Published - 25 Nov 2020
सर्दी का मौसम चल रहा है और आने वाले समय में सर्दी का प्रकोप और बढऩे वाला है। मौसम वैज्ञानिकों ने इस बार लंबे समय तक सर्दी का असर होने के साथ ही इसके अधिक पडऩे की संभावना जताई है। इसका असर दिखने भी लगा है। दिन-प्रतिदिन तापमान में कमी आ रही है। सुबह और रात के तापमान में काफी गिरावट दर्ज की जा रही है। विशेषकर उत्तरभारत में सर्दी का प्रकोप कुछ अधिक ही रहता है। इसका प्रभाव इंसानों के साथ ही फसलों पर भी पड़ता है। अधिक सर्दी से फसलों की उत्पादकता पर विपरित असर पड़ता है और परिणामस्वरूप कम उत्पादन प्राप्त होता है। इसलिए सर्दी के मौसम में फसलों को विशेष देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वे फसलों को शीतलहर व पाले से बचाने के लिए अपने प्रयास तेज कर दें ताकि संभावित हानि से बचा जा सके।
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जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या फिर इससे नीचे चला जाता है तो हवा का प्रवाह बंद हो जाता है जिसकी वजह से पौधों की कोशिकाओं के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है और ठोस बर्फ की पतली परत बन जाती है। इसे ही पाला पडऩा कहते हैं। पाला पडऩे से पौधों की कोशिकाओं की दीवारें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और स्टोमेटा नष्ट हो जाता है। पाला पडऩे की वजह से कार्बन डाइआक्साइड, आक्सीजन और वाष्प की विनियम प्रक्रिया भी बाधित होती है।
शीतलहर व पाले से फसलों व फलदार पेड़ों की उत्पादकता पर सीधा विपरित प्रभाव पड़ता है। फसलों में फूल और बालियां/फलियां आने या उनके विकसित होते समय पाला पडऩे की सबसे ज्यादा संभावनाएं रहती हैं। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां और फूल झुलसने लगते हैं। जिसकी वजह से फसल पर असर पड़ता है। कुछ फसलें बहुत ज्यादा तापमान या पाला झेल नहीं पाती हैं जिससे उनके खराब होने का खतरा बना रहता है। पाला पडऩे के दौरान अगर फसल की देखभाल नहीं की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं। जिसकी वजह से पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखता है। अगर शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो उससे कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन हवा रूक जाए तो पाला पड़ता है जो फसलों के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है। पालेे की वजह से अधिकतर पौधों के फूलों के गिरने से पैदावार में कमी हो जाती है। पत्ते, टहनियां और तने के नष्ट होने से पौधों को अधिक बीमारियां लगने का खतरा रहता है। सब्जियों, पपीता, आम, अमरूद पर पाले का प्रभाव अधिक पड़ता है। टमाटर, मिर्च, बैंगन, पपीता, मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ, अफीम आदि फसलों पर पाला पडऩे के दिन में ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है। जबकि अरहर, गन्ना, गेहूं व जौ पर पाले का असर कम दिखाई देता है। शीत ऋतु वाले पौधे 2 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान सहन कर सकते हैं। इससे कम तापमान होने पर पौधे की बाहर और अंदर की कोशिकाओं में बर्फ जम जाती है।
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