Published - 21 Sep 2021
राजमा पोषक तत्वों से भरपूर एक शाखाहारी खाद्य पदार्थ है। ये दलहन श्रेणी में आता है। जो लोग मांस, अंडा आदि मांसाहार का सेवन नहीं करते है उनके लिए पोषक तत्वों से भरपूर राजमा का सेवन करना काफी लाभकारी है। राजमा के सेवन से कई फायदें मिलते हैं। ये सेहत को अच्छी रखने के साथ ही हमारे शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करता है। भारत में इसकी खेती अधिकतर हिमालयन रीजन के पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु राज्यों में अधिक होती है।
इसके अलावा अच्छा मुनाफा होने से अब अन्य राज्यों में भी इसकी खेती किसान करने लगे हैं। इसकी मांग बाजार में काफी होने से किसानों को इसके अच्छे दाम मिलते हैं। यदि राजमा के उत्पादन काल में कुछ बातों का ध्यान रखें तो इससे अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। आज हम आपको ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से राजमा की खेती से संबंधित जानकारी देंगे जिसमें अधिक पैदावार लेने के लिए इसकी किस्मों के चयन से लेकर इसकी बाजार में बिक्री तक की जानकारी देंगे। आशा है ये जानकारी आपके लिए फायदेमंद साबित होगी।
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राजमा में एंटी-ऑक्सिडेंट्स, फाइबर, आयरन, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, सोडियम और कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें घुलनशील फाइबर होता है जो शरीर में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा को कम करने में मदद कर सकता है। राजमा खाने से अनेक फायदे मिलते हैं। इसे सेवन से वजन कम करने में सहायता मिलती है। ये हृदय संबंधी रोग से बचाता है। इसके सेवन से हड्डियां मजबूत होती है। बॉडी बिल्डिंग वाले युवकों के लिए राजमा का सेवन काफी लाभकारी होता है। इसके अलावा ये कैंसर की रोकथाम में भी मदद करता है। मधुमेह रोगियों के लिए भी इसका सेवन करना फायदेमंद है। राजमा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है, जो मधुमेह को नियंत्रित करता है। यह कब्ज को दूर करने में भी सहायक है। इसके सेवन से रोकप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। ये ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में भी मददगार है।
भारत में राजमा की खेती (Rajma ki kheti) रबी और खरीफ दोनों सीजन में की जाती है। इसकी बुवाई के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से लेकर 25 डिग्री सेल्सियस तक तापमान उचित माना गया है।
राजमा की खेती (Farming of French bean) के लिए हल्की दोमट, सूखी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती हैं। इसके अलावा खेत में पानी की व्यवस्था उचित होनी चाहिए। इसकी बेहतर फसल के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 होना अच्छा माना जाता है।
भारत में राजमा खेती (Rajma Farming) अलग-अलग राज्यों मेें अलग-अलग समय पर की जाती है। यूपी और बिहार में इसकी बुवाई नवंबर के पहले और दूसरे पखवाड़े में की जाती है। महाराष्ट्र में अक्टूबर के मध्य में इसकी राजमा की बुवाई कर सकते हैं। हरियाणा और पंजाब में इसकी बुवाई अक्टूबर के पहले सप्ताह में की जा सकती है। खरीफ सीजन के लिए इसकी बुवाई मध्य मई से लेकर मध्य जून तक करना अच्छा रहता है। वहीं बसंत ऋतु की फसल के लिए फरवरी और मार्च के पहले सप्ताह में इसकी बुवाई करना अच्छा रहता है।
राजमा की बुवाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार कर लें। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की अच्छे से जुताई करें। इसके बाद 2 से 3 जुताई देसी हल या कल्टीवेटर से कर देना चाहिए। ध्यान रहे कि बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
राजमा की खेती के लिए उचित बीजों का चयन करना अति आवश्यक है। बीज खरीदने से पहले इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी है। इसके लिए किसान राज्य के बीज भंडार गृह अथवा सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थान से इसके प्रमाणिक बीज खरीद सकते हैं। इसके अलावा किसान अपने विश्वसनीय किसान भाई से भी इसके बीज प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप स्वयं का उत्पादित बीज काम में लेते हैं तो उसे बुवाई से पहले उपचारित जरूर कर लें।
राजमा की बहुत सी किस्में आती हैं। इनमें से अच्छा उत्पादन देने वाली राजमा की किस्में कुछ इस प्रकार से हैं-
राजमा की बुवाई के लिए आपको एक हैक्टयेर में करीब 120 से 140 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसमें ये बात ध्यान रखना जरूरी है कि राजमा का अधिक उत्पादन लेने के लिए ढाई से साढ़े 3 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर होन चाहिए।
राजमा के बीजों को बुवाई से पहले उपचारित करना जरूरी होता है। किसान भाई राजमा के बीजों को बोने से पहले इसे 2 से 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।
इसकी बुवाई पंक्तियों में की जानी चाहिए। इसमें लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इसके बीजों की बुवाई 5 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर करना उचित रहता है। बता दें कि राजमा की बीज थोड़ा हार्ड/ कठोर होता है इसलिए इसको उगने में या अंकुरण में समय लगता है। राजमा मिट्टी से बाहर आने के लिए 20 से 25 दिन लग जाते हैं।
