प्रकाशित - 23 Sep 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
मटर की खेती (Pea Farming) का समय आ गया है। किसान सितंबर-अक्टूबर माह के मध्य तक इसकी बुवाई कर सकते हैं। खास बात यह है कि यह किस्में अधिक पैदावार देती हैं जिसे बेचकर किसान काफी अच्छा पैसा कमा सकते हैं। बाजार में मटर की काफी डिमांड रहती है। ऐसे में किसान मटर की उन्नत किस्मों में से अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की बुवाई करके अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को मटर की ऐसी चार किस्मों के बारे में जानकारी दे रहे हैं जिनसे अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है, तो आइये जानते हैं, इनके बारे में।
मटर की काशी नंदिनी किस्म को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी ने विकसित किया है। यह एक शीघ्र पकने वाली किस्म हैं। इसके पौधे की ऊंचाई 47-51 सेमी होती है। इसकी बुवाई के 32 दिन के बाद पहला फूल आता है। इसके हर पौधे पर 7 से 8 फलियां लगती हैं जिनकी लंबाई 8 से 9 सेमी होती है। इसकी प्रत्येक फली में 8 से 9 बीज होते हैं। यह किस्म बुवाई के 60 से 65 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। यह पत्ती खनिक और फल छेदक रोग के प्रति सहनशील है। इसकी खेती से प्रति हैक्टेयर 110-120 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती हे। इसे जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु ओर केरल में खेती के लिए अधिसूचित किया गया है।
मटर की ऑर्केट किस्म भी मटर की उन्नत किस्मों में से एक किस्म है। यह एक यूरोपियन किस्म है जिसके दाने मीठे होते हैं। इसकी फली का आकार तलवार की तरह होता है। इसकी फलियां आठ से दस सेंटीमीटर तक लंबी होती है। इसमें पांच से छह दाने होते हैं। मटर की यह किस्म 60-65 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी किस्म से करीब 16 से 18 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
पंत मटर 155, मटर की संकर किस्म है जिसे पंत मटर 13 और डीडीआर-27 के संकरण से तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे 130 दिन में तैयार हो जाते हैं। वहीं हरी फलियों के लिए इसकी तुड़ाई रोपाई के 50 से 60 दिन बाद की जा सकती है। इस किस्म के पौधों पर चूर्ण फफूंद और फली छेदक रोग का प्रकोप बहुत कम देखने को मिलता है। इस किस्म से हरी फलियों के रूप में औसत 15 टन प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
पूसा थ्री मटर किस्म, मटर की अगेती किस्म हैं जिसे 2013 में विकसित किया गया था। यह किस्म उत्तर भारत के लिए तैयार की गई है। यह किस्म बुवाई के 50 से 55 दिनों के भीतर तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी प्रत्येक फली में 6 से 7 दाने होते हैं। यदि बात करें इसकी उपज की तो इस किस्म से प्रति एकड़ करीब 20 से 21 क्विंटल तक हरी फलियां प्राप्त की जा सकती हैं।
नोट: मटर की बुवाई और खाद, उर्वरक प्रयोग के संबंध में अपने निकटतम कृषि विभाग से उचित सलाह ली जा सकती है।
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