प्रकाशित - 19 May 2023
ज्वार एक ठंडी तासीर वाला अनाज होता है, लोग गर्मियों में इसे खाना पसंद करते हैं। गेहूं की अपेक्षा ज्वार के आटे में ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं। कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन, पोटैशियम और आयरन की मात्रा इसमें काफी अधिक होती है। यही वजह है कि ज्वार की बाजार मांग अच्छी खासी है। अगर ज्वार की उन्नत किस्मों से खेती की जाए तो किसानों को अच्छे उत्पादन के साथ बेहतर मुनाफा भी मिलेगा। गौरतलब है कि किसान पारंपरिक अनाज की खेती (Traditional Grain Farming) बाजार मांग के हिसाब से करते हैं। ज्वार का उत्पादन और मांग दोनों अधिक होने की वजह से किसान ज्वार की खेती करना पसंद कर रहे हैं। बता दें कि ये 3 से 4 महीने की कम अवधि वाली फसल है, कम समय में इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि किसान अच्छा उत्पादन देने वाले बीज का चयन करें, अच्छे उत्पादन के लिए बीज का उन्नत होना जरूरी है। बीज किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए बेसिक जरूरतों में से एक है। यही वजह है कि बहुत से किसान उन्नत बीजों का चयन कर खेती में अच्छा मुनाफा कमा पा रहे हैं।
ट्रैक्टर जंक्शन के इस पोस्ट में हम ज्वार के टॉप 7 किस्मों के बारे में बताएंगे। इनमें से 4 उन्नत किस्में ऐसी हैं जो अनाज उत्पादक किसानों के लिए सर्वश्रेष्ठ होंगी जबकि अंतिम के 3 टॉप किस्में चारा उत्पादन करने वाले किसानों के लिए सर्वश्रेष्ठ होंगी।
सीएसएच 16 ज्वार की सबसे उन्नत किस्म है जो अनाज के अच्छे उत्पादन के कारण किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है। यह एक द्विउद्देशीय हाइब्रिड किस्म है। न सिर्फ अनाज उत्पादक किसान बल्कि चारा उत्पादक किसान भी इसकी बुआई कर सकते हैं। 105 से 110 दिनों के बीच पककर तैयारी होने वाली इस किस्म का चुनाव खेती के लिए कर सकते हैं। लगभग 4 महीने में इसकी कटाई, उपज आदि का प्रोसेस पूरा हो जाता है। इस एडवांस किस्म से अनाज की बंपर पैदावार (Bumper Yield of Grains from Advanced Variety) होने के साथ साथ चारे की भी जबरदस्त पैदावार होती है। अनाज की बात करें तो इसके दानों की उपज 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि इसके चारे की उपज 200 से 220 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देखने को मिलती है। जिसका बड़ा कारण है इस किस्म के ज्वार लंबाई के मामले में अधिक बड़े होते हैं। पौधों की 270 से 280 सेंटीमीटर ऊंचाई होने की वजह से पशुओं के लिए पर्याप्त चारा निकाला जा सकता है। हालांकि ये चारा सूखा चारा होता है जिसका उपयोग किसान पशुओं को खिलाने के लिए लंबे समय तक कर सकते हैं। यह किस्म वर्ष 1996 में विकसित की गई थी।
95 से 105 दिन में जल्दी पककर तैयार होने वाली ये ज्वार की टॉप 7 किस्म (Top 7 Varieties of Jowar) में दूसरे नंबर की सर्वश्रेष्ठ किस्म है। सीएसवी 15 ज्वार चारा किस्म के जरिए किसान अनाज और चारे की अच्छी पैदावार कर पा रहे हैं। इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 230 से 240 सेंटीमीटर तक होती है। दाने की पैदावार भी 35 से 40 क्विंटल तक हो पाती है। वहीं ज्वार के चारे की पैदावार 105 से 110 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो पाती है। ये किस्म वर्ष 1994 में विकसित की गई थी।