राजमा के लिए 100 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस और 28-30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना जरूरी है। इसमें नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा बची आधी नत्रजन की आधी मात्रा राजमा खड़ी फसल में देनी चाहिए। इसके साथ ही 20 किलोग्राम गंधक की मात्रा देने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। वहीं 20 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिडक़ाव बुवाई के बाद 30 दिन और 50 दिन में करने पर उपज अच्छी मिलती है।
राजमा की खेती में 2 या 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 4 सप्ताह बाद करनी चाहिए। इसके बाद निराई एवं गुड़ाई का काम करें। इसके बाद एक माह के अंतराल में इसकी सिंचाई करनी चाहिए। गुड़ाई के समय थोड़ी मिट्टी पौधे पर चढ़ा देनी चाहिए ताकि फली लगने पर पौधे को सहारा मिल सके। सिचाई के दौरान इस बात का ध्यान रखें की खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए।
राजमा में खरपतवार यानि राजमा के आसपास उग आए अनावश्यक पौधों को दूर करने के लिए इसकी फसल में 1 से 2 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। इसके अलावा इसके नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 800 से 900 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।
राजमा में रोग-कीट जैसे कि सफेद मक्खी एवं माहू कीट लगते है। इनके रोकने के लिए कीटनाशक 1.5 मिलीलीटर रोगर या डेमोक्रांन दवा का छिडक़ाव करना चाहिए। वहीं राजमा पर जैसे कि पत्तियों पर मुजैक दिखते ही रोगार या डेमेक्रांन कीटनाशक को 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए। इसके लावा मोजेक रोगी पौधों को प्रारंभ में ही निकाल देना चाहिए साथ में डाईथेंन जेड 78 या एम 45 को मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए।
राजमा की फसल करीब 120 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके बाद इसकी नमी को दूर करने के लिए इसे 3 से 4 दिन तक फसल को धूप में सुखाएं। जब इसके बीज में नमी 9 से 10 प्रतिशत हो जाए तो तो दानों को भूसे से अलग कर देना चाहिए। ध्यान रहे अधिक सूखने पर फलियों से दाना चटकर गिरने और खुलकर बीज बिखरने लग सकते हैं।
अब बात करें इसकी पैदावार की तो ऊपर बताई गई बातों का ध्यान रखें तो किसान भाई निश्चित पैदावार में बढ़ोतरी कर सकते हैं। कृषि तकनीकों का प्रयोग करके इसकी सामान्य तौर पर 25 से 30 क्विंटल प्रति हैक्टयेर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
राजमा का भाव सामान्यत: 120 से लेकर 150 रुपया प्रति किलोग्राम रहता है। इसके भावों में उतार-चढ़ाव बना रहता रह सकता है। क्योंकि अलग-अलग मंडियों और बाजार में इसके भाव विभिन्न हो सकते हैं। अब बात करें इसके बीजों की कीमत की तो इसके बाजार में इसके बीज 200 से लेकर 300 रुपए प्रति किलो के हिसाब से मिल जाते हैं। इसकी कीमत इसकी वैरायटी पर निर्भर करती है।
किसान बाजार भाई अच्छा रेट पर अपनी राजमा की उपज बेचने के लिए ऑनलाइन मंडी पर इसका विक्रय कर सकते हैं। इसके अलावा अमेजन, इंडिया मार्ट, बिगबास्केट तथा फ्लिप्कार्ड कंपनियों को ऑनलाइन माध्यम से इसको बेच सकते हैं।
राजमा की खेती से पहले आपको ये भी पता होना चाहिए कि इसकी खेती मेें कौन-कौन से कृषि यंत्रों की जरूरत पड़ सकती है। खेती के दौरान काम आने वाले उपयोगी कृषि यंत्रों एवं सिंचाई यंत्रोंं की सूची इस प्रकार है। आप अपनी आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग कर सकते हैं-
राजमा की खेती से संबंधी प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1. राजमा की बुवाई के लिए कैसे भूमि होनी चाहिए?
उत्तर- राजमा की बुवाई के लिए हल्की दोमट या सूखी दोमट अच्छे जल निकास वाली मिट्टी उपयुक्त रहती है।
प्रश्न 2. मैं राजमा की खेती करना चाहता हूं, मुझे इसके लिए बीज कहां से खरीदना चाहिए?
उत्तर- आप राज्य के बीज भंडार गृह अथवा सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थान से इसके प्रमाणिक बीज खरीद सकते हैं।
प्रश्न 3. राजमा की फसल में खरपतवार दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर- राजमा की फसल में खरपतवार को दूर करने के लिए फसल में 1 से 2 निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। वहीं इसके रासायनिक उपचार हेतु पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 800 से 900 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव कर सकते हैंं।
4. राजमा की कटाई और गहाई का काम कब शुरू करना चाहिए?
उत्तर- आमतौर पर राजमा की फसल करीब 120 से 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। नमी को दूर करने के लिए इसे 3 से 4 दिन तक फसल को धूप में सुखाया जाता है। जब इसके बीज में नमी 9 से 10 प्रतिशत रह जाए तब दानों को भूसे से अलग करना चाहिए।
5. राजमा की उपज कहां बेचें जिससे अधिक मुनाफा हो सके?
उत्तर- आप राजमा की उपज को ऑनलाइन मंडी में बेच सकते हैं। इसके अलावा अमेजन, इंडिया मार्ट, बिगबास्केट तथा फ्लिप्कार्ड कंपनियों को ऑनलाइन माध्यम से इसको बेचा जा सकता है।
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