Published - 25 Nov 2021 by Tractor Junction
केसर की खेती (Saffron Farming) का नाम सुनते ही सबसे पहले हमारे जहन में जम्मू-कश्मीर का नाम आने लगता है। क्योंकि जम्मू-कश्मीर में ही इसका उत्पादन किया जाता है। लेकिन अब उत्तरप्रदेश के बुंदलेखंड में भी अब इसकी खेती होने लगी है। यहां के किसानों के प्रयासों से यह सब संभव हो पाया है। इसमें खास बात ये हैं कि यहां के किसानों ने बंजर जमीन पर केसर की खेती करके दिखा दिया है जिसे कर पाना बहुत कठिन है। यह सब कुछ यहां के किसानों की कुछ हटकर नया करने की जिद और कड़ी मेहनत के बल पर संभव हो पाया है।
जानकारी के अनुसार बुंदेलखंड के हमीरपुर के निवादा गांव के केसर की खेती कर रहे हैं। वो भी बंजर जमीन पर। इस बारे में यहां के किसानों का यह कहना था हमें उम्मीद नहीं थी कि ऐसी जमीन पर केसर उगा सकते हैं, लेकिन फिर भी हमने हार नहीं मानी और उसका नतीजा यह हुआ की यहां भी केसर लहलहाने लगी।
केसर ठंडी जलवायु में उगने वाली फसल है। इसीलिए जम्मू-कश्मीर में इसकी खेती बहुत अधिक होती है। लेकिन बुंदेलखंड की जलवायु जम्मू-कश्मीर के मुकाबले गर्म है। इस लिहाज से देखा जाए तो बुंदेलखंड में इसकी खेती को कर पाना अपने आप में चौंकाने वाली खबर है। लेकिन यहां के किसानों ने इसे उगाकर ही दम लिया। इस संबंध में बुंदेलखंड के एक किसान बताते हैं कि केसर सिर्फ वादियों में ही नहीं उग सकता बल्कि इसको ठंडे इलाके की बजाय थोड़े गर्म इलाके में भी उगाया जा सकता है लेकिन बस शर्त यह है की एक दिन में आपको इसकी फसल में 4 से 5 बार पानी डालना होगा।
बुंदेलखंड जिले में केसर की खेती (kesar ki kheti) कर रहे किसानों के लिए केसर की खेती आय का एक नया स्त्रोत होगी। इसकी खेती करके किसान अधिक मुनाफा कमा पाएंगे। स्ट्रावेरी की खेती के बाद यहां के किसानों ने केसर की खेती में भी सफलता हासिल कर ली है। बता दें कि कश्मीरी केसर की खेती (kashmiri kesar ki kheti) से पैदा केसर की कीमत भारतीय बाजार से लेकर अंतराष्ट्रीय बाजारों में 2 से 3 लाख रुपये प्रति किलो है। तो ऐसे में अगर इसकी गुणवत्ता अच्छी हो तो किसानों को बेहतर मुनाफा हो सकता है।
केसर का पौधा (kesar ka podha) सुगंध देनेवाला बहुवर्षीय होता है और क्षुप 15 से 25 सेमी (आधा गज) ऊंचा, परंतु कांडहीन होता है। इसमें घास की तरह लंबे, पतले व नोकदार पत्ते निकलते हैं। जो संकरी, लंबी और नालीदार होती हैं। इनके बीच से पुष्पदंड निकलता है, जिस पर नीललोहित वर्ण के एकांकी अथवा एकाधिक पुष्प होते हैं। अप्रजायी होने की वजह से इसमें बीज नहीं पाए जाते हैं। इसके पुष्प की शुष्क कुक्षियों को केसर, कुंकुम, जाफरान अथवा सैफ्रन कहते हैं। इसमें अकेले या 2 से 3 की संख्या में फूल निकलते हैं। इसके फूलों का रंग बैंगनी, नीला एवं सफेद होता है। ये फूल कीपनुमा आकार के होते हैं। इनके भीतर लाल या नारंगी रंग के तीन मादा भाग पाए जाते हैं। इस मादा भाग को वर्तिका (तन्तु) एवं वर्तिकाग्र कहते हैं। यही केसर कहलाता है।
केसर का उपयोग खीर, गुलाब जामुन, दूध के साथ किया जाता है। इसके अलावा कई मिठाइयों में रंग और खुशबू के लिए इसका उपयोग करते हैं। औषधीय दवाइयों में भी इसका उपयोग किया जाता है। पेट संबंधित बीमारियों के इलाज में केसर बहुत फायदेमंद है। बदहजमी, पेट-दर्द व पेट में मरोड़ आदि हाजमे से संबंधित शिकायतों में केसर का सेवन करने से फायदा होता है। सिर दर्द को दूर करने के लिए केसर का उपयोग किया जा सकता है। सिर दर्द होने पर चंदन और केसर को मिलाकर सिर पर इसका लेप लगाने से सिर दर्द में राहत मिलती है। इसके अलावा महिलाओं की कई बीमारियों में इसका उपयोग औषधी के रूप में किया जाता है।
केसर को उगाने के लिए समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊंचा पहाड़ी क्षेत्र एवं शीतोष्ण सूखी जलवायु की आवश्यकता होती है। पौधे के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। यह पौधा कली निकलने से पहले बारिश एवं हिमपात दोनों बर्दाश्त कर लेता है, लेकिन कलियों के निकलने के बाद ऐसा होने पर पूरी फसल चौपट हो जाती है। मध्य एवं पश्चिमी एशिया के स्थानीय पौधे केसर को कंद (बल्ब) द्वारा उगाया जाता है।
धार के किसान बाबूलाल के अनुसार अन्य फसलों की तुलना में केसर की खेती करना आसान और सरल है। इसमें ड्रिप पद्धति से फसल को लिया जा सकता है। पौधों मे किसी प्रकार की कोई बीमारी नहीं लगती। जैविक फसल का पौधा 4 से 5 फीट लंबाई वाला होता है, जिस पर दो सौ से ढाई सौ तक फूल लगते हैं। इस फूल में ही केसर लगती है। आज से सात साल पहले किसान बाबूलाल ने अपने खेत में अमेरिकन केसर उगाई थी।
