फसल कटाई के उपरांत खेत में बचे फसल के अवशेष जो 12-14 इंच या इससे अधिक लम्बे होते हैं, इन अवशेषों को ही पराली या फसल अवशेष कहा जात है।
जिस प्रकार एक विवाह स्थल में एक समारोह होने के बाद दूसरे समारोह होने से पहले साफ-सफाई की जाती है उसी तरह इस फसल अवशेष को एक सीमित समय में ही हटाना आवश्यक होता है ताकि आगे उगाये जाने वाली फसल के लिए खेत तैयार हो सके।
पराली को हटाने के तरीकेः-
- आधुनिक मशीनों के आगमन से पूर्व जब फसल पक कर तैयार हो जाती थी तब किसान फसल को हंसिये से काटता था तो फसल के अवशेष मात्र 2-3 इंच ऊँचाई के ही बचते थे। पराली बहुत छोटी होने के कारण मजदुरों द्वारा आसानी से मिट्टी में मिला दी जाती थी। ऐसा करने में ज्यादा मानवश्रम की आवश्यकता भी नहीं पडती थी।
- आधुनिक मशीनों (कम्बाईन हारवेस्टर) द्वारा जब धान की कटाई होती है तब बचे अवशेष 12-14 इंच या इससे अधिक लम्बे होते हैं। इन्हें हटाने के लिए मानवश्रम बहुत मंहगा व समय लेने वाला होता है। इस इतने ऊंचे फसल अवशेषों के कारण खेत को तैयार करने हेतु पराली को हटाने के लिए आधुनिक मशीनों की आवश्यकता होती है, क्योंकि ।
पराली जलाने के कारणः-
- किसानों की बदहाल आर्थिक स्थिति पराली हटाने के महंगे यंत्रीकृत तरीकों का उपयोग करने की अनुमति नहीं देती है।
- पराली को यदि खेत में छोड़ दिया जाए तो दीमक जैसे कीट आगामी फसल पर हमला कर सकते हैं।
- अगली फसल बोने हेतु पराली को खेत से निकालने के लिए किसानों को बहुत कम समय मिलता है तो पराली से जल्द से जल्द छुटकारा पाने के लिए किसानों के लिए इसे जलाना ही एकमात्र तरीका रह जाता है।
- पहले के समय में फसल अवशेष को किसानों द्वारा खाना पकाने के लिए, अपने जानवरों को गर्म रखने के लिए या घरों के लिए छप्पर के रूप में भी उपयोग किया जाता था।
- पंजाब के उप-संरक्षण सब साइल अधिनियम (2009) कानून का प्रतिकूल प्रभाव ।
इस कानून के कारण धान की फसल की बुवाई और रोपाई में लगभग एक पखवाड़े की देरी और कटाई के समय में भी देरी हो जाती है। जिससे अगली उगाई जाने वाली फसल के लिए खेत तैयार करने हेतु समय बहुत कम बचता है।
पराली जलाने के कुप्रभावः-
- प्रदूषणः- पराली के जलने से वातावरण में बड़ी मात्रा में जहरीले प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है, जिनमें मीथेन, कार्बन मोनोआक्साइड, वाष्पशील कार्बनिक यौगिक और कार्सिनोजेनिक पेरीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं। ये प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं। जिससे स्मॅाग बनता है। यह मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- पराली जलाने से भूमि में 80 प्रतिशत तक नाइट्रोजन और सल्फर और 20 प्रतिशत तक अन्य पोषक तत्वों की कमी आ जाती है।
- पराली जलाने से मिट्टी की उपरी परत कडी हो जाती है जिससे मिट्टी की जलधारण क्षमता कम हो जाती है।
- मिट्टी की उर्वरताः- जमीन पर पराली जलाने से मिट्टी की उपरी परत में उपस्थित मित्र जीवाणु गर्मी की वजह से नष्ट हो जाते है। जिससे आने वाली फसल को यह मित्र जीवाणु नहीं मिल पाते हैं।
- महत्वपूर्ण तथ्य- एक ग्राम मिट्टी में लगभग 20 करोड लाभकारी जीवाणु उपस्थित होते हैं, पराली जलाने से इनकी मात्रा घटकर 15 लाख रह जाती है। जिससे मृदा के उपजाऊपन कम हो जाता है।
पराली के लाभः
- पराली को गोबर और कुछ प्राकृतिक एंजाइमों के साथ मिलाकर उच्च श्रेणी के जैविक उर्वरकों एवं खाद को तैयार किया जा सकता है। देश भर में जलाई जाने वाली पराली में लगभग सात लाख टन नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर जैसे पोषक तत्व, जिसका मूल्य लगभग 1,000 करोड़ रुपये होता है, नष्ट हो जाते हैं।
- छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा एक नवीन प्रयोग किया जा रहा है। इस प्रयोग के अन्तर्गत एक भूखंड में राज्य के गांवों से सभी अनुपयोगी पराली को लोगों द्वारा किए गए दान के माध्यम से एकत्र किया जाता है और गाय के गोबर और कुछ प्राकृतिक पदार्थों के साथ मिलाकर जैविक खाद में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रयोग से ग्रामीण युवाओं के बीच रोजगार पैदा हो रहा है।
- उपर्युक्त पोषक तत्वों के साथ, जैविक कार्बन भी पराली के जलने के दौरान नष्ट हो जाती है।
- पराली के मिटटी में मिल जाने के कारण बनी जैविक खाद का उपयोग किया जाता है, तो यह खाद मिट्टी में रासायनिक उर्वरकों के कारण होने वाले कार्सिनोजेन्स के स्तर को कम करके में कैंसर के खतरे को भी कम कर सकता है।
- बिजली उत्पादन में कोयले के साथ 10 प्रतिशत पराली का उपयोग किया जा रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित न्यू जेनरेशन पावर इंटरनेशनल ने पंजाब में 1000 मेगावाट बायोमास ऊर्जा पैदा करने वाले संयंत्रों को स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है ताकि अवशेष जलाने को रोका जा सके। कंपनी की योजना 200 प्लांट लगाने की है, जिसमें प्रत्येक प्लांट में 5 मेगावाट क्षमता है, जो कच्चे माल के रूप में पराली का उपयोग कर रहा है।
- केन्द्र सरकार द्वारा किसानों को पराली का 5,500 रु0 प्रतिटन के हिसाब से दिया जाता है।
- पराली जलाने से रोकने के लिए तथा फसल अवशेष प्रबंध के लिए सरकार द्वारा 50 प्रतिशत से लेकर 80 प्रतिशत अनुदान देने का प्रावधान किया गया है। फसल अवशेषों को खेत में मिलाने से मिट्टी और अधिक उपजाऊ हो जाती है और किसान के खाद के खर्च पर लगभग दो हजार रुपये प्रति हैक्टेयर की बचत होती है।
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भविष्य में किए जा सकने वाले कार्यः-
- पराली की कटाई और उससे बनाए जाने वाले जैविक खाद के लिए किए जाने वाले कार्य को मनरेगा योजना से जोडना।
- टर्बो हैप्पी सीडर (THS) की कुशल तकनीक जैसी अन्य मशीनों का आविष्कार किया जाए, जिसकी लागत राशि कम हो, इसके लिए कृषि अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- पराली प्रबंधन के लिए एग्री बोयोटेक कंपनी कैन बायोसिस के स्पीड कम्पोस्ट उत्पाद इसके चार किलोग्राम के पैकेट को एक कट्टा यूरिया में मिलाकर एक एकड़ में छिड़क कर सिंचाई कर देनी चाहिए। सिंचाई करने के 14 से 15 दिनों के अंदर यह उत्पाद पराली को पूरी तरह से कम्पोस्ट खाद में बदल देगा।, इससे न केवल पराली जलाने की समस्या का समाधान होगा बल्कि खेत को कम्पोस्ट खाद भी पर्याप्त मात्रा में मिलेगी जिससे लागत में तो कमी और फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी।
- सरकार फसल अवशेष प्रबंधन मशीन को ग्राम स्तर पर उपलब्धता सुनिश्चित करावें जिससे जो किसान इस मशीन को अनुदान के बाद भी खरीदने में असमर्थ है, उसे वह किराये पर कुछ समय के लिए उपयोग कर सके, जिससे वह पराली को जलाने पर विवश न हो।
- किसानों को सुविधा व जानकारी प्रदान की जाएगी तो वह विवश होकर जो गलत कर रहे है वह नहीं होगा और प्रदुषण की जो विकट समस्या उत्पन्न हो रही है। वह नहीं होगी।
- सरकार द्वारा किसानों में जागरूकता फैलाई जाए कि, किस तरह पराली अभिशाप न होकर उनके लिए एक वरदान है।
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