Published - 11 Mar 2022 by Tractor Junction
देश के कई राज्यों में गेहूं की कटाई का काम चल रहा है। गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली हो जाएंगे। ऐसे में यदि किसान खेत में मूंग की जायद फसल ले तो उसे काफी मुनाफा मिल सकता है। ग्रीष्मकालीन मूंग की जायद मूंग की खेत में बुवाई करने से खेत की उर्वराशक्ति बढ़ती है जिससे उत्पादन बढ़ता है। बीते साल मध्यप्रदेश में किसानों ने मूंग की खेती की और अच्छा मुनाफा कमाया। राज्य सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से मूंग की खरीद की थी। इसलिए किसान गेहूं के बाद खाली खेत में मूंग की खेती करके अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से मूंग की खेती के लिए जल्दी तैयार होने वाली किस्मों के बारे में जानकारी दे रहे हैं ताकि किसान को अगले सीजन की फसल बोने के लिए पर्याप्त समय मिल सके।
मूंग की कई उन्नत किस्में हैं जो जल्दी पक कर तैयार हो जाती है और उनसे उत्पादन भी अच्छा मिलता है। यहां हम मूंग की जल्दी पक कर तैयार होने वाली किस्में इस प्रकार से हैं-
मूंग यह किस्म जल्दी तैयार होने वाली किस्मों में से एक हैं। इसकी फलियां नीचे की ओर गुच्छे के रूप में झुकी होती हैं। इस किस्म के दाने मोटे होते हैं। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
मूंग की मोहनी किस्म 70-75 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसकी हर फली में 10-12 बीज और दाने छोटे होते हैं। मूंग इस किस्म में पीला मोजैक वायरस को सहन करने की क्षमता होती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
मूंग की यह किस्म 75-80 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसका पौधा भी एकदम सीधा बढ़ता है, जो लंबा होता है। इससे प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल पैदावार मिल सकती है। यह किस्म उत्तर भारत के मौसम के लिए बहुत उपयुक्त मानी जाती है।
मूंग की इस किस्म का पौधा करीब 85 सेंटीमीटर ऊंचा होता है। इस किस्म के दाने का आकार में मध्यम और चमकदार लगते हैं। मूंग की ये किस्म 80 से 85 दिन में पक जाती है। इससे प्राप्त उपज की बात करें तो इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 20-22 क्विंटल पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
मूंग की आरएमजी 268 किस्म उन स्थानों के लिए अच्छी मानी जाती है जहां कम बारिश या सामान्य बारिश होती है। यह किस्म सूखे के लिए प्रतिरोधी होती है। इस किस्म में 28 प्रतिशत तक ज्यादा पैदावार मिल सकती है।
यह किस्म 70-75 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। इसको जायद और खरीफ, दोनों मौसम में उगाया जा सकता है। इससे प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल तक उत्पादन मिल सकती है।
मूंग की यह उन्नत किस्म 75 दिन में पक कर तैयार होती है। इसके अलावा जायद के मौसम में फसल को 65 दिन में पक सकती है। इसके दाने छोटे होते हैं। इससे प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
कुदरत कृषि शोध संस्था वाराणसी ने यह किस्म दो से तीन पानी में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की खासियत यह है कि इसकी फली लंबी गुच्छों में होती है और इसका दाना मोटा और गहरे हरे रंग का चमकदार होता है। मूंग की इस किस्म से प्रति एकड़ उत्पादन 6-7 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है। ये किस्म पीला मोजेक, चूर्णित आसिता रोग के प्रति सहनशील है। यह किस्म उत्तरप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हरियाणा, बंगाल, छत्तीसगढ़, पंजाब आदि राज्यों के लिए तैयार की गई है।
मूंग की ये किस्म जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर द्वारा वर्ष 2006 में जारी की गई थी। यह किस्म ग्रीष्म और खरीफ दोनों के लिए उपयुक्त मानी गई है। मूंग की इस किस्स को पकने में 60 से 70 दिन का समय लगता है। बात करें इसकी पैदावार की तो इस किस्म से 10-12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है। ये किस्म पीला मोजेक एवं पाउडरी मिल्डयू रोग के प्रति प्रतिरोधी है।
यह किस्म लगाने से फसल 60-65 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसका पौधा सीधा और लंबा बढ़ता है। इसके पैदावार की क्षमता प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल तक होती है। मूंग की यह किस्म बारिश और ग्रीष्म, दोनों मौसम में उपयुक्त मानी गई है।
ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए रबी फसलों के कटने के तुरंत बाद खेत की जुताई करके 4-5 दिन छोड़ कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताइयां देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बना लेना चाहिए। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता हैं। ग्रीष्म सीजन या जायद मूंग की फसल के लिए 25 से 30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पर्याप्त रहता है। जायद मूंग की बुवाई 15 अप्रैल तक अवश्य कर लें। मूंग की बुवाई के समय कतार से कतार की दूरी 20 से 25 सेमी पर रखें। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10-15 से.मी. रखते हुए 4 से.मी. की गहराई पर बीज बोना चाहिए। बीजों को बुवाई से पूर्व शोधन अवश्य कर लें। इसके लिए बीजशोधन पांच ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से राइजोबियम कल्चर से बीज का शोधन करें। शोधन के बाद बीजों को छाया में रखें और सूखने पर बुवाई करें।
मूंग के साथ अन्य फसले भी ली जा सकती है। मूंग के साथ अन्य फसलों को भी लिया जा सकता है। इसके लिए फसल चक्र इस प्रकार से है-
मूंग की बुवाई के समय 8 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर, 8 किलो पोटाश एवं 8 किलो गंधक प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
बीज उपचार एक ग्राम कार्बेंडाजिम और दो ग्राम थायरम या तीन ग्राम थाईरम प्रति किलो बीज की दर से करें। बीमारी का प्रकोप नहीं होगा।
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