचत करती है। जीरो टिलेज मशीन ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन है जो कि बीज एवं उर्वरकों को बिना खेत तैयार किये एक साथ बुआई करती है। इसका प्रयोग दूसरी फसलों जैसे कि धान, मसूर, चना, मक्का इत्यादि की बुआई में भी कर सकते हैं।
अगर आप नए ट्रैक्टर, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु को ट्रैक्टर जंक्शन के साथ शेयर करें।