Published - 10 Dec 2020 by Tractor Junction
देश में हर साल सर्दी और पाले से फसलों को नुकसान पहुंचता है। पाला पडऩे से फसलों को आंशिक या पूर्ण रूप से हानि होती है। पाला पडऩे की संभावना आमतौर पर दिसंबर से जनवरी तक ही होती है। पाले और सर्दी से फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। हालांकि से पाले से बचाव के लिए कुछ पारंपरिक तरीके हैं लेकिन वो इतने कारगर नहीं है कि फसलों में नुकसान नहीं हो। विज्ञान और तकनीक के युग में किसानों के लिए एक नई खुशखबरी आई है। अब कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन इजाद की है जिससे खेत में खड़ी फसल को पाले से बचाय जा सकेगा। राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन बनाई है जो पाले से फसलों को बचाएगी। आईये जानते हैं इस मशीन के बारे में।
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यह मशीन खेत के तापमान को छह सेंटीग्रेड से नीचे नहीं पहुंचने देगा। जैसे ही तापमान छह डिग्री पहुंचेगा, यह मशीन गर्म हवा के जरिए खेत का तापमान आठ डिग्री पहुंचा देगी। यही मशीन एक हेक्टेयर क्षेत्रफल का तापमान एक जैसा बनाए रख सकती है। यह मशीन पूरी तरह से ऑटोमेटिक है। मौसम के हिसाब से इसे खेत के मेड़ पर लगाया जाता है। बाहर से आने वाली ठंडी हवा का तापमान जैसे ही छह डिग्री पर आता है मशीन शुरू हो जाती है। मशीन में पंखा लगा होता है जो छह फीट ऊंचाई तक गर्म हवा फेंकता है। मशीन धुआं भी फेंकती है। जिससे सामान्य फसल के साथ फल वाली फसल को भी पाले से बचाया जा सकता है।
इस मशीन को विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ. नितिन सोनी ने बताया कि सर्दियों में पाले से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, किसान पाले से फसल बचाने के लिए कई उपाय तो करते हैं, लेकिन ज्यादातर किसानों को नुकसान ही उठाना पड़ता है। इस पर हमने सोचा कि कुछ ऐसा प्रयोग किया जाए, जिससे फसल को पाले से बचाया जा सके। इस प्रयोग को सफल बनाने के लिए छह लोगों की टीम बनाई गई। इस टीम ने लगभग ढ़ाई साल की कड़ी मेहनत के बाद इस मशीन को बनाया है।
सोनी ने बताया कि मशीन को बिजली के साथ ही डीजल से भी चलाया जा सकता है। इस मशीन में यह व्यवस्था भी रहेगी कि इसके लिए जरूरी बिजली खेत में ही सौर ऊर्जा से बनाई जा सके। एक हार्स पावर की मोटर लगी है। दो -तीन घंटे चलाने पर करीब एक यूनिट बिजली की खपत होगी। वैज्ञानिकों ने मशीन का परीक्षण किया है जो पूरी तरह से सफल रहा है।
मशीन के पेटेंट के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्ताव भेजा है। 2021 तक मशीन पेटेंट भी हो जाएगी। पेटेंट होते ही ये मशीन किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। सोनी के अनुसार मशीन को पेटेंट होने में साल भर का समय लग जाएगा, तब ये किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। अभी इसलिए हम उसका प्रदर्शन भी नहीं कर रहे हैं, पेटेंट होने में काफी समय लग जाता है, हमारी कोशिश है कि साल 2021 तक ये किसानों तक पहुंच जाए।
हर साल सर्दियों के मौसम में पाले की वजह से आलू, मटर, चना, मिर्च, टमाटर जैसी फसलें बर्बाद हो जाती है। तापमान कम होने के साथ ही जैसे ही ठंड बढ़ती है और तापमान 10 डिग्री से कम होता है, पाला गिरने लगता है। पाले से आलू में झुलसा रोग होता है। इससे पत्तियां काली पड़ जाती हैं और पूरी तरह से फसल बर्बाद हो जाती है। इसी तरह से ही चना व मटर जैसी दलहनी फसलों पर भी पाले का असर पड़ता है। रात में तीन बजे से सुबह पांच बजे तक पाले का असर ज्यादा रहता है।
इस मशीर के बाजार में आने के बाद फसलों का पाले से नुकसान नहीं होगा। कृषि विज्ञानी डॉ. नितिन सोनी के साथ छह विज्ञानियों की टीम ने ढाई साल में इसे तैयार किया है। इनमें डॉ. कैलाश, डॉ. आलम खान, डॉ. धर्मेंद्र पाटीदार, डॉ. अजय हलधर, डॉ. रिया ठाकुर, डॉ. मनोज त्रिपाठी शामिल हैं। हालांकि मशीन की कीमत अभी तय नहीं है लेकिन उम्मीद है कि 50 से 60 हजार रुपये से ज्यादा मशीन की कीमत नहीं होगी।
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