Published - 17 Dec 2021 by Tractor Junction
आजकल किसानों का ध्यान परंपरागत खेती से हटकर आधुनिक खेती की ओर से हो गया है। आधुनिक खेती के दौर में किसान अब बाजार की मांग को ध्यान में रखकर अधिक मुनाफा देने वाली फसलों का उत्पादन करने लगे हैं। इसी के साथ किसान फल और सब्जियों का उत्पादन करके भी अच्छी कमाई कर रहे हैं। यदि फलों की बात करें तो किसान भाई फलों में अनानास की खेती करके भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इसकी खेती पूरे बारह महीने की जा सकती है। वहीं इस फल की मांग बाजार में पूरे बारह महीने बनी रहती है। इस लिहाज से देखा जाए तो अनानास की खेती किसानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो सकती है। किसान भाई अनानास का उत्पादन करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से हमारे किसान भाइयों को अनानास की खेती की जानकारी दे रहे हैं। आशा करते हैं कि ये जानकारी आपके लिए लाभदायक होगी।
अनानास का पौधा कैक्टस प्रजाति का होता है। अनानास जिसे अंग्रेजी में पाइन एप्पल कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम अनानस कोमोसस है। यह एक खाद्य उष्णकटिबंधीय पौधा है। तकनीकी दृष्टि से देखें, तो ये अनेक फलों का समूह विलय हो कर निकलता है। यह मूलत: पैराग्वे एवं दक्षिणी ब्राज़ील का फल है। अनन्नास को ताजा काट कर भी खाया जाता है और शीरे में संरक्षित कर या रस निकाल कर भी सेवन किया जाता है।
अनानास मेें उच्च स्तर के अम्लीय स्वभाव (संभवत: मैलिक या साइट्रिक अम्ल) का होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में मैग्नीशियम पाया जाता है। एक प्याला अनन्नास के रस-सेवन से दिन भर के लिए आवश्यक मैग्नीशियम के 75 प्रतिशत की पूर्ति होती है। अनानास के टुकड़े के एक कप (165 ग्राम में) कैलोरी 82.5, फैट 1.7 ग्राम, प्रोटीन 1 ग्राम, फाइबर 2.3 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट्स 21.6 ग्राम, विटामिन 131 फीसद, विटामिन बी6 9 फीसद, कॉपर 9 फीसद, फोलेट 7 फीसद, पोटैशियम 5 फीसद, मैग्नीज 5 फीसद और आयरन 3 फीसदी पाया जाता है।
अनानास में उच्च एंटीआक्सीडेंट होते हैं और इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। इसके सेवन से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और साधारण ठंड से भी सुरक्षा मिलती है। इससे सर्दी समेत कई अन्य संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। ये शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकलता है। इसमें क्लोरीन की भरपूर मात्रा होती है। साथ ही पित्त विकारों में विशेष रूप से और पीलिया यानि पांडु रोगों में लाभकारी है। ये गले एवं मूत्र के रोगों में लाभदायक है। इसके अलावा ये हड्डियों को मजबूत बनाता है। गठिया रोग में भी इसे लाभकारी माना जाता है।
इस किस्म को हमारे देश में मुख्य रूप से केरल, आंध्र प्रदेश, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, असम, और मिजोरम में उगाया जाता है। अब मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तरप्रदेश के किसान भी इसका उत्पादन करने लगे हैं। केरल, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में इसकी खेती 12 महीने की जाती है।
अनानास की खेती के लिए नम (आर्द्र) जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की जरूरत होती है। बता दें, अनानास में ज़्यादा गर्मी और पाला सहने की क्षमता नहीं होती है। इसके लिए 22 से 32 डिग्री से. तापक्रम उपयुक्त रहता है। दिन-रात के तापक्रम में कम से कम 4 डिग्री का अंतर होना चाहिए। इसके लिए 100-150 सेंटीमीटर बारिश की ज़रूरत होती है। अनानास के लिये गर्म नमी वाली जलवायु उपयुक्त रहती है।
मिट्टी अनानास की खेती के लिए अधिक जीवांश वाली बलुई दोमट मिट्टी या रेतीली दोमट भूमि अच्छी होती है। इसके अलावा जल भराव वाली भूमि में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। इसके लिए अम्लीय मिट्टी का पी.एच. मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए।
इसकी खेती साल में दो बार की जा सकती है। पहली जनवरी से मार्च तक तथा दूसरी बार मई से जुलाई के बीच इसकी खेती की जा सकती है। वहीं जिन इलाकों में नमी युक्त मध्यम गर्म जलवायु होती है वहां इसकी खेती पूरे बारह महीने की जा सकती है।
भारत में अनानास की कई किस्में प्रचलित है। इनमें जायनट क्यू, क्वीन, रैड स्पैनिश, मॉरिशस मुख्य किस्म हैं। अनानास की क्वीन किस्म बहुत जल्दी से पकने वाली किस्म है। जायनट क्यूइस किस्म की खेती पछेती फसल के रूप में की जाती है। रेड स्पैनिशइस किस्म में रोगों का प्रकोप काफी कम होता है। इस किस्म का उपयोग ताज़े फल के रूप में किया जाता है। मॉरिशस यह एक विदेशी किस्म है।
सबसे पहले ग्रीष्मकाल में मिट्टी पलटने वाले हल से खेत की गहरी जुताई करके कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें। खेत में गोबर की सड़ी खाद डालकर मिट्टी में मिला दें। खेत में रोटावेटर चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें।
अनानास के रोपाई दिसंबर-मार्च के मध्य अधिकांश क्षेत्रों में की जाती है परंतु स्थिति अनुसार इसे बदला जा सकता है। बहुत अधिक वर्षा के समय रोपाई न करें। खेत तैयार करने के बाद खेत में 90 से.मी. दूरी पर 15 से 30 से.मी. गहरी खाईयां बना लें। रोपाई के लिए अनानास के सकर, स्लीप या अनानास का ऊपरी भाग उपयोग में लाया जाता है। इसका रोपण करने से पहले इन्हें 0.2 प्रतिशत डाईथेन एम 45 के घोल से उपचारित कर लें। पौधे से पौधे की दूरी 25 से.मी., लाइन से लाइन की दूरी 60 से.मी. खाईयों के बीच रखें।
खेत की जुताई के समय ही गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कंपोस्ट या कोई भी जैविक खाद डालकर उसे मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके अलावा रासायनिक खाद के रुप में 680 किलो अमोनियम सल्फेट, 340 किलो फास्फोरस और 680 किलो पोटाश साल में दो बार पौधों को देना चाहिए।
यदि इसका अनानास के पौधे का रोपण बारिश के मौसम में किया जाता है तो इसमें सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है। इसमें सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन विधि को अपनाना सबसे उपयुक्त रहता है। पौधों के अंकुरित होने के बाद 10-15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
वैसे तो अनानास के पौधों में बहुत कम रोग लगते हैं। लेकिन कुछ रोग इस पौधे को हानि पहुंचा सकते हैं। इसलिए इन रोगों से अनानास के पौधे को बचाने का उपाय करना चाहिए।
लागत और कमाई एक हेक्टेयर खेत में 16 से 17 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं, जिससे 3 से 4 टन अनानास का उत्पादन होता है। एक फल लगभग 2 किलो का होता है, जिसका मूल्य बाजार में 150-200 रुपए तक आसानी से मिल जाता है। इसकी प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज में भी काफी अच्छी मांग है। अनानास का उपयोग जूस, डिब्बा बंद स्लाइस आदि में होता है।
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