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गन्ने की फसल में पोक्का रोग का प्रकोप, किसान ऐसे करें नियंत्रण

प्रकाशित - 14 Jul 2024

जानें, क्या है गन्ने का पोक्का रोग और इससे फसल को बचाने के उपाय

भारत में गन्ने की खेती (sugar cane field) नकदी फसल के रूप में की जाती है। इसकी खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में की जाती है। इसके बाद महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, गुजरात, बिहार, पंजाब, हरियाणा में इसकी खेती की जाती है। बारिश के बाद एक ओर जहां गन्ने की फसल में बढ़ोतरी होती है, वहीं दूसरी ओर फसल में कीट व रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। गन्ने को बहुत से रोग लगते हैं। इन्हीं रोगों में से एक पोक्का रोग (Pokka disease) भी है जिसका प्रकोप जुलाई और अगस्त के महीने में देखने को मिलता है।

हाल ही वर्षो में गन्ने पर इस रोग का प्रकोप दिखाई दिया है। बताया जा रहा है कि गन्ने में पोक्का रोग का प्रकोप शुरू हो गया है। यदि समय पर इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया जाता है तो गन्ने की फसल को बहुत नुकसान हो सकता है। ऐसे में गन्ने की फसल को पोक्का रोग से बचाने के लिए किसानों को इसकी रोकथाम के उपाय करना जरूरी हो जाता है ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके।

आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको गन्ने की फसल को पोक्का रोग से बचाने के उपाय बता रहे हैं, तो आइये जानते हैं, इसके बारे में।

क्या है गन्ने का पोक्का रोग (What is Pokka disease of sugarcane)

कृषि विज्ञानियों के मुताबिक गन्ने की फसल को लगने वाला यह रोग फ्यूजेरिम नाम के कवक से फैलता है। यह रोग रुक-रुक कर होने वाली बारिश और धूप के कारण फैलता है। इस रोग से ग्रसित होने पर लीफ सीथ यानी जहां पत्ती और तना जुड़ते हैं, वहां पर सफेद धब्बा दिखाई देने लगता है। पत्तियां मुरझाकर काली पड़ जाती हैं और पत्ती का ऊपरी भाग सड़कर गिर जाता है। इससे गन्ने का विकास ठीक से नहीं हो पाता है और गन्ना बौना रह जाता है, उसकी लंबाई कम रह जाती है। इस रोग से ग्रसित पत्तियों के नीचे का अगोला छोटा और अधिक हो जाता है। पोरियों पर चाकू से कटे निशान भी दिखाई देते हैं। यह रोग उन गन्ने की किस्मों को अधिक प्रभावित करता है जिनकी पत्तियां चौड़ी होती है। इससे गन्ना छोटा और लंबाई में कम यानी बौना रह जाता है।

पोक्का रोग से होने पर पौधे पर क्या दिखाई देते हैं लक्षण (What symptoms are seen on the plant due to Pokka disease)

उत्तर प्रदेश शोध परिषद के कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इस रोग के लक्षण गन्ने की ऊपर पत्तियों में साफ तौर से दिखाई देते हैं। रोग की शुरुआती अवस्था में अगोले की पत्तियों पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं जिससे पत्तियां मुड़ने लगती है और एक दूसरे से लिपट कर चाबुक जैसी आकृति बना लेती हैं। अधिक देर तक प्रभाव रहने के कारण पौधे की चोटी में पत्तियों का विकास नहीं हो पाता है जिससे पत्तियां अविकसित रह जाती है। पत्ती सड़कर नीचे गिर जाती हैं। संक्रमण की अधिकता होने पर अगोले की सारी पत्तियां मुड़कर, सूखकर गिरने लगती हैं। गन्ने का ऊपर भाग ठूंठ की तरह दिखाई देने लग जाता है जिससे गन्ने की लंबाई नहीं बढ़ पाती है और गन्ना टेढ़ा और बौना हो जाता है।

पोक्का रोग से बचने के लिए क्या करें उपाय (What measures should be taken to avoid Pokka disease)

धान की फसल में पोक्का रोग का प्रकोप होने पर इसका पौधा छूने मात्र से ही टूट जाता है। वहीं गन्ने की पौध की बढ़ोतरी भी अपने आप रूक जाती है जिससे पैदावार में कमी आ जाती है। पोक्का रोग की रोकथाम के लिए कार्बेंडाजिम 50 WP का 400 ग्राम को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। यह छिड़काव रोग के प्रथम लक्षण दिखाई देने पर ही कर देना चाहिए। इसके अलावा फसल में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 WP की 800 ग्राम मात्रा को 400 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए या कासूकीमाईसीन 5WP और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45 WP की 400 ग्राम दवा को 400 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे कर सकते हैं। यह स्प्रे फसल पर 10 से 15 के बाद दोबारा से दोहराया जा सकता है। 

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