केसर की खेती समुंद्र तल से 1500 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर होती है। लेकिन कुछ गर्म इलाकों में भी इसकी खेती की जा सकती है। जैसा कि बुंदेलखंड के किसानों ने इसे कर दिखाया। अब बात करें इसके लिए कौनसी मिट्टी उपयुक्त रहती है तो केसर की खेती के लिए रेतीली, चिकनी, बलुई या फिर दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। इसके अलावा अन्य प्रकार की मिट्टी में भी इसे उगाया जा सकता है। पर ध्यान रहे जहां इसे उगाया जाए वहां उचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि जल जमाव के कारण इसके क्रोम्स खराब हो जाते हैं।
केसर का बीज बोने या लगाने से पहले खेत कि अच्छी तरह से जुताई की जाती है। इसके अलावा मिट्टी को भुरभुरा बनाकर आखिरी जुताई से पहले 20 टन गोबर का खाद और साथ में 90 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फास्फोरस और पोटास प्रति हेक्टेयर के दर से अपने खेत में डाला जाता है। इससे भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ेगी जिससे केसर की खेती में अच्छी होगी।
ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में केसरी की खेती जुलाई से अगस्त माह तक की जाती है लेकिन मध्य जुलाई का समय इसकी खेती के लिए अधिक उचित रहता है। जबकि मैदानी इलाकों में इसकी खेती का उचित समय फरवरी से मार्च का माना जाता है।
केसर के क्रोम्स लगाते के लिए सबसे पहले 6-7 सेमी का गड्ढा करें और दो क्रोम्स के बीच की दूरी लगभग 10 सेमी रखें। ऐसा करने से कोम्स अच्छे से फैलती है और पराग भी अच्छे मात्रा में निकलते हैं।
एक बार केसर के पैदावार के बाद इसे अच्छे तरह से पैक करके किसी भी नजदीकी मंडी में अच्छे दामों में बेच सकते है। असली केसर की डिमांड सभी जगह पर रहती है। आप अपने खेत से केसर पैदा कर (Saffron Production) अच्छी कीमतों पर बेच सकते हैं। इसके अलावा आप इसे ऑनलाइन भी बेच कर सकते हैं।
भारत में केसर का भाव इस समय ढाई लाख से तीन लाख रुपए प्रति किलो तक है। वहीं इसके 10 वॉल्व बीज की कीमत करीब 550 रुपए है।
यदि आप साल में एक किलो केसर का उत्पादन भी करते हैं तो आपको कम से कम सालाना दो लाख रुपए की कमाई हो सकती है।
आजकल केसर का बीज अमेजन जैसी ऑनलाइन साइटों पर भी विक्रय किए जाते हैं। इसके अलावा आप पालमपुर में स्थित सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान से भी इसका बीज प्राप्त कर सकते हैं।
केसर की खेती के लिए जिन संस्थानों से आप प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं उनमें प्रमुख संस्थानों के नाम हम नीचे दे रहे हैं। यहां से आप बीज और केसर के उगाने के संबंध में जानकारी व प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 1. केसर की खेती के लिए उचित समय कौनसा होता है?
उत्तर- ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में केसरी की खेती जुलाई से अगस्त माह तक की जाती है लेकिन मध्य जुलाई का समय इसकी खेती के लिए अधिक उचित रहता है। वहीं मैदानी इलाकों में इसकी खेती का उचित समय फरवरी से मार्च तक का होता है।
प्रश्न 2. मैं, केसर की खेती करना चाहता हूं। मुझे केसर का वॉल्व बीज कहां से मिल सकते हैं?
उत्तर- पालमपुर में स्थित सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान और गुजरात के गांधी नगर स्थित महात्मा गांधी संस्थान से आप केसर के वॉल्व बीज प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा अमेजन जैसी साइटों पर केसर के वॉल्व बीज की ऑनलाइन बिक्री की जाती है।
प्रश्न 3. केसर के वॉल्व बीज की कीमत कितनी होती है?
उत्तर- केसर के 10 वॉल्व बीज की कीमत करीब 550 रुपए तक होती है।
प्रश्न 4. मुझे केसर की खेती का प्रशिक्षण कहां से मिल सकता है?
उत्तर- गुजरात के गांधी नगर स्थित महात्मा गांधी संस्थान और पालमपुर स्थित सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान केसर की खेती का प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। आप वहां से केसर की खेती के संबंध में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 5. केसर का बाजार भाव क्या है?
उत्तर- भारत में केसर की कीमत इस समय ढाई लाख से तीन लाख रुपए प्रति किलो के आसपास है।
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