सामान्य वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए प्रताप ज्वार किस्म को विकसित किया गया। इस किस्म को विकसित करने का मुख्य उद्देश्य था कि ये किस्म तना छेदक व शीर्ष मक्खी के प्रति सहनशील हो। बहुत सारे क्षेत्रों में तना छेदक और शीर्ष मक्खी की वजह से किसान ज्वार का अच्छा उत्पादन नहीं कर पाते हैं। किसान प्रताप ज्वार 1430 की मदद से 30 से 35 क्विंटल तक दाने की पैदावार ले सकते हैं। इस किस्म से न सिर्फ पर्याप्त मात्रा में दाना बल्कि 110 से 115 क्विंटल सूखा चारे की पैदावार भी कर सकते हैं। इस तरह किसानों को अनाज के साथ साथ पशुओं के लिए चारे की भी व्यवस्था हो जाती है। बता दें कि इस किस्म को वर्ष 2004 में विकसित किया गया।
110 से 115 दिन में तैयार होने वाली इस बहुउद्देशीय किस्म को उन किसानों द्वारा पसंद किया जा रहा है जो चारे के साथ साथ प्रोटीन युक्त, पाचनशील और ज्यादा पोषक तत्वों से भरपूर अनाज चाहते हैं। इस किस्म में अनाज की मात्रा थोड़ी कम जरूर होती है। लेकिन इसमें प्रोटीन 7.15 प्रतिशत है। यानी अगर 100 ग्राम ज्वार खाते हैं तो शरीर को 7.15 ग्राम तक प्रोटीन प्राप्त हो जाएगा। वहीं इसमें पाचनशील शुष्क पदार्थों की मात्रा 45.7 प्रतिशत होता है। पौधे की ऊंचाई 215 से 225 सेंटीमीटर के बीच है, जिससे चारा की पैदावार भी ठीक ठाक हो जाती है। अनाज और चारे की पैदावार की बात करें तो प्रति हेक्टेयर 25 से 30 क्विंटल अनाज और 160 से 170 क्विंटल चारे की पैदावार होती है। ध्यान रहे कि हरे चारे के किस्म की कटाई 45 दिन से पहले नहीं करना चाहिए, अन्यथा ये पशुओं के स्वास्थ्य के लिए सही नहीं होता है।
एसएसजी किस्म किसानों के लिए हरे चारे की जरूरत को पूरी करने के लिए लाया गया है। इस किस्म से हरे चारे की पर्याप्त पैदावार हो जाती है। जो किसान पशुपालन करते हैं और हरे चारे के लिए इस किस्म को लगाना चाहते हैं, वे इसे लगा सकते हैं। मात्र 55 से 60 दिन बाद इसकी कटाई शुरू की जा सकती है और 2 से 3 बार कटाई की जा सकती है। इस किस्म से किसानों को औसतन चारे की पैदावार 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। वर्ष 1978 में इस चारे की किस्म को विकसित किया गया था। हरे चारे की ये सबसे उन्नत किस्म है।
हरे चारे की सबसे उन्नत किस्मों में से एक एमपी चरी भी है, ये दूसरा सबसे उन्नत ज्वार किस्म है जो हरे चारे की पैदावार के लिए उपयुक्त है। इस किस्म के ज्वार की पहली कटाई 55 से 60 दिन बाद ले सकते हैं। इसके बाद दूसरी कटाई के लिए 35 से 40 दिन का इंतजार कर सकते हैं। इससे चारे की औसतन पैदावार 350 से 400 क्विंटल तक हो सकती है।
1984 में विकसित ये किस्म कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इस चारे किस्म में पौधों की ऊंचाई 190 से 220 सेंटीमीटर की बीच होती है। चारे की कटाई 70 से 72 दिनों के बाद की जा सकती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जो किसानों पशुओं के लिए चारा का उत्पादन चाहते हैं, वे इस किस्म को लगा सकते हैं। पैदावार की बात करें तो 300 से 350 क्विंटल प्रति एकड़ चारे का उत्पादन किया जा सकता है। बता दें कि ये एकल कटाई वाली किस्म है। अन्य किस्मों की तरह इस चारे की दो बार कटाई संभव नहीं है।
तो ये थीं ज्वार की टॉप 7 किस्में जिसमें 4 सर्वश्रेष्ठ किस्म अनाज के लिए और 3 सर्वश्रेष्ठ किस्म चारा उत्पादन करने वाले किसानों के बताई गई है। खेती संबंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के लिए जुड़े रहें ट्रैक्टर जंक्शन के साथ।
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