Published - 14 Dec 2020 by Tractor Junction
20वीं पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में पशुधन की आबादी 53 करोड़ 57 लाख से ज्यादा है और अधिकांश पशुओं के लिए चारे की कमी बताई गई है। ऐसे में शूलरहित कैक्टस ( ओपंटिया फिकस इंडिकस ) जिसे आमतौर पर चारा कैक्टस या नाशपाती कैक्टस के रूप में जाना जाता है, चारे की फसल के रूप में दुनियाभर में लोकप्रियता हासिल कर रहा है। इसकी विशेष प्रकृतिक इसे सूखी भूमि पर विकसित होने में सक्षम बनाती है, जहां पर सामान्यत: कोई फसल जीवित नहीं रह पाती है। नाशपाती कैक्टस की खेती भारत, पाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, इथोपिया, केन्या, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका के सूखाग्रस्त क्षेत्रों में चारे के रूप में लोकप्रिय है।
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भारत में नाशपाती कैक्टस को पहली बार वर्ष 1970 के दशक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर द्वारा चारे के रूप में वैज्ञानिक खेती के लिए पेश किया गया था जहां 700 मि.मी. तक वर्षा होती है। विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों जैसे, भारतीय कृषि अनुसंधा परिषद-केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर, राजस्थान, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी और अन्य संस्थान शूलरहित इस कैक्टस के उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं। अपने वैश्विक महत्व के कारण अंतर्राष्ट्रीय नाशपाती कैक्टस नेटवर्क (कैक्टसनेट) को वर्ष 1992 में सैंटियागो में खाद्य और कृषि महत्व के लिए समर्पित समर्थन के लिए स्थापित किया गया था।
भारत में बरसात के मौसम ( जून-जुलाई से नवंबर ) में क्लैडोड के उपयोग वानस्पतिक बुआई के प्रसार द्वारा कैक्टस की सफलतापूर्वक खेती की जाती है। परंपरागत रूप से इस क्लैडोड को काटने के उपरांत टुकड़ों की खेती में बुवाई की जाती है। यह खारी मिट्टी के लिए भी उपयुक्त है। इसके साथ ही वनो की कटाई, मिट्टी के कटाव और अन्य कृषि प्रणाली में खेती करने के लिए भी उपयुक्त है। बड़े क्षेत्रों में रोपण के लिए इसके पौधे ऊतक संविर्धन तकनीक के माध्यम से रोपे (स्थापित) जाते हैं। अच्छी तरह से सूखी, भारी, रेतीली, रेतीली-दोमट मृदा, गंभीर रूप से और पथरीली भूमि विशेषकर पहाड़ी ढ़लानों पर खेती के लिए उपयुक्त है।
नाशपति कैक्टस की पहली कटाई तब की जाती है, जब पौधा एक मीटर ऊंचाई 5 से 6 महीने के अंतराल में पूरा कर लेता है और नियमित कटाई के बाद इसे हरे चारे के उपयोग में लिया जाता है। प्रत्येक फसल वर्ष में इसके हरे चारे की उपज 40 से 50 मीट्रिक टन प्रति हैक्टेयर हो सकती है। कैक्टस को पशुओं द्वारा सीधे चरने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि इससे फसल की उम्र घटने लगती है। इसकी कटाई के लिए ‘कट एंड कैरी विधि’ सर्वश्रेष्ठ है। छोटे कैक्टस के टुकड़ों को कुछ सूखे चारे जैसे गेहूं और धान के पुआल के साथ 1:3 में (72 प्रतिशत प्रोटीन, 62 प्रतिशत सूखे पदार्थ, 43 प्रतिशत कच्चे फाइबर के लिए और 67 प्रतिशत कार्बनिक पदार्थों के साथ) मिलाया जाना चाहिए।
कैक्टस की खेती किसानों के बेहद फायदेमंद है। इसकी मौजूदा आय किसान को समृद्ध कर सकती है। इस संबंध में क्षेत्रारोपण के लिए बड़े पैमाने पर प्रसार, स्थान विशिष्ट प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए प्रणालीगत क्षेत्र मूल्यांकन आवश्यक है। जुगाली करने वाले पशुधन की चारा जरुरत के लिए शूलरहित कैक्टस की खेती अपरंपरागत और मूल्यवान चारा संसाधन के लिए महत्वपूर्ण है।
भारतीय परिवेश में बिना कांटे का कैक्टस पौधा सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए एक अच्छी चारा फसल है। भैंस (दुधारू पशुओं), भेड़, घोड़ों आदि जैसे मवेशियों के लिए यह एक पोषक चारे के रूप में कार्य करता है। जो किसान सिंचाई के अभाव में भारी मात्रा में फलियां और नैपियर घास, गेहूं, धान और मक्का जैसा पारंपरिक चारा नहीं उगा सकते हैं, उनके लिए यह उपयुक्त है। यह कू्रड प्रोटीन, फाइबर, विभिन्न प्रकार के खनिजों (कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, जिंक, मैगजीन, तांबा, लोहा और अन्य) के साथ-साथ पानी में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट के अलावा कैरोटीनॉयड (विटामिन च्ए) से समृद्ध है। यह श्लेष्म की उच्च सामग्री के कारण 70 प्रतिशत शुष्क पदार्थ की पाचनशक्ति के साथ अत्यधिक सुपाच्य है, जिसे क्लैडोड के सेवन से जुगाली करने वाले पशुओं में एसिडोसिस (पाचन तंत्रा में अधिक मात्रा में अम्ल बनने की समस्या) नहीं होती है।
फल और नवजात नाशपाती कैक्टस (क्लैडोड) का खाने योग्य हिस्सा मानव द्वारा एपेटाइजर, सूप, सलाद, पेय, कैंडी, ब्रेड के साथ जैली और कैक्टस पेय के विभिन्न स्वादों के रूप में सेवन किया जाता है। इसके नवोदित तने को नोपेल्स कहते हैं। इनका उपयोग एक स्वादिष्ट एवं पौष्टिक वनस्पति के रूप में किया जाता है।
कैक्टस अपेक्षाकृत सूखा प्रतिरोधी मरूस्थलीय पौधा है और लंबे समय तक सूखे मौसम में भी अपना अस्तित्व बरकरार रखता है। बड़ी मात्रा में चारे का उत्पादन कम से कम कृषि लागत में प्रदान करता है। यह सूखे के दौरान रसीले चारे की आपूर्ति करता है। जिसमें जल की भरपूर मात्रा होती है। पशुओं को अतिरिक्त जल आपूर्ति में पर्याप्त बचत होती है। यह पौधा मृदा और जलवायु की एक विस्तृत शृंखला को सहन करता है और इससे मृदा में विभिन्न प्रकार के लाभकारी सूक्ष्मजीवियों की संख्या तथा जलधारण क्षमता में बढ़ोतरी होती है। कैक्टस अपने विशेष प्रकाश संश्लेषण तंत्रा के कारण शुष्क पदार्थ को जल में परिवर्तित करने के लिए घास तथा अन्य फलियों की तुलना में अधिक कारगर है। इससे जल संरक्षण में भी फायदा मिलता है। यह समान पर्यावरणीय परिस्थितियों में सी-4 पौधों ( गन्ना, मक्का ) की तुलना में 3 गुना अधिक और सी-3 पौधों ( धान, गेहूं ) से 5 गुना बेहतर है।
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