प्रकाशित - 26 Nov 2022 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
इस समय रबी की फसल का सीजन चल रहा है। किसान अपने खतों में रबी फसलों की बुबाई के काम में लगे हुए हैं। कई किसान गेहूं व सरसों की बुवाई कर रहे हैं। वहीं कई किसान इसकी बुवाई कर चुके हैं। ऐसे में किसानों को सरसों की खेती में ध्यान रखने वाली बातों को समझना भी जरूरी है ताकि फसल को नुकसान से बचा जा सकें और बेहतर उत्पादन मिल सकें। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को सरसों की बुवाई से लेकर कटाई तक के दौरान ध्यान रखने वाली खास बातों की जानकारी दे रहे हैं।
सरसों की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट या बलुई भूमि सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि पानी के निकास की समुचित व्यवस्था न हो तो प्रत्येक वर्ष सरसों की फसल लेने से पहले ढेचा को हरी खाद के रूप में उगाना चाहिए। ढैंचा फसल को हरी खाद के रूप में लेने से मृदा के स्वास्थ्य में जैविक, रासायनिक तथा भौतिक सुधार होते है व जलधारण क्षमता बढ़ती है। ढैंचा की पलटाई कर खेत में सड़ाने से नाइट्रोजन, पोटाश, गंधक, कैलिशयम, मैगनीशियम, जस्ता, ताबा, लोहा आदि तमाम प्रकार के पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पी.एच.मान. 7.0 होना चाहिए। अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती हेतु उपयुक्त नहीं होती है। हालांकि क्षारीय भूमि में उपयुक्त किस्म लेकर इसकी खेती की जा सकती है। जहां जमीन क्षारीय है वहाँ प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम/पायराइट 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता मृदा पी.एच. मान के अनुसार भिन्न हो सकती है। जिप्सम/पायराइट को मई-जून में जमीन में मिला देना चाहिए।
सरसो की खेती के लिए उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना चाहिए। हमेशा प्रमाणिक बीज ही बोने चाहिए। सरसों की बहुत सी किस्में है जो अधिक उत्पादन देती हैं और उनमें तेल की मात्रा भी अधिक होती है। आप इसमें से अपने राज्य के लिए अनुसंशित किस्म का चुनाव कर सकते हैं।
बेहतर पैदावार और फसल को बीज जनित बीमारियों से बचाने के लिए बीजोपचार करना अति आवश्यक है। सरसों की फसल को श्वेत किट्ट एवं मृदुरोमिल आसिता से बचाव हेतु मेटालेक्जिल (एप्रन एस डी-35) 6 ग्राम दवा से उपचारित करना चाहिए। वहीं तना सड़न या तना गलन रोग से बचाव हेतु कार्बेन्डाजिम 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीज उपचार करना चाहिए। बीजों उपचारित करने के बाद छाया में उसे सूखा लेना चाहिए। इसके बाद ही खेत में बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
सरसों का बेहतर उत्पादन प्राप्त करने हेतु रासायनिक उर्वरको के साथ केचुंआ की खाद, गोबर या कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग करना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों के लिए अच्छी सडी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद 100 क्विंटल प्रति हैक्टेयर या केचुंआ की खाद 25 क्विंटल/प्रति हेक्टर बुवाई के पूर्व खेत में डालकर जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। बारानी क्षेत्रों में देशी खाद (गोबर या कम्पोस्ट) 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से बारिश के पहले खेत में डाल देनी चाहिए और बारिश के मौसम मे खेत की तैयारी के समय खेत में मिला देनी चाहिए। राई-सरसों से भरपूर पैदावार लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उपयोग करने से उपज पर अच्छा प्रभाव पड़़ता है। उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना अधिक अच्छा रहता है। राई-सरसों को नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश जैसे प्राथमिक तत्वों के अलावा गंधव तत्व की आवश्यकता अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है।
असिंचित ओर सिंचित क्षेत्रों के लिए उवर्रक देने की मात्रा अलग-अलग निर्धारित की गई है। जो इस प्रकार से हैं-
बता दें कि जिन क्षेत्रों की मिट्टी में गंधक तत्व की कमी होती है, वहां इसके कारण फसल उत्पादन में कमी हो जाती है और तेल की मात्रा में भी कमी आती है। इसके लिए 30-40 किलोग्राम गंधक तत्व प्रति हेक्टेयर की दर से जरूर देना चाहिए। इसकी पूर्ति अमोनियम सल्फेट, सुपर फास्फेट, अमोनियम फास्फेट सल्फेट आदि उर्वरकों के उपयोग से की जा सकती है। किन्तु इन उर्वरकों के उपलब्ध न होने पर जिप्सम या पायराइटस के रूप में गंधक दिया जा सकता है।
सही समय पर सिंचाई करने से सरसों के उत्पादन में 25-50 प्रतिशत तक वृद्धि पाई गई है। इस फसल में 1-2 सिंचाई करने से लाभ होता है। यदि सरसों की बुवाई बिना पलेवा दिए की गई हो तो पहली सिंचाई बुआई के 30-35 दिन में करनी चाहिए। इसके बाद अगर मौसम शुष्क रहे अर्थात पानी नहीं बरसे तो बुवाई के 60-70 दिन की अवस्था पर जिस समय फली का विकास या फली में दाना भर रहा हो सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
सरसों की फसल में चितकबरा (पेन्टेड बग) कीट का प्रकोप अधिक होता है। यह चितकबरा कीट प्रांरभिक अवस्था की फसल के छोटे-छोटे पौधों को ज्यादा नुकसान पहुँचाते है। ये कीट प्रौढ़ व शिशु दोनों अवस्था में पौधों से रस चूसते है जिससे पौधे मर जाते है। यह कीट सरसों की बुवाई के समय और इसकी कटाई के समय में अधिक नुकसान पहुंचाते है। इस की के प्रकोप से बचने के लिए गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए। वहीं रासायनिक उपचार के लिए कीट प्रकोप होने पर बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद यदि संभव हो तो पहली सिंचाई कर देना चाहिए जिससे कि मिट्टी के अन्दर दरारों में रहने वाले कीट मर जाएं। जब फसल छोटी अवस्था में हो और उसमें इस कीट का प्रकोप हो तो क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत धूल 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव सुबह के समय करें। अत्यधिक प्रकोप होने पर मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
यह राई सरसों का प्रमुख कीट माना जाता है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पौधों का रस चूसते है व फसल को भारी हानि पहुंचाते हैं। यह कीट कम तापमान व 60-80 प्रतिशत आर्द्रता में अत्यधिक वृद्धि करते है। चेंपा युक्त फसल की टहनियों को 2-3 बार तोड़कर नष्ट कर देने से चेंपा के गुणन को रोका जा सकता है। वहीं नीम की खली का 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करके इसे नियंत्रित किया जा सकता है। चेपा का अधिक प्रकोप होने पर ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 500 मिली लीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव सायंकाल के समय ही करना चाहिए।
जब सरसों की फलियां 75% सुनहरे रंग की हो जाए, तब फसल की कटाई करनी चाहिए। कटाई के बाद फसल को सुखाकर या मड़ाई करके सरसों के बीज को अलग कर लेना चाहिए। सरसों के बीज को अच्छी तरह सुखाकर ही इसका भंडारण करना चाहिए ताकि नमी की मात्रा कम रहे।
उन्नत विधियों का इस्तेमाल करके असिंचित क्षेत्रों में इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। वहीं सिंचित क्षेत्रों में इसकी 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
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